Sunday, June 5, 2016

सियासत 20 (ब्राह्मणवाद)

जन्म के आधार पर व्यक्तित्व का मूल्यांकन ब्राह्मणवाद का मूलमंत्र है. जो भी ऐसा करता है वह ब्राह्मणवाद की विचारधारा का पोषण करता है. तथा-कथित धार्मिक संगठनों के सैन्यरूप तथा उनकी संपत्ति का भंडाफोड़ होना चाहिए तथा उनकी सब जगह सार्वजनिक निंदा. मथुरा कांड के नायक या उपनायक का तिवारी या यादव होना संयोग की बात है लेकिन चिंता की बात यह है इन पाखंडियों तथा धर्मोंमादियों के इतने अनुयायी कैसे बन जाते हैं? जनद्रोह के इस क्षेत्र में जन्मना ब्राह्मणों का बहुमत होना स्वाभाविक है क्योंकि यह उनका पुश्तैनी पेशा है बाकी नया-नया शुरू कर रहे हैं. बिल्कुल सही कह रहे हैं साथी Vs Yadav ये ब्राह्मणवादी आसाराम या झांसारामों की जाति नहीं पूंढते उन्हीं की प्रजाति के रामबृक्ष का यादव देख उछल पड़ते हैं तथा आपराधिक मठाधीशी पर आर-पार के हमारे हमले की धार कुंद करते हैं, क्योंकि हम उनके जाल में फंसकर रक्षात्मक हो, अपने हमले को पथ-विचलित होने देते हैं. जातिवाद, यानि ब्राह्मणवाद को नष्ट किए बिना क्रांति नहीं हो सकती और क्रांति के बिना जातिवाद नष्ट नहीं हो सकता. अब साल याद नहीं है, जब राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनी तो मैंने विरासत की राजनीति पर एक आलोचनात्मक लेख लिखा जिसे लोगों मेरा लालू यानि परोक्ष समर्थन समझा. मैने कहा भाई डॉ. जगन्नाथ गाधी मैदान बेच देते हैं लेकिन वे भ्रष्टाचार के प्रतीक नहीं बनते लेकिन एक छोटे से घोटाले का नौसिखिया बन जाता है. घोटालों पर एकाधिकार टूटते देख जातिवादी मीडिया बौखला गया. मैंने लिखा था जैसा कि हुआ नहीं (मैं कोई ज्योतिषी तो नहीं) की भ्रष्टाचार का लोकतंत्रीकरण वर्गीय ध्रुवीकरण का पथ प्रशस्त करेगा. मैं आपको राजनैतिक रूप से जानता नहीं, लेकिन फेसबुक पर पढ़कर लगता है आपमें अपार बौद्धिक ऊर्जा है. अस्मिता की राजनीति अब अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभा चुकी. बड़े-से-बड़े जातिवादी की औकात नहीं है जो सार्वजनिक रूप से कह सके कि वह जात-पांत मानता है. यह ब्राह्मणवाद के विरुद्ध सैद्धांतिक विजय है. इसे मूर्त रूप देने के लिए छात्रों द्वारा स्थापित जयभीम-लाल सलाम के नारों की प्रतीकात्मक एकता को सैद्धांतिक मूर्त रूप देने की आवश्यकता है. दलित (असवर्ण) चेतना शिखर पर है अगला चरण इसके जनवादीकरण का है. ब्राह्मणवाद के साथ भूमंडलीय कॉरपोरेट खड़ा है. शोषण तथा दमन दोनों में गठजोड़ है. हमें समझना पड़ेगा कि शासक जातियां ही शासक वर्ग भी रही हैं. इसलिए ब्राह्मणवाद के विरुद्ध संघर्ष को भूमंडलीय साम्राज्य के विरुद्ध संघर्ष से जोड़ना पड़ेगा. बाकी मुल्ला मुलायम कहने वाले त्रिपाठियों से इतना ही कहूंगा कि दाउद के सूत्र मुलायम से नहीं आरयसयस के दुलारे खडसे से जुड़े हैं.

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