Tuesday, July 29, 2025

बेतरतीब174 (नागपंचमी)

Prabhakar Mishra

तब गांव की नदी (मझुई) में भी बारहों महीने बहता पानी रहता था और गांव के बाहर कई तालाब (ताल) होते थे। निघसिया ताल में कमलिनी/कूंई होती थी और सकी जड़ में बेर्रा। निघसिया ताल में नागपंचमी के दिन गुंड़ुई (गुड़िया) सेरवाई जाती थी। बहनें गुड़ियां बनाकर तालाब में डालती थीं और भाई डंडे से उन्हें(गुड़ियों के पीटते थे। पीटने के लिए ढाख के खास डंडे होते थे जिनके बीच में काट कर निशान बनाया जाता था दिससे वह आसानी से टूट जाए। उसके बाद लड़के-लड़कियां घंटों ताल में नहाते थे। गुड़ुई सेरवाने का कार्यक्रम नदी की बजाय ताल में कअयों होता था, इस पर हमने कभी नहीं सोचा। गुड़ुई पीटकर डंडे को तोड़कर ताल में फेंका जाता था। सुबह अखाड़े में लड़कों की कुश्ती की प्रतियोगिता होती थी । नाग को दूध पिलाया जाता और दोपहर को दालपूरी का पकवान बनता था। लडकियां पेड़ पर डाले गए झूले पर कजरी गातीं और लड़के झूले को पेंग मारकर खूब ऊपर तक ले जाते।

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