सभी प्राचीन सभ्यताओं में देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए बलि की परंपरा रही है। लगता है जीवन के शिकारी चरण की याद में, मनुष्य देवताओं को भोग भी अपने प्रमुख भोजन से कराने का आदी हो गया, जो विरासत किसी-न-किसी रूप में हम आज भी ढोते आ रहे हैं। परंपराएं वैसे भी जीवित पीढ़ियों के मष्तिष्क पर पूर्वजों की लाशों के भार के दुःस्वप्न की तरह होती हैं। हम सब अपनी जगहों और चीजों को प्राचीनता से जोड़कर गर्वान्वित महसूस करते हैं। हमारे क्षेत्र से बहने वाली टौंस नदी को हम तमसा कहते थे।
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Kumar Narendra Singh विकीपीडिया में मध्य प्रदेश में कैमूर पर्वत श्रृंखला से निकलकर 66 किमी पहाड़ी प्रवाह के बाद इलाहाबाद के मेजा तहसील के सिरसा कस्बे में गंगा से मिलती बताया गया है और दूसरी अंबेडकर नगर जिले के एक ताल से निकलकर आजमगढ़ होते हुए बलिया जिले में गंगा से मिलती बताई गयी है। दूसरी वाली हमारे यहां की टौंस है। बलिया से सड़क मार्ग से आते हुए गंगा में मिलने के पहले नदी का बोर्ड देखकर रुककर इसमें हाथ-मुंह धोकर आगे बढ़े थे। रामायण में वर्णित अयोध्या के पास वाली तमसा यही (अपनी टौंस ही) प्रतीत होती है। लेकिन विकीपीडिया में इसकी लंबाई लगता है कम (69 किमी) बताई गयी है।
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