Tuesday, April 5, 2016

मंदिरों की संपत्ति

देख मंदिरों की संपत्ति अपरंपार
भक्तों की भुखमरी का आया विचार
मिल जाये भक्तों को यदि यह उन्हीं की संपत्ति
पीढ़ियों तक टल जायेगी भुखमरी की विपत्ति
हो भक्तों से मुखातिब किया पंडित जी से सवाल
कहां से आया है यह अरबों-खरबों का माल
पंडितजी ने देखा मुझे अकबकाकर
पूछा मैंने जब सवाल हाथ उठाकर
पंडित जी ने पुराना पत्रा खोला
आंखो से भक्तों का मन टटोला
मेरे सवाली हाथ पर किया इशारा
लिया भक्तों की धर्मभीरुता का सहारा
मेरे उठे हाथ को बताया भगवान पर हमला
टालने को मंदिर की अकूत संपत्ति का मामला
भक्तों की तन गई मेरे हाथों पर भृकुटियां
भिंच गयीं मेरे उठे हाथ पर उनकी मुट्ठियां
बोले पंडित जी सत्यनारायण की कथा की तर्ज़ पर
लंबा भाषण दिया ईश्वर कि संपत्ति की सुरक्षा के फर्ज़ पर
कहा करना ईश्वर की संपत्ति पर सवाल
है राष्ट्रवाद के विरुद्ध एक संजीदा बवाल
भक्तों की भिंची मुट्ठियां आक्रामक हो उठीं
मेरे भी अंदर विद्रोह की ज्वाला भभक उठी
पंडित जी को मैंने विमर्श के लिए ललकारा
पूछा मिलेगी कैसे भक्तों को भूख से छुटकारा
दिया नहीं पंडितजी ने मेरे सवाल का जवाब
कहा कि आस्था का नहीं होता तर्क से हिसाब
देख दुनिया में भक्ति भाव का ऐसा माजरा
लेता यह शायर अब फंतासियों का सहारा
मैं भी हुआ भूखे-नंगे भक्तों से मुखातिब
कहा उनसे भूख का सवाल है बहुत वाज़िब
पड़ गये भक्त भूख और भक्ति के भ्रम में
रोटी का सवाल आया कसके उनके मन में
मालुम हुई जब उनको यह गुप्त बात
कि ईश्वर की संपत्ति है सबकी सौगात
भिंची मुट्ठियां भक्तों की पड़ने लगीं ढीली
भूख से उनकी आंखे होने लगीं जब गीली
पेट पर गया हाथ मुट्ठियां फिर से भिंचने लगीं
गदगद हुआ मन कि आक्रोश की दिशा बदलने लगी
मंदिर की संपत्ति को जब भक्तों का प्रसाद बताया
भक्तों ने ईश्वर की अकूत संपत्ति पर बोल दिया धावा
(बुढ़ापे में बौद्धिक आवारगी असाध्य रोग है, बाद की पंक्तियां आवारागर्दी के सुरूर में, यथार्थ से परे कलम की विशफुल थिंकिंग है)
(ईमिः05.04.2016)

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