Wednesday, April 13, 2016

क्षणिकाएं 56 (771-80)

771
सलाम साथी रोहित बामुला
रंग लाएगी तुम्हारी शहादत जरूर एक-न-दिन
शुरू नकर दें द्रोणाचार्य अब गिनने अपने दिन
लेकिन नाराज हूं साथी तुमसे
शहादत की नहीं संघर्ष की दरकार है
तोड़ने के लिए मनुस्मृति से लैस
नवउदारवादी द्रोणाचार्यों के मठ
व्याप्त है अब भी जहां
जन्मना ज्ञान का मनुवादी हठ
ध्वस्त करने के लिए विद्वता के दुर्ग
पैदा करते हैं जो दोपाया शुतुर्मुर्गबहुत
फैलाते हैं जो ऐसा कुज्ञान
बन न सके जिससे कोई बाभन से इंसान

सचमुच बहुत नाराज हूं साथी तुमसे
शहादत की नहीं संघर्ष जरूरत है
भले ही नामवर सिंह बहादुरी का कृत्य लगती हो आत्म-हत्या*
समझ सकता हूं मनुवादी हमले के अपमान की असह्य पीड़ा
लेकिन द्रोणचार्य का हाथ कलम करने की जगह
तुमने एक बार फिर अपना ही अंगूठा काट कर दे दिया उसे
मरने की नहीं लड़ने की जरूरत है
क्योंकि कृपा से कुछ नहीं मिलता
लड़ना पड़ता है हक़ के एक-एक-इंच के लिए
तुम्हारे पास संघर्षों की लंबी विरासत है
विरसा से लेकर बाबा साहब तक
भगत सिंह से चेग्वेरा तक
हो सकता है मेरी नाराज़गी वाजिब न हो
क्योंकि यह दिमाग नहीं दिल की बात है
लेकिन व्यर्थ नहीं जायेगी साथी तुम्हारी शहादत
द्रोणाचार्य के ताबूत की आखिरी कील बनेगी
सुनो एकलव्यों जब भी अंगूठा मांगने आये द्रोणाचार्य
उसका हाथ कलम कर दो
सलाम साथी रोहित बामुला
रंग लाएगी तुम्हारी शहादत जरूर एक-न-दिन
(ईमिः 18.01. 2016)
772
नहीं छीन सकती उम्र बचपना
जवानी तो कतई नहीं
हो ग़र भूल जाने का सलीका
उम्र का चालीस का फर्क
और न मानने की नसीहतें
करने का बुज़ुर्गियत का लिहाज़
कुछ नहींबिगाड़ सकती उम्र
करो ग़र जुर्रत सोचने की
और साहस करने का इस्तेमाल
अपनी समझ
(ईमि:: २८. ०१. २०१६)
773
ऐब्सर्डिटी
क से कबूतर तथा क से कविता
ग से गधा तथा ग से गतिमान
कविता के नाम पर वैसी ही बेहूदगी है
जैसे ह से हिंदू और म से मुसलमान है
सियासत की तारीख के दामन पर
वैसे ही जैसे डपोर-ढोर है वह दानिशमंद
चिपका रहता है जो अपने अस्तित्व के
जीववैज्ञानिक दुर्घटना की अस्मिता से
जैसे नराधम है वह आस्तिक
जो सोचता है गंगा में डुबकी का आनंद
हर हर महादेव के उद्घोष से ही आता है
या अल्लाह के कलाम से नहीं
(बस ऐसे ही, बहुत दिनों बाद कलम की आवारागर्दी)

(ईमिः 07.02.216)  
774
कितने स्वार्थी हो तुम मेरे महबूब
नहीं बनी तेरा अस्बाब
क्योंकि प्रिय है मुझे समता का सुख
उससे भी ज्यादा आजादी की उड़ान
इसलिये अपनी फसल की हिफाजत के लिये
कैद कर दिया तुमने इस बिजूखे मेैं
बेवफाई की तोहमत के साथ
तुम भी जानते हो
दिल बहलाने सा है तुम्हारा यह प्रयास
क्योंकि बांध नहीं सकता कोई बिजूखा आज़ादी को
मैं इंसान बन निकलूंगी बिजूखे से
अगर मूर्छित नहीं हुए तुम भूत के खौफ से
तो तुम्हें सिखाऊंगी आज़ाद समता का सुख
 हो सकता है बन जायें हम हमसफर जंग-ए-आज़ादी के
साथ चलें लेकर हाथों-में-हाथ
गाते हुये मिल्कियत -बोध से मुक्ति के गीत
सुन रहे हो मेरे मीत?
(बस यों ही)
(ईमिः 07.02.2016)
775
नहीं मोहताज हैं किसी पद्मविभूषण के निदा फ़ाजली
मर कर भी इतिहास में अमर रहेंगे निदा फ़ाजली
उनके गीत देश-काल से परे जगे-ज़मीर के नग़्में बन जायेंगे
 पद्मविभूषण रजत शर्मा इतिहास के कूड़ेदान में बजबजायेंगे
(ईमिः 09.02.2016)
776
सर  पर दुपट्टे  से प्यार करती है जो औरत
समर्पण को प्यार  समझती  है जो औरत
पल्लू को परचम बना सकती नहीं जो औरत
नारी दावेदारी व प्रज्ञा का मतलब न समझती जो औरत
बराबरी का हक़  न मागती जो औरत
मर्दवाद की गुलामी को अभिशप्त है वो औरत.

(इमि:८.०२.२०१६)
777
र्णाश्रम की कब्र खुदेगी जेयनयू की पहाड़ी में
बौखला गया है जो लाल-ऩीले झंडों की एका से
बम गोलों से नहीं दबेंगी उमड़ती युवा उमंगें
जय भीम लाल सलाम के नारों से आसमां रंग देंगे
तक़लीफों की चिंगारी बनेगी दावानल
ख़ाक हो जायोंगे फिरकापरस्ती के महल
अरावली की पहाड़ियों से निकला है जो जनसैलाब
दुनिया भर में फैल रहा है उसका इंकिलाबी आब
मार कर रोहित को प्रफुल्ल हुआ ब्राह्णणवाद
जाना नहीं मगर वह कि कर रहा है आत्मघात
साथ लगने लगे नारे जय-भीम और इंकिलाब जिंदाबाद
देख यह जुझारू एकता हो गया उसे मानसिक सन्निपात
करने लगा पागलपन में ऊल-जलूल उत्पात
मिल गये आपस में जेयनयू और हैदराबाद
कर दिया जेयनयू पर सोचा-समझा हमला
छोड़ दिया देश द्रोह का अंग्रेजी राज का जुमला
अपना रहा है ये सारे हिटलरी हथकंडे साज़िश के तहत
जानता नहीं मगर कि दुहराता इतिहास खुद को त्रासदी की तरह
लेकिन चलता है चाल जो हिटलर की मरता है वह उसकी ही तरह
हैदराबाद से शुरू हुआ है जो जय भीम लाल सलाम का काफिला
जेयनयू में ध्वस्त कर देगा कॉरपोरेटी ब्राह्मण का नफरत का किला
(ईमिः20.02.2016)
778
मुल्तवी करता हूं अभी लिखना नग़्में और अफ्साने
वक़्त है ये लिखने का दीवारों पर ज़ंग-ए-आज़ादी के नारे
(ईमिः20.02.2016)
779
कैसी है यह देशभक्ति भागवत भाई
मर्दवादी विकृति जिसके पोर पोर में समाई
बोलती जय जो भार माता की
देती है वीरांगनाओं को संज्ञा वेश्या की
निक्कर पहन सुबह बंदे मातरम् चिल्लाते इसके ध्वजवाहक
रात को करते जेयनयू में कंडोम गिनने की कवायत
पेश करते हैं बालिका सशक्तीकरण का लेखा
खींचते हैं ललनाओं के लिए लक्ष्मण रेखा
ब्राह्मणवाद की जंजीरों से कसते जब दलित का गला
बयानबाजी में कह देते हैं दलित नहीं था रोहित वेमुला
दावानल की तरह फैल गया रोहित की शहादत का संदेश
जय भीम लाल सलाम के नारों से गूंज गया देश-विदेश
बन गया जेयनयू ज़ुल्म के खिलाफ जंग का किला
शुरू किया देशभक्तों ने इसकी बदनामी का सिलसिला
उमड़ रहा यह जो युवा उमंगों का सैलाब
कर देगा धर्मोंमादी छद्म देशभक्ति बेनकाब
(ईमिः26. 02.2016)
780
लड़खड़ाने में खतरा है गिर जाने का
कसम तोड़ना है पर्याय मात खाने का
जब भी तोड़ा जाता हैै दानिशमंद का कलम
फैलता है क़ौम में जहालत का गुमान-ओ-वहम
टूटने से कलम खामोश नहीं होता है
बुलंदी से इतिहास को आवाज़ देता है
सुकरात-भगत-चे-कन्हैया बन जाता है
शहादत से इंकिलाब का परचम फहराता है
(ईमिः29.02.2016)

No comments:

Post a Comment