दंगे होते नहीं कराए जाते हैं, कोई भी दंगा अप्रायोजित नहीं होता और यदि सरकार चाहे तो ज्यादा-से-ज्यादा आधे घंटे में रोके जा सकते हैं, यदि कोई दंगा 3 महीने तक चलता रहे तो उसका मतलब उसके पीछे सरकार का हाथ है। दंगे सांप्रदायिक चुनावी ध्रुवीकरण के कारगर औजार हैं। 2002 का नरसंहार न होता तो न तो गुजरात में भाजपा सरकार बनती न देश में। ध्रुवीकरण बरकरार करने के लिए मॉब-लिंचिंग और कानूनेतर हत्याओं का क्रम जारी रखा जाता है। सांप्रदायिकता धार्मिक नहीं राजनैतिक विचारधारा है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment