अयोध्या में उमड़ा जनसैलाब धार्मिक नहीं, धर्मोंमादी राजनैतिक जनसैलाब है। अडवाणी की राम रथयात्रा से शुरू होकर बाबरी विध्वंस के रास्ते प्राणप्रतिष्ठा तक रामलला के नाम पर बहुत रक्तपात तथा बुलडोजरीकरण हो चुका है। यही रामराज्य है? यह धार्मिक नहीं धर्मोंमादी राजनैतिक मूर्ति है, वैसे भी किसी उपन्यास या महाकाव्य के पात्र को ऐतिहासिक बनाना भविष्य की पीढ़ियों को अनैतिहासिकता के अंधे कुंए में झोंकना है। बुद्ध के बाद हमारा समाज अभी तक अगली प्रबोधन क्रांति की प्रतीक्षा में है।
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