इलाहाबाद विवि में गणित का विद्यार्थी था, जब भी पीपीएच से सामाजिक, दार्शनिक या साहित्यिक विषयों की किताबें खरीदता तो मेरे सहपाठी मेरा मजाक उड़ाते थे। आपातकाल (1976) में दिल्ली आते वक्त किराया-खर्च के लिए, फीजिक्स और केमिस्ट्री की टेक्स्ट बुक्स बेच दिया। इलाबाद में यनिवर्सिटी रोड पर किताबों का सेकंड-हैंड कारोबार बहुत ईमानदारी और पारदर्शिता से चलता था। दुकानदार 50 फीसदी में खरीद कर बाइंडिंग करके 75 फीसदी में बेचते थे। लेकिन गणित की ज्यादातर किताबें, खासकर जो इम्तहानी टेक्स्टबुक नहीं थीं, सहेज कर रखा कि कभी पढ़ूंगा, लेकिन 2019 में हिंदू कॉलेज से रिटायर होने के वक्त लगा कि अब गणित पढ़ने का वक्त नहीं मिलेगा और सारी किताबें लाइब्रेरी को दे दिया। कॉलेज के बाग-बगीचे के घर में बांस की झोपड़ी में बड़ी सी लाइब्रेरी बना रखी थी, रिटायर होने के बाद फ्लैट में किताबें की जगह भी कम होती। प्रो. बनवारीलाल शर्मा की लिखी हुई एक अद्भुत किताब थी, जिसे मैं संरक्षित रखना चाहता था लेकिन 1977-78 में एक सज्जन यूपीएसएसी की तैयारी के लिए लिये और लौटाए नहीं। Fundamentals of Abstract Algebra कवर पर लेखक के नाम की जगह बहुत से समकेंद्रिक वृत्तों (concentric circles ) [ शून्यों] के बीच Zero लिखा था, अद्भुत किताब थी। शून्य पर बहुत लंबा चैप्टर था। इवि के गणित विभाग की लाइब्रेरी में जरूर होगी। शर्माजी शिक्षक भी अद्भुत थे। जब भी इलाहाबाद जाता प्रयाग विद्यापीठ में उनसे मिलने जरूर जाता। अंतिम मुलाकात मार्च 2013 में हुई, लंबी बातचीत में वे पानी के कॉरपोरेटीकरण को लेकर चिंतित थे। अगली यात्रा में विद्यापीठ के एक कमरे के गेस्टहाउस में रुकने के वायदे के साथ हमने विदा ली थी. लेकिन उसके पहले ही उन्होंने दुनिया से विदा ले ली। उनकी यादों को नमन।
मैं पोलिटिकल इकॉनॉमी पढ़ते समय पूंजीवाद के उदय की समझ के लिए छात्रों को 4 उपन्यास बताता था और कहता था सभी या कोई भी पढ़ लें। थॉमस हार्डी (फार फ्रॉम मैडिंग क्राउड); ब्रेख्ट (थ्री पेनी ऑपरा); लॉरेंस (सन्स एंड लवर्स) और दोस्तोवस्की (द ईडियट)। विषयांतर के लिए माफी।
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