राही मासूम रजा का एक उपन्यास है आधा गांव उसमें संवादों में कुछ शब्द प्रचलित गालियों के रूप हैं, उनका दूसरा उपन्यास है, टोपी शुक्ला, जिसकी भूमिका में उन्होंने लिखा कि आधा गांव के बारे में लोगों को गालियों की शिकायत है, कहानी के पात्र यदि वेद के मंत्र या कुरान की आयतें बोल रहे होते तो मैं वही लिखता लेकिन सामाजिक वर्जनाओं के लिए कहानी के पात्रों की जुबान नहीं काटी जा सकती। टोपी शुक्ला में एक भी गाली नहीं है, लेकिन पूरा उपन्यास एक भद्दी सी गाली है, समाज के नाम। उद्धरण चिन्हों का इस्तेमाल इसलिए नहीं किया कि 46-47 साल पहले पढ़े उपन्यास की पंक्तियां शब्दशः याद नहीं हैं। लेकिन भक्ति भाव विवेक को कुंद कर देता है, आपको इनकी पूरी पोस्ट में गाली का एक शब्द खल गया लेकिन तेरह हजार घूस लेते बाबू की गिरफ्तारी और आठ करोड़ घूस लेते अधिकारी के विरुद्ध केवल चार्जशीट में विरोधाभास नहीं दिखाई नहीं देता।
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