एक मित्र ने जय भीम-लाल सलाम नारे के जमीन पर न चलपाने की हकीकत बयान किया। उस परः
लेकिन इसके जमीन पर चलते हुए गति पकड़ने की जरूरत है। मुझे लगता है कि सामाजिक न्याय की अस्मिता की राजनीति अपना ऐतिहासिक दायित्व, लगभग पूरा कर चुकी है, अब जरूरत इसके जनवादीकरण और जय भीम-लाल सलाम नारे को ठोस सैद्धांतिक और व्यावहारिक रूप देने की है। जाति भारतीय इतिहास की एक राक्षसीय हकीकत है, जैसा कि डॉ. अंबेडकर ने कहा है, इस राक्षस सेहमें लड़ना ही पड़ेगा। इतिहास के इस चरण में, सामाजिक न्याय और आर्थिक न्याय के संघर्षों को साथ मिसना पड़ेगा। पूंजीवाद ने जातिवाद (ब्राह्मणवाद) से हाथ मिला लिया है दोनों के शिकारों को भी हाथ मिलाना ही पड़ेगा। जातिवाद का जवाब जवाबी जातिवाद नहीं, जाति का विनाश है, जैसे असमानता का जवाब जवाबी असमानता नहीं, बल्कि पूर्ण समानता है। समानता एकस गुणात्मक अवधारणा है तथा समानता का सुख सर्वोपरि सुख है।
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