Ish Mishra
Sanjay Singh सही कह रहे हैं अपने को छोड़ सब सिफारिशी लगते हैं. सिफारिसी का मतलब जरूरी नहीं कि योग्य न हो. लेकिन किसी गॉडफादर का चहेता होना विवि की नौकरियों में ढांचागत रीति है, लोग मजबूरी में किसी-न-किसी दरबार के मुशाहिद बन जाते हैं. एढॉक ही कौन सा बिना सिफारिशी लगते हैं?जो सिफारिश से आते हैं जरूरी नहीं कि वे मेरिटोरियस न हों, मेरिटोरियस भी होना अतिरिक्त योग्यता है. पिछले 34 सालों से तो मैं देख रहा हूं कि बिना गॉडफॉदरी नौकरियां विरली ही मिलती हैं.जिसमें गॉडसन्स/डॉटर्स को दोष नहीं देता दोष तो अकेडमिक मॉफिया के गॉडफादरों/मदरों का है. बस यही है कि इनमें से तमाम नौकरी मिलने के बाद भी रीढ़ सीधी नहीं कर पाते. प्रोफेसरों से भरी एसी/ईसी में एक भी नहीं दिखा जो रीढ़विहीन न हो!य़फवाईयूपी - यस सर! रोल बैक - यस सर!! प्रोफेसरों के बेटा-बेटियों; लग्गुओं-भग्गुओं को को यमए करते ही या सभी प्रशासनिक सेवाओं की परीक्षाओं से रिजेक्ट होते ही नौकरी मिल जाती थी पढ़ाने आता हो या नहीं. मुझसे लोग कहते हैं कि मुझे नौकरी बहुत देर से मिली, मैं ईमानदारी से कहता हूं, सवाल उल्टा है, मिल कैसे गयी?
भी प्रशासनिक सेवाओं की परीक्षाओं से रिजेक्ट होते ही नौकरी मिल जाती थी पढ़ाने आता हो या नहीं. मुझसे लोग कहते हैं कि मुझे नौकरी बहुत देर से मिली, मैं ईमानदारी से कहता हूं, सवाल उल्टा है, मिल कैसे गयी?
भी प्रशासनिक सेवाओं की परीक्षाओं से रिजेक्ट होते ही नौकरी मिल जाती थी पढ़ाने आता हो या नहीं. मुझसे लोग कहते हैं कि मुझे नौकरी बहुत देर से मिली, मैं ईमानदारी से कहता हूं, सवाल उल्टा है, मिल कैसे गयी?
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