मद्रास आईआईटी में फुले-अंबेडकर स्टडी सर्कल पर प्रतिबंध से शुरू हुआ उच्च शिक्षा संस्थानों पर भगवा हमला सर्वव्यापी होता जा रहा है. हैदराबाद, जेयनयू, इलाहाबाद, बीयचयू......... बीयचयू के 6 छात्रों के निष्कासन की खबर की वहां के एक छात्र की पोस्ट पर अपना कमेंट शेयर कर रहा हूं.
गीदड़ की मौत आती है तो शहर की तरफ भागता है, फासीवादी विश्वविद्यालय की तरफ. विचारों से भयभीत तानाशाह विश्वविद्यालयों पर हमला करता है.आआईटी, मद्रास, हैदराबाद, जेयनयू, इलाहाबाद,अब बीयचयू. लेकिन जानता नहीं कि युवा उमंगे दबती नहीं, उफान लेती हैं तथा इतिहास रचती हैं. उठो मेरे युवा साथियों, काहिवि की संघर्षों के क्रांतिकारी इतिहास की विरासत को जीवंत करो. निष्कासन परिसर में भय का आलम पैदा करने का तथा व्यक्तिगत प्रशासन का ब्रह्मास्त्र होता है. ज़ुल्म से डरो मत मेरे युवा साथियों, ज़ालिम को डराओ, डरना बंद करके. गोरख पांडे की कविता है कि वे डरते हैं कि निहत्थे लोग डरना न बंद कर दें. जेयनयू के छात्रों ने नया नारा दिया है, पढ़ने के लिए लड़ो, ज़ुल्म से लड़ने के लिए पढ़ो. क्योकि निर्भीकता आजादी की शर्त है, भयभीत व्यक्ति आज़ादी के आनंद का गुरुत्व नहीं समझ सकता. क्या कर लेगा वीसी? निकाल देगा? कितनों को निकालेगा? सर भी बहुत बाजू भी बहुत कटते भी चलो, बढ़ते भी चलो, चलते भी चलो कि अब डेरे मंज़िल पर ही डाले जायेंगे. युवा उमंगों से तूफान खड़ा कर दो, लेकिन एबीवीपी की तरह लंपटता से नहीं, जेयनयू की तरह प्रज्ञा से. नया इतिहास रचने का अवसर है. पूरा मुल्क जेयनयू में तब्दील कर दो. आकाश को जयभीम-लाल सलाम के नारों से भर दो. निष्कासित, बहादुर साथियों को लाल सलाम. मैं भी एक आंदोलन में सिरकत के लिए मॉफी न मांगने के लिए जेयनयू से निष्कासित हुआ था, जिसे मैं तमगा समझता हूं. वे चाहते हैं आप रहें लेकिन मॉफी मांगकर, जियें लेकिन सर झुकाकर. सिर उठा कर जीने की शक्ति तथा सुख निष्कासन के कष्ट पर भारी पड़ा. सभी भेदभाव भूलकर 6 छात्रों के निष्कासन से कैंपस को भयभीत करने की साज़िश को नाकाम करने के लिए युवा उमंगों का सैलाब खड़ा कर दो, इतिहास की धार बदल दो. रोहित बेमुला की शहादत से एक सांस्कृतिक क्रांति शुरू हो चुकी है, विवेक तथा आस्था के बीच; तर्क कुतर्क के बीच; विवेक सम्मत संवैधानिक देशभक्ति तथा सांप्रदायिक राष्ट्रोंमाद के बीच; आपको अपना पक्ष चुनना है. जयभीम-लाल सलाम.
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