पहले गांव के घरों में आंटा पीसने की छोटी चक्की होती थी जिसे अवधी इलाके में जाता कहा जाता है। आप लोगों में से कुछ ने शायद अपने घर में ऐंटीक के रूप में किसी कोने पड़ा जांता देखा होगा। हमारे बचपन में आंटे की चक्की का रिवाज तो शुरू हो गया था दो-ढाई किमी दूर पड़ोस के एक गांव में लगी थी और हमारे पट्टीदार के यहां बैल से चलने वाली चक्की भी थी लेकिन आमतौर पर रोजमर्रा के इस्तेमाल का आंटा स्त्रियां घर पर अपने जांते पर ही पीस लेती थीं। मेरे माथे पर एक स्थाई तिलक का निशान है। मैं 2-3 साल का रहा होऊंगा, यह घटना इसलिए याद है कि लोग बहुत दिनों तक इसकी बात करते थे। मां (माई) जांते पर आंटा पीस रही थी और मैं उसकी पीठ पर लदा झूल रहा था। जांते के हत्थे का सिरा बहुत नुकीला होता था। झूलते-झूलते मेरा माथा हत्थे के नुकीले सिरे से टकराया और नाक के ऊपर खून की सीधी रेखा में छोटी सी लकीर बन गयी। जिसका निशान अब भी है, लेकिन कालांतर में बहुत हल्का हो गया है।गलती मेरी थी, फिर भी दादी (अइया) ने माई को बहुत डांटा और माई बिना प्रतिवाद के गलती मानकर अइया की डांट सुन लेती थी। बचपन में दादा जी (बाबा) ठाकुर को भोग लगाकर मुझे चंदन लगाते समय परिहास करते थे कि मेरे माथे पर तो स्थाई तिलक है।
13.10.2020
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