Saturday, February 6, 2016

ऐब्सर्डिटी

ऐब्सर्डिटी
क से कबूतर तथा क से कविता
ग से गधा तथा ग से गतिमान
कविता के नाम पर वैसी ही बेहूदगी है
जैसे ह से हिंदू और म से मुसलमान है
सियासत की तारीख के दामन पर
वैसे ही जैसे डपोर-ढोर है वह दानिशमंद
चिपका रहता है जो अपने अस्तित्व के
जीववैज्ञानिक दुर्घटना की अस्मिता से
जैसे नराधम है वह आस्तिक
जो सोचता है गंगा में डुबकी का आनंद
हर हर महादेव के उद्घोष से ही आता है
  अल्लाह के कलाम से नहीं
(बस ऐसे ही, बहुत दिनों बाद कलम की आवारागर्दी)

(ईमिः 07.02.216)  

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