एक फेसबुक मित्र ने आजादी नारे को बार बार लगाये जाने पर सवाल किया, उनको जवाबः
ये नारे हैं, जब तक उपरोक्त बुराइय़ों से आज़ादी नहीं मिलती लगते रहेंगे, जब तक ब्राह्मणवाद खत्म नहीं होता उससे आजादी की लड़ाई में ये नारे लगते रहेंगे, जब तक फिरकापरस्ती का सर्वनाश नहीं होता, संघवाद से आजादी के नारे लगते रहेंगे, जब तक क्रांतिकारी लड़कियों को संघी वेश्या बताते रहेंगे और कंडेोम गिनते रहेंगे तब तक मर्दवाद से आज़ादी के नारे लगते रहेंगे, हर आंदोलन नये नारे रचता है. पढ़ने के लिए लड़ो, ज़ुल्म से लड़ने के लिए पढ़ो धर्म के नाम पर फैलाए जा रहे उंमाद तथा शासन के विरुद्ध हैं ये नारे, उन जाहिलों को जगाने के ल लिए जो पीयचडी करके भी हिंदू-मुसलमान या ब्राह्मण-भूमिहार से इंसान नहीं बन पाते. धर्म के नाम पर हत्या-बलात्कार के प्रायोजन से जहां कोई प्रधानमंत्री बन जाता है वहां आप कह रहे हैं धर्म की पहचान खत्म हो गयी है, मैं तो मजदूर हूं मजदूर का कोई देश नहीं होता क्योंकि पूंजी का कोई देश नहीं होता.
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