Sunday, July 28, 2019

लल्ला पुराण 242 (आरयसयस)

जी, बाल स्वयंसेवक ही था, बड़ा होता तो फंसता ही नहीं। ये बहुत समझदार होते हैं, बच्चों को ही पकड़ते हैं। प्लेटो को पढ़े बिना उसका अनुशरण करते हैं। वह कहता है बच्चों को पैदा होते ही पढ़ाना शुरू कर दो। बच्चे मोम की तरह होते हैं जो आकार चाहो दे सकते हो। मेरा विद्रोही तेवर देख प्रत्यक्ष जोशी कृत्य की किसी की हिम्मत नहीं हुई अप्रत्यक्ष प्रयासों को प्रोत्साहित नहीं किया।इलाहाबाद में मैं बाल से ऊपर उठकर तरुण हो चुका था। एक प्रचारक बौद्धिक के बाद कमरे तक आ गया और ज्यादा 'दुलार' की कोशिस किया, बटुक प्रदेश पर लात के बाद स्नेह को गलत समझने का तर्क देने लगा। आजकल वह विहिप का नेसनल सेक्रेटरी है। तब वीरेश्वर जी था, अब वीरेश्वर द्विवेदी है।

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