Thursday, July 24, 2025

बेतरतीब 173 (जौनपुर)

 मित्र Raghvendra Dubey ने मनोज कुमार को याद करते हुए जौनपुर में देखी पिक्चर उपकार के बहाने टीडी इंटर कॉलेज, जौनपुर की कुछ यादें शेयर किया नास्टेल्जियाकर मैंने यह कमेंट लिखा:


मैंने भी टीडी कॉलेज से 1969 में ही इंटर किया था, मैं विज्ञान का विद्यार्थी था तथा याद में याद रह गयी, पहली फिल्म मैंने भी अशोक टाकीज में उपकार ही देखी थी, गांव में फिल्मों के बारे में सुना था और कुछ फिल्मी गाने सुने थे। 1967 में 12 साल की उम्र में गांव से शहर आने पर एकाध फिल्में इसके पहले भी देखी थी, राजा हरिश्चंद्र और भूल चुकीं कुछ और फिल्में। इस फिल्म के बाद लोगों ने कहना शुरू किया था कि प्राण ने पहली बार खलनायक से अलग भूमिका निभाया था। मैंने प्राण को पहली बार उपकार में ही देखा, उसके बाद कई फिल्मों में। उस समय जौनपुर में उत्तम और अशोक दो ही टाकीज होते थे। 1970 या 1971 में रुहट्टा में राजकमल बना, वहां हम टीडी कॉलेज से नाला पार कर बेर के बगीचे के टीले की चढ़ाई से उतरकर, कालीकुत्ती होते हुए पहुंचते थे। कभी कभी ओलनगंज होकर भी चले जाते थे। राजकमल में पहली फिल्म हमने आनंद देखी थी। कभी कभी राजकमल में फिल्म देखकर मछलीशहर के पड़ाव होते हुए गोमती के लगभग किनारे बने प्राइवेट हॉस्टल , कामता लॉज चले जाते थे, जहां हमारे इलाके के ट्रेन के कुछ सहयात्री मित्र रहते थे, उनके साथ शाहीपुल पारकर चौक चाट खाने जाते थे। कभी कभी वहां से किराए पर साइकिल लेकर चौकिया चले जाते थे। 2 पैसे या एक आने घंटे की दर से साइकिल मिलती थी। कभी मेस बंद होता तो पुल के इस पार बलई शाह की दुकान पर (बेनीराम की मशहूर इमरती की दुकान के सामने) पूड़ी-कचौड़ी खाने चले जाते। अपनी पत्तल और कुल्हड़ खुद कूड़ेदान मे डालना पड़ता था।

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