Renu Ramesh बहुत सही बात. बात कम शब्दों की होनी चाहिए. यह समकालीन तीसरी दुनिया के अगले अंक में आने वाला लंबा, विश्लेषणात्मक लेख है. अफजल गुरू की बरसी पर ए सिटी विदाउट सिटी नामक सांस्स्कृतिक कार्यक्रम वहां के एक बहुत छोटे ग्रुप ने आयोजित किया था जो कि असमय था क्योंकि जेयनयू के छात्र यूजीसी ऑकूपॉई तथा रोहित वेमुला के आंदोलनों में लीन थे. अफजल गुरू को महबूहा मुफ्ती शहीद मानती है भाजपा उसके साथ सरकार बना रही है. हम और हमारे ये क्रांतिकारी बच्चे तो फांसी की मध्ययुगीन सजा के सिद्धांततः खिलाफ हैं.चाहे वह सामूहिक हत्या-बलात्कार-फर्जी मुठभेड़ के आयोजक मोदी -अमित शाह की क्यों न हो. अफजल गुरू की फांसी के तर्कों तथा उसकी फांसी की परिस्थितियों को जस्कुटिस काटजू, जस्टिस सच्चर जैसे कई सुप्रीम कोर्ट के जजों तथा सोली, सोराबजी, इंदिरा जयसिंह जैसे कई कानूनविदों तथा हर्ष मंदर जैसे पूर्व नौकरशाहों ने इस फांसी को न्यायिक हत्या बताते हुए कई लोगों फांसी के वक्त लेख लिखे क्या वे देश द्रोही हो गये. जेयनयू हर तरह के विचारों की अभिव्यक्ति का स्पेस प्रदान करता है, विचारों का विरोध विचारों से किया जाता है लाठी से नहीं. विचारों में दम है तो जीतेंगे. हमारे दिमागों में धर्म तथा देशभक्ति की अमूर्त भावनाएं भरी हैं कि किसी बात पर बिन सोचे-समझे भड़क उठती हैं. कितने वीडियो वाइरल हो गये कि भारत की बरबादी के नारे सरकारी तथा संघी घुसपैठियों ने लगाए लेकिन बंद दिमाग उसे स्वीकार नहीं करता. ये तर्कशील क्रांतिकारी बच्चे देशश को खूबसूरत बनाने के लिए कुर्बान हो सकते हैं, इसी लिए विश्वबैंक के दलालों की सरकार का विरोध कर रहे हैं. पूरा लेख पढ़ सको तो काफी जानकारी मिलेगी. मुझे आवाम के दुश्मनों से देशभक्ति की सनद नहीं चाहिए जिन्हें पता ही नहीं देशभक्ति क्या है, नहीं तो परिभाषा बता दो.
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