Vidrohi Kumarमार-पीट संघी अपराधियों का काम है. जिस समुदाय का जीवन क्रम बलि के हवनकुंड के आस-पास हो उसका शाकाहारी होना बुद्ध प्रभावित क्षेपक है. मैंने अपनी बात ऋगवेद के उद्धरण से कहा है. तथा हर अगली पीढ़ी तेजतर होती है जो पिछली पीढ़ियों की उपलब्धियों को सहेजकर आगे बढ़ाती है, इसी से हम पाषाणयुग से अंतरिक्ष युग तक पहुंचे है. हमारे प्राचीन चरवाहे पूर्वज हमसे ज्यादा बुद्धिमान नहीं हो सकते. अपनी वर्तमान निष्क्रियता या व्यवस्था की गुलामी की मजबूरी के तहत जो भी अतीत में महानता ढूंढ़ते हैं वे अपने वर्तमान की कुंठाओं के समन के बहाने भविष्य के विरुद्ध अनजाने में साजिश करते हैं. यहां मार्क्सवाद की बात नहीं हो रही है लेकिन संघी जाहिल बात कुछ भी हो उनके ऊपर मार्क्सवाद का भूत सवार हो जाता है तथा अभुआने लगते हैं. किसी ओझा के पास जाओ, कुछ पढ़ लो संघी जाहिल मार्क्सवाद पर बोलने के पहले.
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