भक्तिभाव प्रवृत्ति है मानवता को नकारने की
विवेक की बलि चढ़ाती है आस्था की वेदी पर
विवेक ही मनुष्य की प्रजाति विशिष्ट प्रवृत्ति है
अलग करती है जो मनुष्य को पशुकुल से
नास्तिकता के लिए जरूरी है भक्त से इंसान बनना
अदम्य साहस के आत्मसंघर्ष से निर्भय हो जाना
करके खत्म सभी तरह के भूत-भगवानो का भय
करना होता है आत्मबल को इतना सुदृढ़ व मजबूत
कि जरूरत नहीं होती किसी खुदा की बैशाखी की
(ईमि: 07.10.2923)
No comments:
Post a Comment