गलत पासपोर्ट का मामला पाकिस्तान की अदालत ने उठाया तथा ईरान का पासपोर्ट सोसल मीडिया पर वायरल हुआ था। अफजल गुरू के के फैसले में जजों ने कहा था कि उसके खिलाफ को ठोस सबूत नहीं था फिर भी सामूहिक Conscience के चलते यह फैसला दिया गया। राम जेठमलानी (तत्कालीन भाजपा एमपी) उसके वकीलों में थे। वह एक पुलिस इन्फॉर्मर था। नंदिता हक्सर (कश्मीरी पंडित) ने उस पर किताब लिखा है। वहां मेरा सिर्फ यह कहना था कि सारे मामले जेयनयू वाले ही क्यों उठाएं, सबसे पहले तो उन्हें जेयनयू का सर्वनाश करने पर उतारू सरकार और संघी ब्रिगेडों के हमलों से बचाना है। जेएनयू के क्रांतिकारी लड़केआतंकवाद के समर्थक नहीं हैंष आतंकवादी और हिंदुत्व फासिस्ट कशमीर को तबाह करनें में एक दूसरे के पूरक की भूमिका निभा रहे हैं। पत्थर का जवाब गोली से देने की की प्रक्रिया में 100 से भी अधिक बच्चे कत्ल कर दिए गए और हजारों को अंधा कर दिया गया। इनका मकसद महज नफरत फैलाना है। कभी राममंदिर के नाम पर कभी गोरक्षा के नाम पर। वीडियो में स्पष्ट हो गया कि जेयनयू में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे एबीवीपी के सौरभ शर्मा ने लगाए थे और जेयनयू के संघी प्रशासन को इसके लिए उस पर 10,000 का जुर्माना लगाना पड़ा।उसी तरह जैसे वीडियो एडिट कर इलाबाद की बच्चियों के अमित शाह मुर्दाबाद के नारे को पाकिस्तान जिंदाबाद बना दिया गया। नफरत से विकास नहीं होता। सत्ता में आने के बाद इन्होंने जिन्ना-गाय-नागरिकता वगैरह के अलावा क्या किया? मुद्दा रोजगार है कि नफरत?
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