वह कहता है उसको ही नहीं सबको रोटी कपड़ा मकान चाहिए
मेहनतकश को काम का पूरा दाम चाहिए
पूंजी के संचय पर भी उसको एक लगाम चाहिए
वह कहता है उसे नहीं आवाम को इंसाफ चाहिए
इतना ही नहीं उसे भक्तिभाव के प्रजनन पर पूर्ण विराम चाहिए
उसके देशद्रोह का इससे अधिक क्या प्रमाण चाहिए
उसको फांसी दे दो
वह कहता है जेयनयू से पुलिस हटाइए
उसे वर्जित विषयों पर भी विचार-विमर्श की आजादी चाहिए
जेयनयू ही नहीं सभी परिसरों में उसे वाद-विवाद-संवाद आजादी चाहिए
इतना ही नहीं उसे मर्दवाद और ब्राह्मणवाद की बर्बादी भी चाहिए
उसके देशद्रोह का इससे अधिक क्या प्रमाण चाहिए
उसको फासी दे दो
वह कहता है उसे विश्वबैंक से गैट्स करार का किताब चाहिए
राष्ट्रभक्त अडानी को आस्ट्रेलिया में व्यापारिक कर्ज़ का हिसाब चाहिए
अफजल गुरू की फांसी के न्यायिक कुतर्क का उसे जवाब चाहिए
गुजरात-मज़फ्फरनगर ही नहीं हर बात पर सवाल का उसे अधिकार चाहिए
इतना ही नहीं मनुस्मृति को जलाने का हक़ बेहिसाब चाहिए
उसके देशद्रोह इससे अधिक क्या प्रमाण चाहिए
उसको फासी दे दो
वह कहता है उसको समाजवाद चाहिए
पूंजीवाद होना बर्बाद चाहिए
दुनिया में किसान मज़दूर का राज चाहिए
शोषण-दमन का नाश चाहिए
इतना ही नहीं मताधिकार से आगे उसे सचमच की आज़ादी चाहिए
उसके देशद्रोह इससे अधिक क्या प्रमाण चाहिए
उसको फासी दे दो
(गोरख पांडे की 178 में आंध्र के किसान क्रांतिकारियों की फांसी पर लिखी कविता नहीं खोज पाया तो उसकी तर्ज तथा शैली की नकल पर तुकबंदी)
(ईमिः 04.03.2016)
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