Saturday, October 7, 2023

बेतरतीब 159(डीपीएस)

 मैं डीपीएस में बहुत लोकप्रिय शिक्षक था। डीपीएस ज्वाइन किए अभी 1-2 महीना ही हुआ था कि स्टूडेंट्स की ट्रिप जा रही थी सूरजकुंड। मैंने न जाने का मन बनाया था और गंगा हॉस्टल (जेएनयू) अपने कमरे में सुस्त सुबह बिता रहा था। तभी बॉल्कनी से देखा कि काशीराम के ढाबे ( अब गेगा ढाबा) के पास डीपीएस की एक बस खड़ी थी। मैंने जब तक कुछ सोचता, दरवाजे पर दस्तक सुनाई दी। दरवाजा खोला तो 3 स्टूडेंट्स [ XI F (Commerce Section) के विक्रम भार्गव और सुजाता सरीन और एक और लड़का, जिसका नाम याद नहीं आ रहा है ] अंदर चले आए। ये तीनों मेरी क्लास के नहीं थे।( विक्रम पिछली साल दो बार मिला।) मैं XII A, XI C, XI D पढ़ाता था। तीनों तुरंत तैयार होकर साथ चलने की जिद पर अड़ गए, उनकी जिद का प्रतिरोध ज्यादा नहीं कर सका और साथ चल पड़ा। बस में अलग अलग क्सासों के कई लड़के-लड़कियों से गप्पें करते गए। बाकी कहानी बाद में।

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