Thursday, January 11, 2024

शिक्षा और ज्ञान 337 (ब्रूनो)

एक पोस्ट पर एक कमेंट:

आपने कई सवाल एक साथ सतही ढंग से एक साथ उठाए हैं, और वामपंथ के बारे में बजरंगी-तालिबानी कट्टपंथियों की ही भांति फतवेबाजी की है। इसमें आपका दोष नहीं है क्योंकि इतने और इतने गंभीर सवाल एक साथ एक ही कमेंट में सतही ढंग से ही उठाए जा सकते हैं, लेकिन फतवेबाजी से बच सकते थे।

ब्रूनो के बारे में लोग कम ही जानते हैं, वे 16वीं शताब्दी में इटली के एक ब्रह्मांणवेत्ता; रहस्यवादी दार्शनिक; कवि और कलाकार थे। यह समय यूरोप में नवजागरण बौद्धिक क्रांति का समय था जब कवि और कलाकार उहलोक नहीं इहलोक की सुंदरता का बयान और चित्रण कर रहे थे। यह युग यूरोप के अंधे युग के नाम से जाना जाता था क्योंकि विवेक को आस्था की मान्यताओं-अंधविश्वासों से कुचला जाता था। (भारत का समकालीन पौराणिक युग भी इसी तरह का अंधायुग ही था।) सारे इहलौकिक घटनाएं-परिघटनाएं धर्मशास्त्रीय व्याख्या की मोहताज थीं। कवि ब्रह्मांडीय चरित्रों की प्रेम प्रकरण लिखते थे और कलाकार इहलौकिक 'पाप' से बचने के लिए मानवीय आकृतियों पर पंख या सींग जैसे प्रक्षेपणों से अपनी कलाकृतियों को मानवेतर रूप देते थे। नवजागरण के कवि-कलाकारों ने कविता और कला को धर्मशास्त्र के चंगुल से मुक्त किया, राजनीति को मैक्यावली ने। मैक्यावली ने आधुनिक (उदारवादी) राजनैतिक सिद्धांत की बुनियाद रखी जिस पर भवन बनाने का काम हॉब्स, लॉक, मिल..., ने किया। तथा कोपरनिकस, ब्रूनो और गैलीलियो जैसे वैज्ञानिक इहलौकिक परिघटनाओं की धर्मशास्त्रीय पोंगापंथी व्याख्याओं के विपरीत विवेकसम्मत (वैज्ञानिक) व्याख्या कर रहे थे । जहां कवि-कलाकार-राजनैतिक दार्शनिक ईश्वर को उसके रचे ब्रह्मांड की सत्ता की बैधता के श्रोत से वंचित कर रहे थे, वहीं वैज्ञानक उसके नियमों को नकार रहे थे। उसके तत्कालीन तालिबानी-बजरंगी एजेंटों का बौखलाना लाजिम था। विषयांतर के लिए माफ कीजिएगा, बात ब्रूनो की हो रही थी। नवजागरण पर चर्चा की यहां न तो गुंजािश है, न ही जरूरत। ब्रूनो ब्रह्मांड की कोपरनिकस की व्याख्या को आगे बढ़ा रहे थे। उनका मानना था कि सितारे भी अपनी तरह के सूर्य हैं जिनके अपने-अपने सौरमंडल हैं तथा ग्रह और उपग्रह। शासक वर्ग किसी के साथ 'अन्याय नहीं करता', सुकरात और भगत सिंह को भी न्यायालय ने ही समुचित प्रक्रिया के पाखंड के बाद ही सजाए मौत मिली थी। ब्रूनो पर रोमन चर्च की न्यायालय में 7 साल (1593-1600) ईशनिंदा का मुकदमा चला और रोम के चौराहे पर जिंदा जलाकर मौत की सजा मिली। समकालीन न्यायिक फैसलों की बात करने का खतरा नहीं उठा सकता, लेकिन जिस तरह जब एथेंस की अदालत में सुकरात पर मुतदमा चल रहा था, बाहर उंमादी भीड़ सुकरात को मौत के नारे लगा रही थी, उसी तरह ब्रूनो को जब जिंदा जलाया जा रहा था तो उंमादी भीड़ हर्षोल्लास से तमाशा देख रही थी। सुरात पर मुकदमा चलाने वाले नेता एनीटस का नाम कोई नहीं जानता लेकिन आज भी सुकरात सत्य के लिए जान की बाजी लगाने के प्रेरणाश्रोत बने हुए है। ब्रूनो की सजा-ए -मौत के समय के रोमन चर्च के पोप के नाम के लिए मुझे भी गूगल सर्च करना पड़ेगा। उदारवाद और वामपंथ पर फिर कभी, तमाम लोगों पर बिना जाने कि वामपंथ क्या होता है, वामपंथ का दौरा पड़ता रहता है। मार्क्स-एंगेल्स ने 1848 में लिखा था कि पूरे यूरोप के सिर पर कम्युनिज्म का भूत सवार है, अब उसका दायरा भूमंडलीय हो गया है। नमस्कार।

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