Monday, March 7, 2016

भारत में नवमैकार्थीवादः जेयनयू तथा राष्ट्रद्रोह

    
भारत में नवमैकार्थीवादः जेयनयू तथा राष्ट्रद्रोह
ईश मिश्र

नफरत, फरेब तथा जुमलेबाजी की चालें कई बार आत्मघाती हो जाती हैं, जैसा कि भगवाकरण-व्यावसायीकरण की सुविचारित साजिश के तहत, संघ द्वारा निर्देशित और सरकार द्वारा प्रायोजित, उच्च शिक्षा संस्थानों पर सिलसिलेवार हमलों के परिणामों से जाहिर है. आईआईटी, मद्रास के फूले-अंबेडकर स्टडी सर्कल पर प्रतिबंध से उठी प्रतिरोध की चिंगारी, हैदराबाद में रोहित बेमुला की शहादत से आग बन गयी तथा अपने ऐतिहासिक चरित्र के अनुरूप, जेयनयू बन गया प्रतिरोध की इस आग को हवा देने का प्रमुख केंद्र बन गया. रोहित की शहादत ने सामाजिक न्याय के संघर्ष को आर्थिक न्याय के संघर्ष से जोड़ दिया. शासक जातियां ही शासकवर्ग भी रहे हैं. इस मुखर प्रतिरोध को कुचलने के लिए, संघ की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और अपने आज्ञाकारी संघी, कुलपति-रजिस्ट्रार तथा आपराधिक गलतबयानबाजी वाले वफादार पुलिस कमिश्नर की मदद से राजनाथ सिंह-स्मृति इरानी दुकड़ी ने देशद्रोह का अड्डा बताकर जेयनयू पर हमला बोल दिया. रोहित की शहादत की प्रतिरोध की आग दावानल बन पूरे देश और दुनिया में फैल गयी. रोहत देशद्रोह के आरोप से जमानत पर रिहा प्रतिरोध के नये नायक जेयनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष का प्रतीक-पुरुष बन गया रोहित बेमुला तथा कन्हैया नरेंद्र मोदी की चुनौती. इस घटनाक्रम ने मुल्क में सांस्कृतिक-बौद्धिक गृहयुद्ध की बुनियाद डाल दी. जब भी इस बुनियाद का इतिहास लिखा जायेगा तो रोहित, कन्हैया, उमर, अनिर्बन तथा तमाम और युवा क्रांतिकारी साथियों का विशेष उल्लेख होगा. कन्हैया के भाषण ने दक्षिणपंथी उग्रवाद को रक्षात्मक बना दिया है. बस इस आग को हवा देते रहना है जिससे फासीवाद दुबारा आक्रामक न हो सके.

2 मार्च 2016 शाम, संसद मार्ग पर, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र-शिक्षकों के विरोध-प्रदर्शन के दौरान छात्रसंघ अध्यक्ष, 20 दिन की हिरासत के बाद, कन्हैया कुमार की “सशर्त जमानत की खबर से प्रदर्शन में उत्सव का माहौल बन गया. लेकिन उच्च न्यायालय की नशीहतों भरी टिप्पणियां खतरनाक रूप से चौंकाने वाली हैं. मौजूदा घटनाक्रम काफ्का के ट्रायल से अधिक गोर्की के मदर की याद दिलाता है. पिछले दिनों दूसरी बार पढ़ामहान रचनाओं की खासियत है कि जितनी बार पढ़िये तो पहली बार जैसी लगती हैउसी तरह जैसे महान फिल्में जितनी बार देखिये पहली बार सी देखने सा ही सुख मिलता हैउपन्यास खत्म होते होते जेयनयू में देशभक्ति का तांडव मच गया. सभी रचनाएं समकालिक होती हैं महान रचनाएं सर्वकालिक हो जाती हैं. लगभग चार दशक  पहले आपात काल के दौरान पहली बार पढ़ने पर जितना प्रासंगिक और समकालिक लगा उतना ही अब.  उपन्यास के दृश्य-पात्र आंखों के सामने सजीव हो उठे – कारिंदेपुलिस,  सर्वव्यापी गुप्तचरदमन-उत्पीड़नदालती जहालत तथा कुतर्क. मौत तथा पुलिस की मार से बेपरवाह क्रांतिकारी लड़के-लड़कियां -- पावेलनिकोलाईशाशायेगोर इवानोविचवह क्रांतिकारी डॉक्टरमां का जेल में बंद बेटे पर असीम नाज़भयंकर शोषण, दमन, गरीबी, क्रूरता, जारशाही के कारिंदों में में कारखानों तथा बस्तियों में गुप्त रूप से बंटे परचों का आतंक,  जान जोखिम में डालकर ज़ारशाही तंत्र के विरुद्ध जंग-ए-आज़ादी के मतवाले युवक युवतियां तथा धर्म तथा ज़ार की अवमानना के आरोप में उनकी धरपकड़. लगता है सारे पात्र तथा घटनाएं, नवउदारवादी भेष में, ज़ारकालीन रूस से मोदीकालीन भारत में प्रतिष्छित हो गये हों. ज़ार की अवमानना की जगह राष्ट्रवाद की अवमानना तथा राष्ट्रवाद का मतलब आरयसयस प्रतिपादित हिंदु राष्ट्रवाद, जिसमें दूसरे मतावलंबियों के दोयम दर्जे की नागरिकता का प्रावधान है. पावेल की निडर, बहादुर मां आज के परिवेश में रोहित तथा कन्हैया की फक़्रमंद माताओं सी ही तो है.  

 जुल्मत के इस दौर में एक सांस्कृतिक क्रांति के आसार नज़र आ रहे हैं. आज यहां के हालात की तुलना 1950 के दशक में अमेरिका में कम्युनिस्ट विरोधी मैकार्थीवादी राष्ट्रोंमाद से की जा सकती है. गौरतलब है कि कम्यूनिज्म के भूत का हव्वा खड़ाकर, जनपक्षीय ताकतों के दमन-उत्पीड़न के दौर ने त्राहि-त्राहि मचा रखा था. रोजेनबर्ग वैज्ञानिक पकि-पत्नी को सिंग सिंग चेयर पर बैठा कर कत्ल कर दिया गया था. आइंस्टाइन की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए यफबीआई में एक अलग प्रकोष्ठ था. इस राष्ट्रोंमादी कहर को चीरते हुए नस्लवाद विरोधी, नागरिक अधिकार आंदोलन निकला जिसने अमेरिकी हुक्मरानों को सामाजिक न्याय के कानून बनाने को मजबूर कर दिया. हमारी आगामी सांस्कृतिक क्रांति का रोज़ा पार्क है रोहित बेमुला तथा नया नायक है कन्हैया जिसके भाषण ने राष्ट्रोंमादियों में वैसी ही दहशत तथा जनवादी ताकतों में वैसा ही उत्साह पैदा कर दी है जैसा कि गोर्की के मदर के पावेल के अदालत में दिये भाषण ने.

दर-असल आज़ादी के बाद, खासकर, साढ़े खासकर तीन दशकों में, दलित प्रज्ञा और दावेदारी तथा नारी प्रज्ञा तथा दावेदारी में आई अभूतपूर्व उफान से विश्वविद्यालयों की सामाजिक संरचना तथा चरित्र में बहुत बहलाव आया है. जिन सामाजिक वर्गों – आदिवासी, दलित, पिछड़ा, नारी -- के लिए गौरवशाली भारतीय संस्कृति में शिक्षा एक वर्जना थी, आजादी के बाद, शिक्षा के संवैधानिक अधिकार के बावजूद, व्यवहार में यह वर्जना काफी समय तक कायम रही. 1980 के दशक मध्य तक उच्च शिक्षा के संस्थानों में इन तपकों की उपस्थिति लगभग नगण्य थी. सामाजिक आर्थिक परिवर्तनों तथा वंचित तपकों में संवैधानिक अधिकारों की चेतना के प्रसार एवं निरंतर संघर्षों के परिणाम स्वरूप का 1980 का दशक खत्म होते होते, खासकर मंडल आयोग की घोषणा तथा मंडलविरोधी जातीय उंमाद के बाद इन तपकों का प्रतिनिधित्व बढ़ने लगा. आज सभी विश्वविद्यालयों में इस परिवर्तनकारी बहुजन का बहुमत है. इनमें से बहुत से लड़के-लड़कियां उच्च-शिक्षा में प्रवेश करने वाली पहली पीढ़ी है. जेयनयू की जनतांत्रिक प्रवेशनीति में आर्थिक-सामाजिक वंचनाओं (जेंडर वंचना समेत) के अंकों में पढ़ने वाली पहली पीढ़ी भी कुछ अंक हैं. 1977 में मुझे याद है मुझे पहली पीढ़ी, निर्धारित से कम आय तथा पिछड़े इलाके से आने के अंक मिले थे. कहने का मतलब जेयनयू में व्यापक बहुमत देश के कोने-कोने से ने वाले वंचित बहुजन का है. आधी से अधिक लड़कियां हैं. यहां वाद-विवाद-संवाद का जनतांत्रिक शैक्षणिक परिवेश भगवा भक्तिभाव के प्रतिकूल है. वंचितों की राजनैतिक दावेदारी से सभी परिसरों में सवर्ण वर्चस्व को चुनौती मिलने लगी. चरमराते मर्दवादी, ब्राह्मणवाद ने बौखलाहट में विश्वविद्यालयों पर हमला बोल कर देश में एक सांसकृतिक गृह युद्ध छेड़ दिया. यह गृहयुद्ध सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की चुनावी फसल के लिए, संघ संप्रदाय के मंसूबे मुताबिक गुजरात, शामली मुजफ्फरपुर की तर्ज़ पर नहीं होगा. यह अधोगामी तथा अग्रगामी विचारों के बीचतर्क तथा कुतर्क के बीच; पूर्वाग्रह-अंधविश्वास तथा विवेक के बीच; जनवादी देशभक्ति तथा फासीवादी राष्ट्रोंमाद के बीच; ब्राह्मणवाद तथा सामाजिक न्याय के बीच छिड़ा बीच होगा. रोहित वेमुला की शहादत से शुरू हुए इस छात्र आंदोलन में एक नई सांस्कृतिक क्रांति की संभावनाएं हैं. इन संभावनाओं को वास्तविकता में बदलने के लिए नये सिद्धांत की जरूरत है. रोहित बेमुला की शहादत की बुनियाद पर बनी जयभीम-लालसलाम अभिवादनों की सांकेतिक एकता के एक जैविक संपूर्णता में संक्रमण के लिए एक सुविचारित सैद्धांतिक आधार की जरूरत है.

 इस सांस्कृतिक क्रांति का आगाज़ हो चुका है. रोहित वेमुला की शहादत रंग ला रही है. विभाजन रेखा खिच चुकी है. एक तरफ अधोगामी कट्टरपंथ है दूसरी तरफ अग्रगामी विवेक. एक तरफ असंवैधानिक ब्राह्मणवादी, हिंदू राष्ट्रोंमाद है दूसरी तरफ संविधान के प्रति निष्ठा तथा फासीवादी हमले से उसकी रक्षा. एक तरफ सत्य एवं न्याय है दूसरी तरफ झूठ-फरेब एवं फासीवादी ज़ुल्म. इतिहास गवाह है कि जीत अंततः विवेक की ही होती है. जेयनयू से उठी क्रांतिकारी लहर देश-विदेश के तमाम और विश्वविद्यालयों को संक्रमित करने लगी है. 

यूरोप में यह सांस्कृतिक क्रांति लंबी 18वीं सदी  (1685-1815) के नाम से जाने जाने वाले प्रबोधन काल में अपनी तार्किक परिणति तक पहुंच गया तथा कुलीनता के आधार पर सामाजिक विभाजन की समाप्ति हो गई. सामाजिक विभाजन का मानक लगभग संपूर्णतः आर्थिक हो गया. इस बौद्धिक क्रांति के दार्शनिकों को अपने-अपने कारणों से नवोदित पूंजीवाद तथा “प्रबुद्ध” सम्राटों का समर्थन प्राप्त था. सोचने की जुर्रत तथा समझ को व्यवहार में लाने की चुनौती देने वाले इमानुऍल कान्ट प्रुसिया के “प्रबुद्ध” सम्राट के “सुशासन” के घोर प्रशंसक थे. अधोगामी पुरातन शासक वर्ग – सामंतवाद -- से लड़ने के लिए परंपरा के विरुद्ध विज्ञान तथा आस्था के विरुद्ध विवेक का साथ देना नवोदित शासक वर्ग – उदारवादी पूंजीवाद – की रणनीतिक जरूरत थी. 19वीं शदी तक यूरोप में जन्म आधारित सामाजिक विभाजन (कुलीन-अकुलीन) सामंतवाद के अवशेष के साथ समाप्त हो चुका था. मार्क्स जब वर्ग संघर्ष के बारे में लिख रहे थे तब यूरोप में सामाजिक वर्ग विभाजन का प्रमुख आधार आर्थिक था, इसीलिए मार्क्स लिखते हैं कि पूंजीवाद वर्ग विभाजन का सरलीकरण कर समाज को दो परस्पर विरोधी खेमों में बांट देता है. लेकिन भारत में एसियाटिक (वर्णाश्रमी) सामंतवाद के विरुद्ध निर्णायक संघर्ष बाकी है. जाति यहां अब भी एक दुखद सच्चाई है. इसी लिए भारतीय पूंजीवाद को अर्ध-सामंती, अर्ध-औपनिवेशिक पूंजीवाद कहा जाता है. कॉमिंटर्न निर्देशित कम्युनिस्ट पार्टियों ने मार्क्सवाद को अध्ययन तथा संघर्ष के उपादान के रूप में लेकर स्थानीय ऐतिहासिक विशिष्टताओं की समझ विकसित करने की बजाय मंत्र के रूप में अपना लिया. मार्क्सवादियों ने यह मानकर कि शासक जातियां ही शासक वर्ग भी रही हैं. जाति के सवाल को नजर-अंदाज़ किया, जिससे सामाजिक वर्गसंघर्ष का सवाल अंबेडकरवादियों को उठाना पड़ा. जरूरत सामाजिक तथा आर्थिक वर्गसंघर्षों की मौजूदा एकता की निरंतरता तथा अंबेडकरवाद तथा मार्क्सवाद के वैज्ञानिक संश्लेषण के सिद्धांत की है. मौजूदा छात्र आंदोलन ने इसका सुअवसर दिया है.   

नवोदित उदारवादी पूंजीवाद की आवश्यकता परंपरावाद के विरुद्ध तर्कवाद था. नवउदारवादी पूंजीवाद अपना हित कट्टरपंथी ताकतों से गठजोड़ में देखता है तथा उनके जरिए अधिनायकवादी सरकारों की स्थापना करना चाहता है जो निर्मम बल प्रयोग से जनविरोधी आर्थिक सुधारों को लागू कर सकें. विश्वबैंक पालित, अपने कामों को “नया राजनैतिक अर्थशास्त्र” कहने वाले अर्थशास्त्री बिना किसी लाग-लपेट के लिखते हैं कि विकासशील देशों में आर्थिक सुधार आमजन के लिए कष्टप्रद होगा इसलिए इन्हें जनप्रतिरोध का सामना करना होगा. इसलिए इन्हें लागू करने के लिए जनसंगठनों को हतोतसाहित करने तथा निर्मम बलप्रयोग की आवश्यकता होगी, जिसके लिए जनतांत्रिक की बजाय अधिनायकवादी सरकारें ज्यादा उपयुक्त हैं. अर्थशास्त्रियों का यह गिरोह “भोली जनता की भलाई” के लिए “बुरी सरकार” ही खरीदने की सलाह देता है, वैसे ही जैसे भले इराकियों को बुरे शासक  से छुटकारा दिलाने के लिए अमेरिका ने उन पर हमला बोल दिया था. चिंतनशील व्यक्तियों से सुधार को खतरा है, अतः उच्च शिक्षा संस्थानों पर कॉरपोरेट तथा दक्षिणपंथी उग्रवाद का साझा हमला. 

संस्थानात्मक नौकरशाही के जरिए शासक वर्गों की पूरी सावधानी के बावजूद शिक्षण संस्थाओं के परिसर विद्रोही विचारों के प्रजनन केंद्र बन जाते हैं. जेयनयू जैसे परिसरों की विचार-विमर्श; वाद-विवाद-संवाद तथा संघर्षों की लोकतांत्रिक शैक्षणिक संस्कृति की किरदारी युवा उमंगों पर मानवीय संवेदनशीलता, तर्क-विवेक तथा वैज्ञानिक तेवर के लेप से उन्हें क्रांतिकारी तेवर प्रदान करती है और उनमें अन्याय निर्भीक संघर्ष का साहस भरती है. ऐसी जनतांत्रिक शैक्षणिक परिवेश भक्ति भाव तथा राष्ट्रोंमाद के प्रजनन पोषण के प्रतिकूल होता है. इसीलिए जेयनयू शुरू से ही दक्षिणपंथी उग्रवादियों का कोप भाजन रहा है. रोहित वेमूला के लिए न्याय के संघर्ष को तोड़ने के लिए फर्जी टेप तथा अपने चारण चैनलों के जरिए सरकार ने राष्ट्रोंमाद का हव्वा खड़ा कर एक तीर से दो निशाना करना चाहा. रोहित वेमुला की शहादत से शुरू हुई जयभीम-लाल सलाम नारों की एकता और सुदृढ़ हो गयी. 

जेयनयू का घटनाक्रम मीडिया तथा सामाजिक मीडिया में इतना चर्चित है कि विस्तार में जाने की जरूरत नहीं है. जेयनयू में आजकल, छात्रसंघ तथा शिक्षकसंघ के संयुक्त तत्तवाधान में राष्ट्रवाद पर अनूठी दैनिक क्लास चल रही है, विश्वविद्यालय के प्रशासनिक ब्लॉक के मुक्ताकाश रंगमंच पर. हर रोज लगभग 5 बजे शाम शुरू होने वाली यह क्लास 2-3 घंटे चलती है. 400-500 लड़के-लड़कियां जमीन पर बैठकर कागज़-कलम के साथ ध्यान से वक्ता की बात सुनते हैं, नोट लेते हैं, सवाल जवाब करते हैं. इसीलिए कहा जाता है जेयनयू एक विचार है. यह विचार मिशाल बन संक्रामक न हो जाये, सारे विश्वविद्यालय विचार न बन जायें, इसीलिए दक्षिणपंथी उग्रवाद तथा फासीवादी सरकार ने मिलकर, बौखलाहट में, इसे देश-द्रोह का अड्डा घोषित कर हमला कर दिया. लेकिन फासीवाद यह नहीं जानता, विचार मरते नहीं, इतिहास रचते हैं.  शिक्षकों की सूची में देश के नामी-गिरामी शिक्षाविद, इतिहासकार, कलाकार, साहित्यकार तथा समाजशास्त्री और समाज के अन्य प्रतिष्ठित नागरिकों का नाम है. इनकी कक्षाओं में पत्रकार भी होते हैं जिससे मीडिया तथा सोसल मीडिया के जरिए राष्ट्रवाद के विभिन्न आयामों का ज्ञान समाज के एक बड़े तपके पर पहुंच रहा है. अभी तक जिन विद्वानों की कक्षाएं हुई हैं उनमें जाने-माने समाजशास्त्रियों, इतिहासकारों के अलावा नवसेना के एक पूर्व प्रमुख तथा सेना के एक उच्च अधिकारी भी हैं.

जेयनयू में बड़े-बड़े विद्वानों द्वारा राष्ट्रवाद या देशभक्ति पर चल रहे व्यापक विमर्श पर चर्चा इस लेख का उद्देश्य नहीं है. देशभक्ति को हरामखोरों की अंतिम शरणस्थली मानने वाले सैमुअल जॉन्सन या राष्ट्र को काल्पनिक समुदाय मानने वाले बेनेडिक्ट एंडरसन, टालस्टॉय, टैगोर या गांधी के संदर्भों से राष्ट्रवाद  का समीक्षात्मक मूल्यांकन भी इस लेख का उद्देश्य नहीं है, जेयनयू को देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह द्वारा देशद्रोह का अड्डा घोषित कर कैंपस में पुलिस कार्रवाई तथा जेयनयू आंदोलन को लश्कर प्रायोजित बताने के बाद से इस पर मीडिया तथा सोसल मीडिया में बहुत कुछ लिखा जा चुका है. इस लेख का मकसद, संवैधानिक जनतंत्र में स्थापित राष्ट्रवाद के मानदंडों के आधार पर घटनाक्रम की वस्तुगत समीक्षा है.

राष्ट्रवाद एक आधुनिक अवधारणा है, जिसका उदय आधुनिक राष्ट्र राज्य की विचारधारा के रूप में हुआ. सामंतवाद के अवशेषों पर निर्मित संपत्ति के निजी स्वामित्व की राजनैतिक अधिरचना के रूप में उभरे नये पूंजीवादी राज्य में सत्ता की वैधता के श्रोत तथा राज्य के वर्चस्व के औचित्य के विचारधारा की जरूरत थी. पूर्व आधुनिक राजशाहियों में सत्ता की वैधता का श्रोत ईश्वर था तथा धर्म उसकी विचारधारा. यूरोपीय नवजागरण तथा प्रबोधन आंदोलनों ने इन्हें अमान्य कर दिया. आधुनिक राज्य में भगवान की जगह एक अपरिभाषित “लोग” की अमूर्त अवधारणा ने ले ली तथा धर्म का स्थान ले लिया तथा राष्ट्रवाद की विचारधारा ने. अन्य पूर्ववर्ती वर्ग समाजों की तरह पूंजीवाद भी एक दोगली व्यवस्था है. यह सर्वोन्नत वर्ग समाज है इस लिए दोगलापन भी सर्वोच्च है. “लोग” के नाम पर लोगों पर दमन करने वाली, यह व्यवस्था, जो कहती है करती नहीं, जो करती है कहती नहीं. मोदी कालाधन वापस लाने का वायदा करके चुनाव जीतते हैं, सत्ता में आकर कॉरपोरेट घरानों को लाखों करोड़ की छूट देते हैं. वे कभी नहीं कहते की मुजफ्फरनगर रचने में शाह-राजनाथ की जोड़ी महीनों से जुटी थी, भले ही इसके प्रमुख नायकों में एक संजीव बालियान को केंद्रीय मंत्री बनाकर पुरस्कृत करें. उस समय “लोग” का मतलब धनिक पुरुष वर्ग था. मजदूर पुरुषों को इंगलैंड में 1880 के दशक में तथा सभी वर्गों की महिलाओं को 1920 के दशक में लंबे संघर्षों  के बाद मताधिकार हासिल हुआ था. जैसे सामंतवाद में सब लोगों पर कुछ लोगों के शासन की विचारधारा धर्म थी उसी तरह आधुनिक राज्य में सब पर कुछ लोगों के शासन की विचारधारा राष्ट्रवाद. आधुनिक संवैधानिक जनतंत्र आम आदमी को संवैधानिक, समान मौलिक अधिकार देता है तथा उनके दमन के  संवैधानिक प्रावधान करता है. वैसे जिस तरह पूंजी का कोई राष्ट्र नहीं है, उसी तरह मजदूर का भी कोई राष्ट नहीं होता. लेकिन यहां मकसद संवैधानिक राष्ट्रवाद के गुण-दोष की चर्चा नहीं है, वह अलग लेख का विषय है. जिस औपनिवेशिक देशद्रोह कानून के तहत जेयनयू के क्रांतिकारी छात्रों को बंद किया गया उसकी अवांछनीयता भी इस लेख का विषय नहीं है. उस पर गांधी, नेहरू से लेकर अमर्त्य सेन तक काफी कुछ लिखा जा चुका है.

प्रसिद्ध इतिहासकार एरिक हॉबरमास के अनुसार, आधुनिक राष्ट्र-राज्य में देशभक्ति की एक मात्र कसौटी संविधान में निष्ठा है न कि अभिव्यक्ति की  संवैधानिक आजादी पर क्रूर हमला. गृहमंत्री राजनाथ सिंह जेयनयू को निराधार देशद्रोह का अड्डा घोषित कर देते हैं. मानव संसाधन मंत्री, स्मृति इरानी ने संसद में जवाहरलाल नेहररू विश्वविद्यालय के 8 छात्रों का नाम गिनाकर उन्हें देशद्रोही घोषित कर दिया जब कि मामला अदालत में विचाराधीन है. आरोपी को, एक मंत्री द्वारा संसद में दोषी करार देना क्या संसद तथा संविधान की अवमानना है क्या संसद तथा संविधान की अवमानना देश-द्रोह नहीं है? शहीद-ए-आज़म भगत सिंह का नाम हटाकर चंडीगढ़ हवाई अड्डे को किसी संघी के नाम  कर देना स्वाधीनता संग्राम का अपमान नहीं है? संघी तो गुरू गोलवल्कर की राय मानकर, अंग्रेजी राज से लड़ने में न व्यर्थ कर अपनी ऊर्जा अंदरूनी दुशमनों” मुसलमानोंईशाइयों तथा कम्युनिस्टों से लड़ने के लिए संरक्षित कर रहे थे. क्या स्वाधीनता संग्राम का अपमान देश-द्रोह नहीं है? अंग्रेजी राज से मोदीराज आने तक इनके अंदरूनी  दुश्मनों में इजाफा हो गया है. प्रधानमंत्री द्वारा खुद को हिंदू राष्ट्रवादी बताना संविधान के प्राक्कथन का उल्लंघन देशद्रोह नहीं है? क्योंकि संविधान भारतीय राष्ट्र की बात करता है, हिंदू-मुस्लिम-सिख राष्ट्र का नहीं. आगरा में भाजपा के सांसद-विधायकों की बैठक में एक केंद्रीय मंत्री द्वारा मुसलमान समुदाय को गद्दार कह कर उनके खिलाफ हथियार उठाने का आह्वान संविधान के प्राक्कथन की धज्जियां नहीं उड़ाता? भाजपा नेता सुब्रहमण्यम स्वामी भारत के एकमात्र विद्वान प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू की विद्वता पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए, संसद के विधेयक द्वारा उनके नाम से बने विश्वविद्यालय का नाम बदलने की हिमायत के साथ उसे देशद्रोहियों की तलाश के लिए 4 महीने बंद करने की मांग करते हैं. क्या यह एक स्वतंत्रता सेनानी तथा संसद की अवमानना नहीं है?     

संघ समूहों द्वारा संविधान की अवमानना के ये तो चंद नमूने हैं. मामला, एक खोजो हजार मिलने का है. क्यों नहीं उच्चतम न्यायलय संविधान की खुली अवमानना के देश-द्रोह स्वतः संज्ञान लेकर इन देशद्रोहियों पर मुदमा चलाता तथा उन्हें देश भक्ति की सनद बांटने से रोकता? इसे अदालत की अवमानना न माने, लेकिन किसी राज्य की न्यायपालिका का चरित्र वैसा ही होता है जैसा कि राज्य का. कन्हैया की जमानत के आदेश में न्यायाधीश प्रतिभा रानी की अवाछनीय “ऐतिहासिक” टिप्पणियां, इसका ज्वलंत सबूत है. देशद्रोह के जिस औपनिवेशिक अधिनियम के तहत जेयनयू के छात्रों को बंद कर मौजूदा व्यवस्था युवा उमंगों के अविरल प्रवाह को रोकने की हिमाकत कर रही है, तिलक, गांधी तथा भगत सिंह को देशद्रोह के उसी अधिनियम के तहत सजा सुनाने वाले न्यायाधीशों का चरित्र वही था जो औपनिवेशिक राज्य का.  रोम जल रहा था, नीरो बांसुरी बजा रहा था. हिंदुस्तान जल रहा है मोदी जी मन की बात कह रहे हैं. 
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केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद सरकारी मिलीभगत से विश्वविद्यालयों पर बढ़ते भगवा हमले को देखते हुए आरयसयस शब्द हिटलर के यसयस (युनिस्टोंसके आतंक की याद दिलाने लगा हैअजीब समानता है कई घटनाक्रमों मेंएक एबीवीपी का नेता हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के अंबेडकर स्टूडेंट असोसिएसन(एयसएके कुछ छात्र नेताओं की शिकाय़त करता हैहैदराबाद में आरयसयस के प्रचारक रहेकेंद्रीय मंत्री बंदारू दत्तात्रेय मानव संसाधन मंत्री को चिट्ठी लिखते हैं तथा मानव संसाधन मंत्री विश्वविद्यालय कुलपति कोविश्वविद्यालय प्रशासन रोहित वेमुला समेत एयसए के 6 छात्रों को हॉस्टल से निष्कासित कर उन पर कई संस्थानिक प्रतिबंध थोप दियेनिष्कासित विद्यार्थी परिसर में ही खुले आसमान के नीचे बाबा साहब की तस्वीर के साथ विरोध प्रदर्शन कर रहे थेलेखक बनने की चाह रोहित ने एक खत में समेट कर भविष्य के रोहितों के लिए एक संभावित लेखक की बलि दे दीफगवा ब्रिगेड को रोहित की “संस्थानिक” हत्या मंहगी पड़ीउसकी शहादत ने सारे मुल्क में हड़कंप मचा दियादेश भर के विश्वविद्यालय परिसरों में एक मंच से जय-भीम तथा लाल-सलाम के नारों की निरंतरता ने ब्राह्मणवादी हिंदुत्व को बेचैन कर दियाजेयनयू छात्रों के एक समूह द्वारा अफजल गुरू की फांसी की वैधता पर सभा को बहाना बना कर रोहित मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए देशद्रोह की अफवाह फैलाकर जेयनयू पर हमला बोल दिया. संकट में एजेंडे का विषयांतर शासक वर्गों की पुरानी चाल रही हैजेयनयू वैसे भी संघ गिरोह के आंखों की किरकिरी रहा हैएक तीर से दो शिकार एबीवीपी के एक सदस्य की शिकायत पर विद्यार्थियों के एक समूह को कार्यक्रम की नामंजूरी तथा जैसा कि कहा जा रहा है एबीवीपी घुसपैठियों द्वारा पाकिस्तान के पक्ष में नारेबाजीजाली वीडियो का प्रशारण तथा पुलिस कार्रवाईपुलिस-प्रशासन संघ के विभिन्न संगठनों से सांठ-गाठ कर दूसरे संगठनों के कार्यक्रमों पर हमले कर रहा हैउसी तरह हिटलर के तूफानी दस्तेयसए तथा जर्मन पुलिस की मिलीभगत से राजनैतिक विरोधियों, खासकर कम्युनिस्टों के सफाये का अभियान चलाते थे.


जेयनयू पुलिस छावनी में तब्दील हो गया थादेश के गृहमंत्री ने विश्वविद्यालय को देश-द्रोह का अड्डा घोषित कर दिया तथा स्मृति इरानी ने तुरंत परिसर से देशद्रोहियों के सफाया का ऐलान कर दियाछात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को गिरफ्तार कर लिया गया. उमर खालिद तथा अनिर्बन ने कुछ दिनों बाद आत्म समर्पण कर दिया. प्रामाणिक नास्तिक, मार्क्सवादी उमर का नाम उमर होना खतरनाक हो गया. मुसलमानों पर संघी सामान्यीकरण को पुख्ता करने तथा सांप्रदायिक नफरत बढ़ाने के मकसद से उसे कश्मीरी अतंकवादी के रूप में चित्रित करने लगे जो कई बार पाकिस्तान जा चुका है, जबकि उसके पास पासपोर्ट नहीं है. लोकतंत्र में हर आवाम को आत्म निर्णय का अधिकार होना चाहिए, कश्मीर को भी. किसी आवाम को अननंतकाल तक फौज से कब्जे में नहीं रखा जा सकता. कन्हैया तो उच्च न्यायालय की विदुषी न्यायाधीश की हास्यास्पद नशीहतों के साथ 6 महीने की अंतरिम जमानत पर छूटकर अपने भाषण से दक्षिणपंथी उग्रवादियों की बोलती बंद कर दी. उमर तथा अनिर्बन की चिंता है, वे अभी भी हिरासत में हैं. आरोप है कि वे कश्मीर की आजादी जैसे राष्ट्र विरोधी नारे लगा रहे थे. जैसा कि बाद में पुलिस ने माना कि भारत विरोधी नारे कुछ बाहरी लोग लगाकर भाग गये. प्रेस क्लब में कश्मीर पर प्रो गिलानी की मीटिंग के लिए हॉल बुक करने के लियेप्रगतिशील लेखक संघ के राष्टीय सचिव प्रो अली जावेद को 2 दिन घंटो बैठाकर पूछताछ के नाम पर प्रताड़ित किया गयायहां भी कुछ लोगजेयनयू की ही तरह कश्मीर की आज़ादी के नारे लगा कर चले गयेप्रोफेसर गिलानी अभी भी हिरासत में हैं. अली जावेद सीपीआई के हैं तथा कन्हैया सीपीआई की छात्र शाखा का एआईयसयफ का सदस्य हैसीपीआई का कश्मीर पर वही पार्टी लाइन है जो सरकार कीजेयनयू का तांडव तथा देशद्रोह का शगूफा रूपये तथा प्रधानमंत्री की गिरती शाख एवं विकास की खुलती पोल से ध्यान बंटाने और रोहित की शहादत से उमड़े विरोध में जयभीम तथा लालसलाम के सम्मिलित नारे की धार को कुंद करने की पूर्व नियोजित साजिश लगती है.


जेयनयू पर हमलाअध्ययन-मननविचार-विमर्शवाद-विवाद-संवादशोध-अन्वेषण के जरिये नवीन विचारों तथा तर्क-विवेक आधाररित विश्वदृष्टि के निर्माण के केंद्र के रूप में विश्वविद्यालय की अवधारणा पर हमला हैविश्वविद्यालय का काम भक्तिभाव नहीं तार्किक मानस का निर्माण करना हैविद्रोही भाव जगाना है जो बासी पुरातन की जगह नवीन की रचना कर सकेप्रगतिशील विकल्प ढूढ़ सकेजैसे कोई अंतिम सत्य नहीं है वैसे ही कोई अंतिम ज्ञान नहीं होताज्ञान एक निरंतर प्रक्रिया हैजिसके चलते मानव इतिहास पाषाण युग से अंतरिक्ष युग तक पहुंच सकासारी महानताएं तथा परम ज्ञान अतीत में ढूंढ़नावर्तमान की समस्याओं से मुंह चुराना तथा भविष्य के ख़िलाफ साजिश हैजेयनयू इस साज़िश को नाकाम करने का मजबूत गढ़ हैइसीलिए हर तरह के दक्षिणपंथी तथा कट्टरपंथी इस गढ़ को ढहाने के उपक्रम करते रहे हैं लेकिन इसकी जमीन में तर्क-विवेक-विद्रोह के बीज इतनी गहराई तक हैं कि कुतर्क तथा दुराग्रह-पूर्वाग्र जनित सरकारी हमलों से यह गढ़ ढह नहीं सकता.

देशभक्ति (पैट्रियाटिज्म या नेसनलिज्म), जिसे एंडरसन ने हरामखोरों का पनाहगाह बताया हैएक आधुनिक विचारधारा तथा अस्मिता का नया मानदंड है जो प्रबोधनकाल में राजवंशों के शासन तथा प्रजा की वफादारी की दैविक वैधता के विनाश के बाद अस्तित्व में आयावैधता के स्रोत के रूप में रूप ईश्वर उसकी विचारधारा के रूप में धर्म की मान्यता अमान्य होने के बाद सामंतवाद के खंडहर पर निर्मित संवैधानिकपूंजीवादी राष्ट्रराज्य की वैधता का श्रोत इसके जैविक बुद्धिजीवीउदारवादी चिंतकों ने व्यक्तियों में आरोपित कियायद्यपि व्यक्ति संप्रभुता का सैद्धांतिक स्रोत बना रहा क्योंकि मतदान से वह अपनी संप्रभुता सरकार को हस्तांतरित कर देता हैरूसो ने इस प्रतिनिध्व के जनतंत्र की जगह सहभागी जनतंत्र तथा धर्म की जगह नागरिक धर्म का सिद्धांत दियासर्वसहमति से बने कानून के पालन को नागरिक धर्म बतायाप्रसिद्ध इतिहासकार हाबरमास ने आधुनिक राष्ट्र राज्य देशभक्ति को संविधान के प्रति निष्ठा के रूप में परिभाषित कियासंप्रभुता संविधान में निवास करती है  कि सरकार मेंया बहुसंख्यक समाज की प्रथाओंमान्यताओं में और  ही किसी खास धर्मिक-मिथकीय संस्कृति मेंमानव संसाधन मंत्री स्मृति इरानी ने संसद में एक दुर्गाभक्त होने के नाते जेयनयू में 2013 में महिषासुर आयोजन को देशद्रोह बतायाएबीवीपी के सदस्यों ने इस पर भी हुड़दंग किया थाइतने महत्वपूर्ण संवैधानिक पद पर बैठे लोग अगर संविधान के बारे में बिल्कुल अनभिज्ञ हों तो देश का दुर्भाग्य हैभारत एक बहुसांस्कृतिक देश हैमिथकों के सबके अपने अपने आन ख्यान हैँबंगालझारखंड तथा उत्तर प्रदेश एवं बिहार की कैमूर पहाड़ियों की कई जनजातियों के आख्यान में महिषासुर न्यायप्रिय असुर राजा था जिसे देवताओं ने छल-कपट से मार दिया थाइन समुदायों में महिषासुर ऐसे ही पूजा जाता है जैसे ऋग्वैदिक आर्यों के वंशजों में दुर्गाहर समुदाय को अपनी सास्कृतिक गतिविधियों का संवैधानिक अधिकार हैये समुदाय सांस्कृतिक स्वतंत्रता के अपने संवैधानिक अधिकार का उपयोग कर संविधान के प्रति अपनी निष्ठा जाहिर करते हैंउनके संवैधानिक अधिकारों मे विघ्न डालने वाले संविधान का अपमान करते हैं अतः देश द्रोही हैंदेश द्रोही महिषासुर उत्सव मनाने वाले नहीं बल्कि धर्मोंमाद फैलाकर उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन करने एबीवीपी के लोग ही नहीं संसद में संविधान की धज्जियां उड़ाने वाली समृति इरानी हैदेशद्रोही भाजपा का वह मर्दवादी महासचिव है जो राज्य सभा के एक सांसद को आंदोलन में शिरकत करने के लिए अपनी बेटी को गोली मारने की हिदायत देता हैगुजरात नरसंहार के लिए ही नहींनरेंद्र मोदी को संविधान के प्राक्कथन की धर्म निरपेक्ष राज्य की अवधारणा की धज्जियां उड़ाते हुए खुद को हिंदू राष्ट्रवादी घोषित करने के लिये देशद्रोह में जेल में होना चाहियेइफरात बच्चे पैदा करने की सलाह देने वाले साक्षी महराज तथा हर बात पर मोदी विरोधियों को पाकिस्तान जाने या हिंद महासागर डुबाने की धमकी देने आदित्यनाथ जैसे लंपट सांसद देश द्रोही हैंन कि अभिव्यक्ति तथा सभा के संवैधानिक मौलिक अधिकारों का उपयोग करने वाले जेयनयू के छात्रसंविधान के धर्मनिरेक्ष चरित्र तथा कानून के समक्ष समानता के संवैधानिक अधिकार की धज्जियां उड़ाते हुए मुसलमानों को मताधिकार से वंचित करने की बात करने वाला वह केंद्रीय मंत्रीजो लगातार संविधान की धज्जियां उड़ाता रहा हैदेशद्रोही है  कि विरोध के संवैधानिक अधिकार का उपयोग कर संविधान को प्रति निष्ठा जताने वाले देशभक्त विद्यार्थीमोदी सरकार अपने साम्राज्यवादी आकाओं से उच्च शिक्षा को गैट्स में शामिल करने पर सहमति का वाय़दा कर चुकी हैऩई उच्च शिक्षा नीति तथा विश्वविद्यालयों पर हमला उच्च शिक्षा को खरीद-फरोख्त का माल बनाकर विश्व बैंक को गिरवी रखने का पथ प्रशस्त करने के कदम हैंजेयनयू के छात्र सरकार की साम्राज्यवादी साजिशों के विरोध के प्रमुख किरदार हैंइस लिये युवा उमंगों को हतोत्साहित करने का यह कायराना हमलासंविधान का अपमान करने वाले ये दक्षिणपंथी उग्रवादीदेशद्रोही अब देशभक्ति की सनद बांट रहे हैंअंधेर नगरीदेशद्रोही राजा.

शासक वर्ग समाज के प्रमुख अंतरविरोधों को दबाने के लिये कृतिम अंरविरोधों का हव्वा खड़ा करता है तथा कई बार कामयाब भी होता हैसंघ संचालित मोदी सरकार अपनी आर्थिक विफलताओं तथा विश्वबैंक के सम्मुख समर्पण की राष्ट्र राष्ट्रविरोधी नीतियों से ध्यान हटाने के लिये संघ के विभिन्न गिरोहों के अंध-राष्ट्रवाद तथा धर्मोंमाद के मुद्दे निर्मित करती रही हैसंघ गिरोहों द्वारा पनसारेडाभोलकरकलबुर्गी तथा अखलाक की हत्याएंइसी रणनीति का हिस्सा लगती हैंकलबुर्गी तथा अखलाक की हत्याओं के विरुद्ध दुनिया के लेखकोंसाहित्यकारोंविद्वानों की आवाज़ आवाम तक पहुंचने लगी थी तो दक्षिणपंथी उग्रवाद को लगने लगा कि चुन-चुन कर तर्कशील चिंतकों की हत्या से धर्मोंमाद की नीति हानिकारक हो रही थीतब इसने राष्ट्रोंमाद फैलाने का सहारा लियारोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या कर दीदेशद्रोह का आरोप लगाकररोहित का अपराध यह ही नहीं था कि वह दलित था बल्कि वह एक चिंतनशील नागरिक था जिसका तथा जिसके संगठन अंबेडकर स्टूडेंट असोसिएसन के सरोकारों का संसार दलित मुद्दों तक नहीं सीमित थाव्यापक थाएबीवीपी की धमकियों की परवाह  कर वह अभिव्यक्ति की आज़ादी की हिमायत में मुज़फ्फरनगर बाकी है की स्क्रीनिंग करवाता हैगौरतलब है कि दिल्ली तथा कई जगहों पर एबीवीपी के हुड़दंग के चलते ये फिल्म नहीं दिखाई जा सकी थीवह दुनिया के तमाम और लोगों की तरह फांसी की बर्बर सजा का विरोधी थाचाहे वह याकूब मेमन की हो या बाबू बजरंगी कीवह साम्राज्यवादीभूमंडलीय पूंजी की दलाली का विरोधी थाकहने का मतलब कि वह अन्याय के विरुद्ध सभी संघर्षों से सरोकार रखता था.


प्रतिष्ठानात्मक ब्राह्मणवाद अंबेडकरी रामों(राम अठावलेराम विलासउदिक(राम राजजैसे भक्त दलित बर्दाश्त कर सकता हैरोहित जैसा संघर्षशीलचिंतक दलित नहींस्मृति इरानी ने राष्ट्रवादी झूठ बोला कि रोहित दलित नहीं ओबीसी थाजैसे कि किसी ओबीसी की सांस्थानिक हत्या कम आपराधिक हो? हैदराबाद विश्वविद्यालय विश्वविद्यालय के अंबेडकर असोसिएसन द्वारा संघ के छात्रसंगठन एबीवीपी को वैचारिक चुनौती से मानव संसाधन मंत्रालय का ब्रह्मांड ऐसे हिलने लगा जैसे संबूक की तपस्या सेराम के दरबार का ब्रह्मांड हिल गया था तथा भरतहनुमान जैसे सेवकों को भेजने की बजाय स्वयं जाना पड़ा था उनका बध करनेइन एकलव्यों का अंगूठा काटने के निर्देश के कई पत्र हैदराबाद केंद्रीय विवि के द्रोणाचार्यों को लिखारोहित नामक इस एकलव्य ने अंगूठा तो नहीं दिया लेकिन द्रोणाचार्यों की ब्राह्मणवादी हिमाक़त के विरोध में जान देतीशहादत ने उंनीदे शेरों को जगा दियादेश-विदेश के परिसरों में छात्र-शिक्षक रोहित की शहादत के सम्मान में उद्वेलित हो गयेएक ही मंच पर लाल तथा नीले झंडे लहराने लगे तथा जयभीम और लाल सलाम के नारे साथ साथ लगने लगेदक्षिणपंथी उग्रवाद बौखला गयाजेयनयू ऑक्युपाई यूजीसी आंदोलन के साथ इस विरोध प्रदर्शन का भी का केंद्र बन गयायहां की विचार-विमर्श तथा वाद-संवाद की संस्कृति भक्तिभाव तथा अधदेशभक्ति के विकास के प्रतिकूल हैइस लिये यह हर किस्म के दक्षिणपंथियों की आंख किरकिरी रहा हैमौका पाकर हमला कर दियालेकिन वहां की माटी में तर्कविवेकविद्रोह के इतने बीज पड़े हैं कि यह हमला संघी फासीवाद के अंत की शुरुआत साबित होगा.


दक्षिणपंथीउग्रवादी अपवादों को छोड़कर दुनिया का समूचा बौद्धिक वर्ग जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेयनयूके साथ खड़ा हैउस जेयनयू के साथ जो शाखाप्रशिक्षित गृहमंत्री को देशद्रोह का अड्डा नज़र आता है और जिसे सास-बहू सीरियल से राजनैतिक प्रशिक्षण पाने वाली मानव संसाधन मंत्री देशद्रोहियों से मुक्त करने का ऐलान कर देती हैंजेयनयू में एबीवीपी के प्रचारप्रमुख रह चुकेविकास पाठक ने सरकारी दमन का निंदा करते हुये जेयनयू को विचार-विमर्श का केंद्र बताने साथ खुद को सजग नागरिक बनाने का श्रेय जेयनयू को दिया हैएबीवीपी जेयनयू के दो नेताओं ने संगठन से इस्तीफा दे दियाकहने का मतलब कि जेयनयू के जनतांत्रिक शैक्षणिक संस्कृति में कुछ खास बात है जो दक्षिणपंथी उग्रवादियों के भक्तिभाव में भी सेंध लगा देती हैउनमें भी सवाल का साहस तथा सोचने की शक्ति भर देती हैयह खास बात भगवानभूत या देशभक्ति की तरह कोई अदृश्यअमूर्तदार्शनिक अवधारणा नहीं बल्कि विचार-विमर्श तथा संघर्षों से ऐतिहासिक रूप से निर्मित विरासत हैइस विरासत से घबराकर संघ संचालित मोदी सरकार ने जेयनयू पर युद्ध थोपकर दुनिया दो खेमों में बांट दिया --- तर्क तथा विवेक का खेमा और कुतर्क तथा धर्मोनमादी अंध-देशभक्ति कानॉम चॉम्स्की समेत विश्व 96 जाने-माने विद्वान इस युद्ध की कड़ी भर्त्सना करते हुए पत्र लिख कर ज्ञान के इस केंद्र को नष्ट होने से बचाने का भारत के राष्ट्रपति से आग्रह किया हैऐसा ही पत्र जेयनयू की जनतांत्रिक विरासत के निर्माण के सहभागी रहेऑक्सफोर्डकैम्ब्रिज जैसे नामी गिरामी विश्विद्यालयों में पढ़ा रहे 556 शिक्षाविदों ने विश्वविद्यालय के कुलपति को लिखा. 15 अक्टूबर को युवा उमंगों की 3 किमी लंबी कतार जयभीम लाल सलाम के नारों के साथदमन से बेपरवाह जंगे-आज़ादी के नग़में गा रही थीसबके सब देशद्रोही? 18 अक्टूबर को तो देशद्रोहिओं के समर्थन में लगा पूरा शहर ही उमड़ पडापिछले 30 सालों का सबसे बड़ा मार्चसब देशद्रोही हैंसरकार देशद्रोह का हौव्वा खड़ाकरसवाल की संस्कृति के इन साहसी सिपाहियों को गिरफ्तार कर परिसरों में भय का माहौल खड़ा करना चाहती है लेकिन इतिहास बताता है कि किसी भी तानाशाही का शिक्षा संस्थान पर हमला आत्मघाती साबित होता है.

संविधान में निष्ठा को दर किनार करने वाले देशद्रोहियों के शासन में संविधान मे निष्ठा रखने वाले निर्दोष देशभक्तों की प्रताड़ना नई बात नहीं हैलेकिन ऐसे देशद्रोही अत्याचारी शासकों का दयनीय अंत होता है चाहे वह मुसोलिनी हो हिटलर या हलाकूजेयनयू पर अपने वफादार कुलपति के जरिये पुलिस छावनी में तब्दील करने की असंवैधानिकयानि देशद्रोही कार्रवाई के तुरंत बाद जांच की संवैधानिक औपचारिकताओं को धता बताकर पुलिस कार्रवाई के देशद्रोह के तुरंत बाद गृहमंत्री तथा मानवसंसाधन मंत्री के बैखलाहट के बयानों तथा इनके उबाल की बेचैनी से साफ ज़ाहिर है कि योजना सत्ता के शिखर पर बनी.


 जेयनयू के प्रति दक्षिणपंथी उग्रवादियों की नफरत पुरानी हैमोदी के सत्तासीन होते ही वह नफरत मुखर आक्रामकता में बदल गयीकोई मानसिक रोगी जेयनयू की बहादुर वीरांगनाओं को वेश्या से बदतर कहकर अपनी दक्षिणपंथी जहालत का परिचय देता है कोई भाजपा विधायक जेयनयू में इस्तेमाल कंडोमों की गिनती करके महान भारतीय संस्कृति की सेवा करता है तो कोई संविधानद्रोही यानि देशद्रोही केंद्रीय मंत्री मुसलमानों को मताधिकार से वंचित करने की माग करता हैजिन देशद्रोहियों को जेल में होना चाहिए वे देशभक्ति की सनद बांटते हुएसंविधान का सम्मान करने वाले देशभक्तों को देशद्रोही कहकर उन्हैं जेल भेज रहे हैं तथा यदि स्टिंग ऑपरेसन सही है तो ये देशद्रोही कानून हाथ में लेकरइन क्रांतिकारी छात्रों की हत्या के फिराक़ में थेजिन गुंडों ने संविधान की धज्जियां उड़ाते हुए कायर कुत्तों की तरह पुलिस प्रश्रय 15 फरवरी को मीडिया और बुद्धिजीवियों पर तथा 17 फरवरी को कन्हैया पर जानलिवा हमला किया थाउनका सरगना गृहमंत्री का खास कृपा पात्र हैपुलिस प्रशासन तो संविधान का अपमान करने वाले इन देश द्रोही दक्षिणपंथी उग्रवादियों के नियंत्रण में हैलेकिन दरबार--वतन में ये अपनी सजा से नहीं बच पायेंगे.

इनकी बातों से आपको नाजी जर्मनी गोयेबेल्स तथा नाजी तूफानी दस्ते (यसय़सकी याद नहीं आती जिन्होने विश्वविद्यालयों तथा पुस्तकालयों को तहस-नहस कियाहिटलर की शह पर जिन्होने राइस्टाग (संसदमें आग लगाकर आरोप कम्युनिस्टों पर ललगा दिया तथा हिटलर कम्य़ुनिस्टों के संहार में जुट गया? 1933 में हिटलर अल्पमत की सरकार का नेता था कम्युनिस्टों के निष्कासन से संसद में नाज़ियों का बहुमत हो गया था. 2002 में गुजरात की सरकार की जनविरोधी नीतियों के के चलते भाजपा की लोतप्रियता रसातल को जा रही थीउस समय भाजपा के कुछ सूत्रों के अनुसारअडवाणीप्रमोद महाजन तथा अरुण जेटली की पहल पर मोदी को मुख्यमंत्री बनाया गयामोदी ने गोधरा के प्रायोजन के माध्यम से प्रदेश में क्रिया प्रतिक्रिया का माहौल बनाकर गुजरात में नरसंहारलूटआगजनी तथा फर्जी मुठभेड़ों के जरिये नफरत का माहौल खड़ा कियाधर्मोंमादी ध्रुवीकरण से सत्ता हासिल किया. 2014 के चुनाव के पहले शामलीमुज़फ्फर में इन्होने गुजरात दुहराने की कोशिस की तथा धर्मोंमादी ध्रुवीकरण में सफल रहेकुतबा गांव में 8 हत्यायें हुईंकुतबा में जनसंहार का नायक संजीव बालियान मोदी सरकार में मंत्री हैबिहार में दंगे करवाने में असफल इन्होंने दादरी रचादादरी में गोमांस की अफवाह से अखलाक की पूर्वनियोजित हत्या से बिहार चुनाव पर असर  देख ये दलितों तथा जेयनयू को निशाना बनाकर राष्ट्रोंमादी ध्रुवीकरण से आसाम तथा अन्य राज्यों में चुनावी फसल काटना चाहते हैंलेकिन कुछ लोगों को कुछ समय तक मूर्ख बनाया जा सकता हैसबको हमेशा के लिए नहीं.

 रत में नवमैकार्थीवादः जेयनयू तथा राष्ट्रद्रोह

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