असगर भाई (Asghar Wajahat) भाई ने एक व्यंग्य पोस्ट किया कि आज मशीन से जालसाजी होती है और अक्सर पकड़ लीजाती है। पहले के जमाने में हाथ की सफाई से जालसाजी की जाती थी और लोग इतना ही नहीं कि असली-जाली में फर्क नहीं कर पाते थे बल्कि जाली को असली और असली को जाली समझने लगते थे। उनकी असली डिग्री को किसी इंटरविव में जाली बता दिया गया था। उस पर कमेंट:
आप जैसे पुराने जमाने के लोग नयेपन के विरुद्ध कोई-न-कोई कुतर्क ढूंढ़ ही लेते हैं. जब प्रिंटिंग प्रेस आयाथा तब भी पुरातन लोग छापेख़ाने की किताबों के बारे में इसी तरह की बातें करते थे. आपकी जाली डिग्री की जालसाजी हाथ से की गई थी तो पकड़ा गयी यदि कम्प्यूटर से की गयी होती तो हिंदी की बजाय एंटायर हिंदी में भी एमए की जाली डिग्री होती तो कोई माई का लाल उंगली नहीं उठा सकता था, अगर कोई ऐसी जुर्रत करता तो अदालत उसपर जुर्माना ठोंक देती। अब यह मत कहिए कि आपके जमाने में कम्प्यूटर नहीं था, असली कलाकार जमाने से 10 कदम आगे रहता है.
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