Wednesday, April 13, 2016

क्षणिकाएं 57 (781-90)

781
बेमुखालिफ़ ज़ुल्म बढ़ता ही जाता है
ज़ालिम खुद को क़ौम का खुदा बताता है
मनुस्मृति को ज्ञान का सागर कहता है
अफवाहों से करता वह संसद को गुमराह
हो मुदित भक्तगण करते वाह वाह
मगर जब भी ज़ुल्म बढ़ता है तो मिट जाता है
हिटलर को मांद में छिपकर मरना पड़ता है
लेकिन न्यूटन का नियम हर बात पर लागू होता है
हालात बदलने को जोर लगाना पड़ता है
ज़ुल्म भी खुद-ब-खुद नहीं मिटता मिटाना पड़ता है
कन्हैया-उमर-अनिर्बन बनना पड़ता है
जेयनयू के क्रांतिकारी साथियों को लाल सलाम
(ईमि-28.02.2016)
782
सीता पीड़ित नारी उत्पीड़क मर्दवादी राम
दोनों का रिश्ता है स्वामी दास समान
हो नहीं सकती हृदय की एकता शोषित-शोषक के बीच
शोषण को महिमामंडित करते हैं अब भी बहुत से नीच
भारोत्तोनल की प्रतियोगिता में राम गया जो जीत
पा गया उपहार में सीता सी बेशकीमती चीज
बुढ़ापे में हुई थी जब उसके बाप को जवान बीबी की लालसा
केकेयी को दिया राजनैतिक बरदान बैंक के ब्लैंक चेक सा
किया इस्तेमाल उसने जब प्रणय के वर का इस्तेमाल
उठाया उसने अपने बेटे की गद्दी की दावेरी का सवाल
दशरथ को था इस दावेदारी का पहले से ही एहसास
बनाया जब युवराज राम को भरत था मामा के पास
फेंका तब कैकेयी ने अपना तुरुप का पत्ता
मांगा उसने भरत के लिए अयोध्या की सत्ता
सत्तापलट की राजवंशों में रहा है पुराना चलन
मांगा कैकेयी राम के वनवास का दूसरा वचन
सत्ताच्युत राम को भी आ गयी यह बात
अर्जित कर शक्ति करेगा गद्दी पर घात
ले गया सीता को भी जंगल में अपने साथ
उसीके बहाने करना था जो रावण पर घात
मिली जंगल में उसे सूर्पणखा सी सुंदरी
नाक-कान काट उसके रची रावण से दुश्मनी
दोनों की संस्कृतियों में था एक फर्क बुनियादी
एक में खतरनाक मानी जाती नारी की आज़ादी
दूजा देती थी नारी को भी प्रणय निवेदन की आज़ादी
लक्ष्मण से कहा देने को पौरुष की मिशाल
काट दिया जिनने सूर्पणखा के नाक-कान
करने को पीछे आदिवासी वानर सेना लामबंद
मिल संग सुग्रीव के खोलने लगा बानरों के पैबंद
झोंकना था अपने युद्ध में उसे सुग्रीव समर्थक वानर
कत्ल किया बालि को छिप कर कायरों की तरह
किया लंका पर विभीषण से गद्दारों मिल हमला
छल-कपट के सास्ते जब उसे जीत का फल मिला
बोला तब सीता से नहीं किया रक्तपात उस सी नारी के लिये
यह भीषण रक्तपात था रघुकुल की नाक की रखवाली के लिए
उसे अब पवित्रता की अग्नि परीक्षा देनी होगी
पतिव्रतत्व के मर्दवाद की रक्षा करनी होगी
खोज रहा था सीता से छुटकारे के तरीके
उंगली उठवाया सीता के चरित्र पर एक धोबी से
इज्जत उछाला सीता की भरे राजदरबार में
निकाल दिया महल से मारकर लात
मर्दवाद में नदारत हैं गर्भवती से हमदर्दी की बात
बदला हुआ है मगर आज का सीताओं का आचार
उठा लिया है उनने प्रज्ञा का अमोध हथियार
है सूर्पनखा पर उठते हाथ काटने को तैयार
(बस ऐसे ही)
(ईमिः29.02.2016)
783
 कर दिया है जेयनयू के युवा साथियों ने ऐलान-ए-जंग-ए-आज़ादी-ए-हिंदुस्तान
हो गया है डांवाडोल कॉरपोरेटी ब्राह्मणवाद का स्वास्तिक निशान
उठी है जेयनयू से विप्लव की जो ज्वाला
बसुधैव कुटुंबकम् को हक़ीकत बना डाला
बौखलाहट में ज़ालिम कर रहा है बार बार वार
गुंडे-पुलिस-कचहरी हैं सब सत्ता कि हथियार
चप्पे-चप्पे से गूंजेंगे अब इंकिलाब के नारे
निष्प्रभ हो जायेंगी ज़ालिम की तोप-तलवारें
आयेगा दुनिया में इक नया बिहान
पूंजी की गुलामी से मुक्त हो जाएगा इंसान
#being #nostalgic
(ईमिः04.03.2016)
784
वह कहता है उसको ही नहीं सबको रोटी कपड़ा मकान चाहिए
मेहनतकश को काम का पूरा दाम चाहिए
पूंजी के संचय पर भी उसको एक लगाम चाहिए
वह कहता है उसे नहीं आवाम को इंसाफ चाहिए
इतना ही नहीं उसे भक्तिभाव के प्रजनन पर पूर्ण विराम चाहिए
उसके देशद्रोह का इससे अधिक क्या प्रमाण चाहिए
उसको फांसी दे दो

वह कहता है जेयनयू से पुलिस हटाइए
उसे वर्जित विषयों पर भी विचार-विमर्श की आजादी चाहिए
जेयनयू ही नहीं सभी परिसरों में उसे वाद-विवाद-संवाद आजादी चाहिए
इतना ही नहीं उसे मर्दवाद और ब्राह्मणवाद की बर्बादी भी चाहिए
उसके देशद्रोह का इससे अधिक क्या प्रमाण चाहिए
उसको फासी दे दो

वह कहता है उसे विश्वबैंक से गैट्स करार का किताब चाहिए
राष्ट्रभक्त अडानी को आस्ट्रेलिया में व्यापारिक कर्ज़ का हिसाब चाहिए
अफजल गुरू की फांसी के न्यायिक कुतर्क का उसे जवाब चाहिए
गुजरात-मज़फ्फरनगर ही नहीं हर बात पर सवाल का उसे अधिकार चाहिए
इतना ही नहीं मनुस्मृति को जलाने का हक़ बेहिसाब चाहिए
उसके देशद्रोह इससे अधिक क्या प्रमाण चाहिए
उसको फासी दे दो

वह कहता है उसको समाजवाद चाहिए
पूंजीवाद होना बर्बाद चाहिए
दुनिया में किसान मज़दूर का राज चाहिए
शोषण-दमन का नाश चाहिए
इतना ही नहीं मताधिकार से आगे उसे सचमच की आज़ादी चाहिए
उसके देशद्रोह इससे अधिक क्या प्रमाण चाहिए
उसको फासी दे दो
(गोरख पांडे की 178 में आंध्र के किसान क्रांतिकारियों की फांसी पर लिखी कविता नहीं खोज पाया तो उसकी तर्ज तथा शैली की नकल पर तुकबंदी)
(ईमिः 04.03.2016)
785
"जब जब ज़ालिम ज़ुल्म करेगा सत्ता के हथियारों से
चप्पा-चप्पा गूंज उठेगा इंकिलाब के नारों से"
इलाहाबाद के क्रांतिकारी युवा साथियों को लाल सलाम
यह देखो तो मोदी जेयनयू का असर 
जेयनयू बन रहा है हर परिसर
इलाहाबाद की माटी भी है जेयनयू की ही तरह
शहीद हुए थे आज़ादी के लिए लाल पद्मधर
फासीवाद पर छाता है सत्ता का अहंकार 
करता है वह विचारों पर आत्मघाती प्रहार
जयभीम-लाल सलाम से बौखला जाता है ब्राह्मणवाद 
साथ गूंजते हैं नारे जब जयभीम-इंकिलाब ज़िंदाबाद
इस एकता से आओ शुरू करते हैं इक नया इंक़िलाब
दुश्मन है आवाम का कॉरपोरेटी सामंतवाद 
अवसान के पहले आक्रामक हो गया है ब्राह्मणवाद
खुद को बताता था जो हिंदू अब बन गया है राष्ट्रवाद
फौरी जरूरत  है इसलिए इक सांस्कृतिक इंकिलाब
जेयनयू बनेगा हमारा विश्वविद्यालय इलाहाबाद
करना ही होगा सामंती अवशेषों को पूरी तरह बर्बाद
आओ लिखते हैं मिल-जुल एक नया राजनैतिक समाजशास्त्र
तार्किक परिणति होगी जिसकी एक नया राजनैतिक अर्थशास्त्र

इवि के साथियों को लाल सलाम. 
(इलाहाबाद विवि के छात्रों के प्रदर्शन की एक तस्वीर शेयर करने के लिए उपरोक्त नारे का कैप्शन लिखना चाहता था #Allabadi #nostalgia  सठियाये आवारा का कलम भी आवारा हो गया है, खासकर जब से इस पर आर्थिक नैतिकता का दबाव  नहीं रहा. माक्स ने कहा है, अर्थ ही मूल है. )
(ईमिः05.03.2016) 
786
We confidently proclaim that Hitler is dead
Its another matter he is often seen marauding the humanity
Don't scare me with the scenes of the hell
We are witnessing them  here on the earth on the daily basis
To the devotees he is the Kaliyug incarnation of the Lord Vishnu
To me he is a petty joker of a third rate Bollywood film
But Hitlers die miserable deaths and stink in the history's dustbin
(Ish Mishra)
787
पढ़ चुका हूं बार बार हिटलर के मरने की खबर
दिखता है मगर अक्सर सवार मानवता के सीने पर
मत दिखाओ भक्तों हमें नर्क की यातना का डर
दिखता है वह हर पल हर सड़क हर डगर
दिखता है जो भक्तों को विष्णु का कल्कि अवतार
है वह दर-असल किसी बंबइया फिल्म के जोकर का किरदार
मरता है मगर कमीनगी की मौत हर हिटलर
बजबजाता है इतिहास के कूड़ेदान में बदबू बनकर
(ईमिः 17.03.2016)
788
संघी पढ़ने लिखने को पाप समझता है
अमरीका को अपना बाप समझता है
मारता है अख़लाकों को फैलाकर गोमांस की अफवाह
तलवे चाटकर गोभक्षी ओबामा के करता है वाह वाह
थी मुल्क में जब अंग्रेजी राज के खिलाफ लड़ाई
कर रहा था ये तब क्रांतिकारियों के मुखबिरी
था एक इनका परम पूज्य गुरू गोलवल्कर
करता था अंग्रेजों की दलाली खुलकर
कहता था यह बात बिल्कुल बेशर्मी से
मत करो जाया ऊर्जा अंग्रेजों से लड़ने में
रखो बचाकर मुसलमान-कम्युनिस्टों से लड़ने के लिए
मांगता था अंग्रेजों से माफी दामोदर विनायक सावरकर
भारत छोड़ो आंदोलन के विरुद्ध बना दल्ला कद्दावर
चल रहा था हिंद मे जब अंग्रेजों भारत छोड़ो का आंदोलन
अंग्रेजी सेना में भरती का यह चला रहा था प्रायोजन
हत्या बलात्कार का प्रायोजक नरेंद्र मोदी
कहता है ख़ुद को हिंदू राष्ट्रवादी
करता है तार तार भारत का संविधान
मानता है जिसे वेंकू भगवान का वरदान
बनते ही मुखिया रचा इसने गोधरा कांड
हिला दिया क़ोहराम से गुजराती ब्रह्मांड
लगता है दिल में होती है लोगों की अक़ल
दंगों से काटता रहा वह मतदान की फ़सल
आया जब मन में देश का मुखिया का विचार
नाकाफी लगा फिरकापरस्त नफरत का प्रचार
रचा मुज़फ्फरनगर गुजरात की तर्ज़ पर
कॉरपोरेटी मीडिया ने फैलाया विकास की लहर
बन गया जब वह मुल्क का प्रधान
तोड़ने लगा वह राष्ट्रीय संविधान
पार्टी में थे जितने भी ज़ाहिल अपराधी
बनाया उन्हीं को मंत्रिमंडल का साथी
खुल गई जब पोल विकास के ढकोसले की
चली तब चाल राष्ट्रोंमाद के चोचले की
खतरे में होता है जब भी ब्राह्मणवाद
कभी हिंदुत्व बन जाता है तो कभी राष्ट्रवाद
विश्वविद्यालयों का है कुछ ऐसा स्वभाव
पैदी नहीं होता वहां अंध भक्तिभाव
उगती है वहां तर्क ओ विवेक की फसल
तैयार होती है वहां नई इंक़िलाबी नसल
इंक़िलाब से है फासीवाद को सख़्त नफरत
शुरू किया प्रश्नवाद को डराने की फितरत
मारा कई पंसारे, कलबुर्गी डोभालकर
धीार्मिक भावनाओं का बहाना बनाकर
डरता नहीं है मगर चिंतनशील इंसान
ज़ुल्मी रचे खौफ का कैसा भी विधान
बौखलाहट में किया इसने शिक्षा पर हमला
शुरू हो गया जिससे प्रतिरोध का सिलसिला
मद्रास में छात्र पढ़ रहे थे फुले-अंबेडकर के विचार
बौखला गई देश की मनुवादी सरकार
कर नहीं सकती थी धार्मिक भावना का बहाना
राष्ट्रवाद के नाम पर दलितों पर ताना निशाना
लगाया फुले-अंबेडकर स्टडी सर्कल पर पाबंदी
छात्रों की भी शुरू हो गयी विद्रोही लामबंदी
मद्रास से शुरू हुई जब पुणे पहुंची राष्ट्रवादी कहर
दुनियां भर में उफन पड़ी प्रतिरोध की लहर
बढ़ता रहा जैसे जैसे दमन का प्रतिरोध
बढ़ता रहा वैसे वैसे फासीवाद का क्रोध
हैदराबाद में भी दलितों को बनाया निशाना
देशद्रोही कह कर ठोंक दिया उनपर जुर्माना
रोहित विमुला की सांस्थानिक हत्या कर दिया
अनजाने में मुल्क के सोते शेरों को जगा दिया
शहादत कभी बेकार नहीं जाती है
ज़ालिम के गले का फंदा बन जाती है
रोहित की शहादत को करने को सलाम
उमड़ पड़ा सड़कों पर तर्कशील आवाम
गूंज उठा गगन जयभीम-लाल सलाम के नारों से
ज़ुल्म का प्रतिरोध तर्क-विवेक के हथियारों से
उमड़ पड़ा सड़कों पर युवा उमंगों का जनसैलाब
देख युवाओं के जज़्बात हो लिए बुड्ढे भी साथ
जेयनयू बन गया इस इंकिलाब का मुख्य हरकारा
रहा है शुरू से ही जो संघियों की आंख का किरकिरा
बोला हमला जेयनयू पर कह कर देशद्रोह का अड्डा
खोद लिया कमअक्ली में खुद के लिए बहुत गहरा गड्ढा
जेयनयू संस्था नहीं जहालत से लड़ने का विचार है
मौजूदा नायक जिसका कन्हैया कुमार है
उमर ख़ालिद एक भावी इतिहासकार है
पढ़ता ही नहीं रचता भी है इतिहास जेयनयू
पढ़ने के लिए लड़ता है जेयनयू
ज़ुल्म से लड़ने के लिए पढ़ता है जेयनयू
आती है मौत गीदड़ की तो भागता है शहर की तरफ
देखना है हश्र मनुवादी फासीवाद का दौड़ा है जो जेयनयू की तरफ
(बहुत दिनों से तुकबंदी नहीं की थी, कलम लंबी आवारगी पर निकल पड़ा.)
(ईमि)22.03.201
789
कौन है यह बुज़ुर्ग सालों से तिहाड़ जेल में
सरकारों को खतरा है जिससे सियासती खेल में
सुनते हैं है ये आदमी बहुत अक़लमंद
जेल में भी लिखता है आज़ादी के छंद
लिख रहा है मनुष्यों के विकास पर एक ग्रंथ
विषय है जिसका विवेक तथा आज़ादी का संबंध
मांगता है जेल में किताबों की सुविधा
बढ़ती है जिससे राष्ट्र की सुरक्षा की दुविधा
थी देश में जब गोरे अंग्रेजों की सरकार
भगत सिंह को था किताबों का अधिकार
है जब मुल्क में भूरे अंग्रेजों की सरकार
जेल में किसी को किताब की क्या दरकार
मगर गज़ब का गतिमान होता है इनका दिमाग
किताबी तेल के बिना जलाते हैं दानिशी चिराग़
लिख रहा है विवेक और बराबरी के विकास का संबंध
छापता है मेनस्ट्रीम उसको करके क्रमबद्ध
बताती हैं सरकारें उसे खतरनाक माओवादी
नाम भी अजीब है उसका कोबाड गांधी
सुना है दून स्कूल का पढ़ा है
यानि किसी बड़े घर में पला बढ़ा है
मिली होगा इसको क़लेज में बुरी सोहबत
लग गयी होगी सोचने-समझने की बुरी आदत
इतने में तो फिर भी इतनी बुराई नहीं है
ज्ञान बघारने में बल्कि कुछ भलाई ही है
मगर ये लड़के गरीबी का दर्शन पढ़ने लगते हैं
और दर्शन की गरीबी का रहस्य समझने लगते हैं
भूखे-नंगों के साथ मिलने-जुलने लगते हैं
बड़े घरों के ऐसे लड़के बिगड़ने लगते हैं
शान-ओ-शौकत को समझते हैं अमीरों का चोचला
लूट-खसोट से है जिनका जमीर खोखला
हक़ीक़त जब ये समझने लगते हैं
ज़िंदगी में उस पर अमल करने लगते हैं
ज्यादा खतरनाक मानती है इसे भारत सरकार
कलम से निकलते हैं इसके खतरनाक विचार
हो-न-हो हो इसका जेयनयू से भी कोई रिश्ता
गया हो वहां ढूंढ़ने कोई देशद्रोही फरिश्ता
अधूरी..........
790
पहिए की कुर्सी वाला प्रोफेसर खतरा है देश की सुरक्षा के लिए
माना नहीं उठा सकता बंदूक यह अपाहिज प्रोफेसर
पर फिरा सकता है कम्यूटर के कीबोर्ड पर उंगलियां
और गढ़ सकता है खतरनाक विचार
वह भी ऐसे वैसे नहीं बेहद खतरनाक
कहते जो होते आदिवासियों के भी मानवाधिकार
माना कि बंदूक नहीं उठा सकता
लेकिन दिमाग चला सकता है और ज़ुबान भी
सरकार चलाती है जब राष्ट्रवादी ग्रीनहंट अभियान
देने लगता है सेना के छोटे-मोटे अत्याचारों पर गंभीर बयान
इतना ही नहीं कश्मीरी मुसलमानों को भी इंसान मानता है
उनके  भी मानवाधिकार की बात करता है
राष्ट्र की अखंडता पर आघात करता है
माना कि भाग नहीं सकता पहिए की कुर्सी वाला प्रोफेसर
लेकिन मिलेगी नहीं जब तक जेल की प्रताड़ना
खतरनाक होती जाएगी बुद्धिजीवियों की चेतना
और देश की सुरक्षा के लिए सबसे खतरनाक है चिंतनशील इंसान
डरा सकता जिसे न कोई भूत न ही भगवान
करते रहेगे ये वैसे तो जेल में भी ग्राम्सी सी खुरापात
बर्दाश्त कर लेगा मगर राष्ट्रवाद उतनी उत्पात

(ईमिः31.03.2016)

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