Thursday, April 7, 2016

अक़्ल के दुश्मन

अक़्ल के दुश्मनों की मुल्क में कमी नहीं गालिब
एक खोजो हजार मिलते हैं (गालिब से मॉफी के साथ)
सुबह सुबह पहनकर हिटलरी निक्कर
लेकर लट्ठ हाथों में फासिस्ट परेड करते हैं
नहीं दुवा-सलाम एक-दूजे से
एक झंडे को मान गुरु उसे ध्वज प्रणाम करते हैं
लगाकर देशभक्ति का नारा
विश्वबैंक का हुक़्म तामील करते हैं
चिल्लाकर बंदे मातरम्
धरती मुल्क की नीलाम करते हैं
बोलकर भारत मां की जय
विधर्मियों की मां-बहन का बलात्कार करते हैं
कहकर श्रमेव जयते
मदजूरों पर अत्याचार करते हैं
कहते हैं खुद को अंबेडकर का भक्त
ब्राह्मणवाद का गुणगान करते हैं
चलाते हैं बेटी पढ़ाओ अभियान
पढ़ने-लड़ने वाली लड़कियों को वेश्या कह बदनाम करते हैं
खाते हैं दलितोद्धार की कसमें
रोहित वेमुलाओं का कत्ले-आम करते हैं
कहां तक गिनाऊं दोगलापन इनका
जो कहते हैं उससे उल्टा काम करते हैं
कर देंगे मगर इनका काम तमाम मुल्क के नवजवांन
जो हर रोज अब जय भीम को लाल सलाम करते हैं.
(ईमिः07.04.2016)

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