बेतरतीब 144 (स्कूली खिक्षा)
हमारे समय (1967) में कक्षा 9 में ही ऐच्छिक विषयों के चुनाव का विकल्प था, हिंदी, अंग्रेजी, गणित अनिवार्य विषय थे विज्ञान समूह में जीवविज्ञान की जगह मैंने संस्कृत लिया था। गणित के बाद दूसरे स्थान पर सर्वाधिक अंक उसी में आते थे। (हिंसक हिंदी आंदोलन के चलते अगले या उसके अगले साल से अंग्रेजी अनिवार्य विषय की सूची से हट गयी थी) इंटर में अनिवार्य हिंदी, अंग्रेजी के अलावा भौतिकी, रसायनशास्त्र और गणित लिया था। यह भूमिका अनायास लंबी हो गयी। बात हिंदी के अंकों की ही करना चाह रहा था। अंग्रेजी समेत बाकी सभी विषयों में बहुत अच्छे अंक आते थे हिंदी में 60% की इच्छा कभी पूरी नहीं हुई । हाई स्कूल और इंटर दोनों में 58-58 अंक ही आए, जबकि मेरी हिंदी ठीक-ठाक है। वैसे परीक्षक परसंतापी रहे होंगे वरना गणित जैसे विषयों को छोड़कर 58 पाने वाले छात्र को 3 सवालों में अद्धे बढ़ाकर साढ़े 59 यानि 60 कर देना चाहिए। इसीलिए जब हिंदी, अंग्रेजी या सामाजिक विज्ञान के विषयों में 95-100 अंक की बात सुनता हूं तो अजीब लगता है। एक शिक्षक के रूप में पाया कि 12वीं में अंग्रेजी में 95% या अधिक अंक पाने वाले छात्र 5 वाक्य लिखने में 7-8 गलतियां करते हैं। लगता है परीक्षकों को बोर्ड से अधिक नंबर देने का निर्देश मिलता है। हमारे समय में विज्ञान विषयों में बोर्ड के टॉपर के 81-82% कुल अंक होते थे। अब तो दिल्ली विवि के अच्छे कॉलेजों में पोलिटिकल साइंस जैसे विषय के प्रवेश में 97-98% कट ऑफ होता है। केवल यूपी बोर्ड के नहीं सभी बोर्डों की परीक्षाओं के अंकों की समीक्षा होनी चाहिए।
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