26.02.2016
जेयनयू तथा राष्ट्रद्रोह
ईश
मिश्र
केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद सरकारी मिलीभगत
से विश्वविद्यालयों पर बढ़ते भगवा हमले को
देखते हुए आरयसयस शब्द हिटलर के यसयस (युनिस्टोंस) के आतंक की याद दिलाने लगा है.
अजीब समानता है कई घटनाक्रमों में. एक एबीवीपी का नेता हैदराबाद केंद्रीय
विश्वविद्यालय के अंबेडकर स्टूडेंट असोसिएसन(एयसए) के कुछ छात्र नेताओं की शिकाय़त
करता है. हैदराबाद में आरयसयस के प्रचारक रहे, केंद्रीय मंत्री बंदारू दत्तात्रेय
मानव संसाधन मंत्री को चिट्ठी लिखते हैं तथा मानव संसाधन मंत्री विश्वविद्यालय
कुलपति को. विश्वविद्यालय प्रशासन रोहित वेमुला समेत एयसए के 6 छात्रों को हॉस्टल
से निष्कासित कर उन पर कई संस्थानिक प्रतिबंध थोप दिये. निष्कासित विद्यार्थी
परिसर में ही खुले आसमान के नीचे बाबा साहब की तस्वीर के साथ विरोध प्रदर्शन कर
रहे थे. लेखक बनने की चाह रोहित ने एक खत में समेट कर भविष्य के रोहितों के लिए एक
संभावित लेखक की बलि दे दी. फगवा ब्रिगेड को रोहित की “संस्थानिक” हत्या
मंहगी पड़ी. उसकी शहादत ने सारे मुल्क में हड़कंप मचा दिया. देश भर के
विश्वविद्यालय परिसरों में एक मंच से जय-भीम तथा लाल-सलाम के नारों की निरंतरता ने
ब्राह्मणवादी हिंदुत्व को बेचैन कर दिया. छात्रों का कोई समूह अफजल गुरू की फांसी
पर सभा के वैधता के संकट में एजेंडे का विषयांतर
शासक वर्गों की पुरानी चाल रही है. जेयनयू वैसे भी संघ गिरोह के आंखों की किरकिरी
रहा है. एक तीर से दो शिकार एबीवीपी के एक
सदस्य की शिकायत पर विद्यार्थियों के एक समूह को कार्यक्रम की नामंजूरी तथा जैसा
कि कहा जा रहा है एबीवीपी घुसपैठियों द्वारा पाकिस्तान के पक्ष में नारेबाजी. जाली
वीडियो का प्रशारण तथा पुलिस कार्रवाई. पुलिस-प्रशासन संघ के विभिन्न संगठनों से
सांठ-गाठ कर दूसरे संगठनों के कार्यक्रमों पर हमले कर रहा है, उसी तरह हिटलर के
तूफानी दस्ते, यसए तथा जर्मन पुलिस की मिलीभगत से राजनैतिक विरोधियों खासकर
कम्युनिस्टों के सफाये का अभियान चलाते थे.
जेयनयू पुलिस छावनी में तब्दील हो गया था. देश के
गृहमंत्री ने विश्वविद्यालय को देश-द्रोह का अड्डा घोषित कर दिया तथा स्मृति इरानी
ने तुरंत परिसर से देशद्रोहियों के सफाया का ऐलान कर दिया. छात्रसंघ अध्यक्ष
कन्हैया कुमार समेत जेयनयू के अलग-अलग धाराओं के तीन वामपंथी छात्र कई दिनों से
पुलिस हिरासत में हैं. लेख लिखे जाने तक वांछित चार अन्य वहां पहुंच जायेंगे. आरोप
है कि वे कश्मीर की आजादी जैसे राष्ट्र विरोधी नारे लगा रहे थे. प्रेस क्लब में
कश्मीर पर प्रो गिलानी की मीटिंग के लिए हॉल बुक करने के लिये, प्रगतिशील लेखक संघ
के राष्टीय सचिव प्रो अली जावेद को 2 दिन घंटो बैठाकर पूछताछ के नाम पर प्रताड़ित
किया गया. यहां भी कुछ लोग, जेयनयू की ही तरह कश्मीर की आज़ादी के नारे लगा कर चले
गये. अली जावेद सीपीआई के हैं तथा कन्हैया सीपीआई की छात्र शाखा का एआईयसयफ का
सदस्य है. सीपीआई का कश्मीर पर वही पार्टी लाइन है जो सरकार की. हमारा मानना है कि
जनतंत्र में हर आवाम को आत्मनिर्णय का अधिकार होना चाहिये क्यों फौज के बल पर उस
पर हमेशा के लिए काबिज नहीं रहा जा सकता. जेयनयू का तांडव तथा देशद्रोह का शगूफा रूपये
तथा प्रधानमंत्री की गिरती शाख एवं विकास की खुलती पोल से ध्यान बंटाने और रोहित
की शहादत से उमड़े विरोध में जयभीम तथा लालसलाम के सम्मिलित नारे की धार को कुंद करने
की पूर्व नियोजित साजिश लगती है.
जेयनयू पर हमला, अध्ययन-मनन, विचार-विमर्श,
वाद-विवाद-संवाद, शोध-अन्वेषण के जरिये नवीन विचारों तथा तर्क-विवेक आधाररित
विश्वदृष्टि के निर्माण के केंद्र के रूप में विश्वविद्यालय की अवधारणा पर हमला
है. विश्वविद्यालय का काम भक्तिभाव नहीं तार्किक मानस का निर्माण करना है,
विद्रोही भाव जगाना है जो बासी पुरातन की नवीन की रचना कर सके, प्रगतिशील विकल्प
ढूढ़ सके. जैसे कोई अंतिम सत्य नहीं है वैसे ही कोई अंतिम ज्ञान नहीं होता. ज्ञान
एक निरंतर प्रक्रिया है, जिसके चलते मानव इतिहास पाषाण युग से अंतरिक्ष युग तक
पहुंच सका. सारी महानताएं तथा परम ज्ञान अतीत में ढूंढ़ना, वर्तमान की समस्याओं से
मुंह चुराना तथा भविष्य के ख़िलाफ साजिश
है. जेयनयू इस साज़िश को नाकाम करने का मजबूत गढ़ है, इसीलिए हर तरह के दक्षिणपंथी
तथा कट्टरपंथी इस गढ़ को ढहाने के उपक्रम करते रहे हैं लेकिन इसकी जमीन में
तर्क-विवेक-विद्रोह के बीज इतनी गहराई तक हैं कि कुतर्क तथा दुराग्रह-पूर्वाग्र जनित
सरकारी हमलों से यह गढ़ ढह नहीं सकता.
देशभक्ति (पैट्रियाटिज्म या नेसनलिज्म), जिसे एंडरसन ने
हरामखोरों का पनाहगाह बताया है, एक आधुनिक विचारधारा तथा अस्मिता का नया मानदंड है
जो प्रबोधनकाल में राजवंशों के शासन तथा प्रजा की वफादारी की दैविक वैधता के विनाश
के बाद अस्तित्व में आया. वैधता के स्रोत के रूप में रूप ईश्वर उसकी विचारधारा के
रूप में धर्म की मान्यता अमान्य होने के बाद सामंतवाद के खंडहर पर निर्मित संवैधानिक, पूंजीवादी राष्ट्र–राज्य की वैधता
का श्रोत इसके जैविक बुद्धिजीवी, उदारवादी चिंतकों ने व्यक्तियों में आरोपित किया,
यद्यपि व्यक्ति संप्रभुता का सैद्धांतिक स्रोत बना रहा क्योंकि मतदान से वह अपनी
संप्रभुता सरकार को हस्तांतरित कर देता है. रूसो ने इस प्रतिनिध्व के जनतंत्र की
जगह सहभागी जनतंत्र तथा धर्म की जगह नागरिक धर्म का सिद्धांत दिया. सर्वसहमति से
बने कानून के पालन को नागरिक धर्म बताया. प्रसिद्ध इतिहासकार हाबरमास ने आधुनिक
राष्ट्र राज्य देशभक्ति को संविधान के प्रति निष्ठा के रूप में परिभाषित किया. संप्रभुता
संविधान में निवास करती है न कि सरकार में, या बहुसंख्यक समाज की प्रथाओं,
मान्यताओं में और न ही किसी खास धर्मिक-मिथकीय संस्कृति में. मानव संसाधन मंत्री
स्मृति इरानी ने संसद में एक दुर्गाभक्त होने के नाते जेयनयू में 2013 में
महिषासुर आयोजन को देशद्रोह बताया. एबीवीपी के सदस्यों ने इस पर भी हुड़दंग किया
था. इतने महत्वपूर्ण संवैधानिक पद पर बैठे लोग अगर संविधान के बारे में बिल्कुल
अनभिज्ञ हों तो देश का दुर्भाग्य है. भारत एक बहुसांस्कृतिक देश है. मिथकों के
सबके अपने अपने आन ख्यान हैँ. बंगाल, झारखंड तथा उत्तर प्रदेश एवं बिहार की कैमूर पहाड़ियों
की कई जनजातियों के आख्यान में महिषासुर न्यायप्रिय असुर राजा था जिसे देवताओं ने
छल-कपट से मार दिया था. इन समुदायों में महिषासुर ऐसे ही पूजा जाता है जैसे
ऋग्वैदिक आर्यों के वंशजों में दुर्गा. हर समुदाय को अपनी सास्कृतिक गतिविधियों का
संवैधानिक अधिकार है. ये समुदाय सांस्कृतिक स्वतंत्रता के अपने संवैधानिक अधिकार
का उपयोग कर संविधान के प्रति अपनी निष्ठा जाहिर करते हैं. उनके संवैधानिक
अधिकारों मे विघ्न डालने वाले संविधान का अपमान करते हैं अतः देश द्रोही हैं. देश
द्रोही महिषासुर उत्सव मनाने वाले नहीं बल्कि धर्मोंमाद फैलाकर उनके संवैधानिक
अधिकारों का हनन करने एबीवीपी के लोग ही नहीं संसद में संविधान की धज्जियां उड़ाने
वाली समृति इरानी है. देशद्रोही भाजपा का
वह मर्दवादी महासचिव है जो राज्य सभा के एक सांसद को आंदोलन में शिरकत करने
के लिए अपनी बेटी को गोली मारने की हिदायत देता है. गुजरात नरसंहार के लिए ही नहीं,
नरेंद्र मोदी को संविधान के प्राक्कथन की धर्म निरपेक्ष राज्य की अवधारणा की
धज्जियां उड़ाते हुए खुद को हिंदू राष्ट्रवादी घोषित करने के लिये देशद्रोह में
जेल में होना चाहिये. इफरात बच्चे पैदा करने की सलाह देने वाले साक्षी महराज तथा
हर बात पर मोदी विरोधियों को पाकिस्तान जाने या हिंद महासागर डुबाने की धमकी देने
आदित्यनाथ जैसे लंपट सांसद देश द्रोही हैं, अभिव्यक्ति तथा सभा के संवैधानिक मौलिक
अधिकारों का उपयोग करने वाले जेयनयू के छात्र. संविधान के धर्मनिरेक्ष चरित्र तथा
कानून के समक्ष समानता के संवैधानिक अधिकार की धज्जियां उड़ाते हुए मुसलमानों को
मताधिकार से वंचित करने की बात करने वाला वह केंद्रीय मंत्री, जो लगातार संविधान
की धज्जियां उड़ाता रहा है, देशद्रोही है न कि विरोध के संवैधानिक अधिकार का उपयोग
कर संविधान को प्रति निष्ठा जताने वाले देशभक्त विद्यार्थी. मोदी सरकार अपने
साम्राज्यवादी आकाओं से उच्च शिक्षा को गैट्स में शामिल करने पर सहमति का वाय़दा कर
चुकी है, ऩई उच्च शिक्षा नीति तथा विश्वविद्यालयों पर हमला उच्च शिक्षा को
खरीद-फरोख्त का माल बनाकर विश्व बैंक को गिरवी रखने का पथ प्रशस्त करने के कदम
हैं. जेयनयू के छात्र सरकार की साम्राज्यवादी साजिशों के विरोध के प्रमुख किरदार
हैं, इस लिये युवा उमंगों को हतोत्साहित करने का यह कायराना हमला. संविधान का
अपमान करने वाले ये दक्षिणपंथी उग्रवादी, देशद्रोही अब देशभक्ति की सनद बांट रहे
हैं. अंधेर नगरी, देशद्रोही राजा.
शासक वर्ग समाज के प्रमुख अंतरविरोधों को दबाने के लिये
कृतिम अंरविरोधों का हव्वा खड़ा करता है तथा कई बार कामयाब भी होता है. संघ
संचालित मोदी सरकार अपनी आर्थिक विफलताओं तथा विश्वबैंक के सम्मुख समर्पण की
राष्ट्र राष्ट्रविरोधी नीतियों से ध्यान हटाने के लिये संघ के विभिन्न गिरोहों के
अंध-राष्ट्रवाद तथा धर्मोंमाद के मुद्दे निर्मित करती रही है. संघ गिरोहों द्वारा
पनसारे, डाभोलकर, कलबुर्गी तथा अखलाक की हत्याएं, इसी रणनीति का हिस्सा लगती हैं.
कलबुर्गी तथा अखलाक की हत्याओं के विरुद्ध दुनिया के लेखकों, साहित्यकारों,
विद्वानों की आवाज़ आवाम तक पहुंचने लगी थी तो दक्षिणपंथी उग्रवाद को लगने लगा कि
चुन-चुन कर तर्कशील चिंतकों की हत्या से धर्मोंमाद की नीति हानिकारक हो रही थी. तब इसने राष्ट्रोंमाद फैलाने का सहारा लिया. रोहित
वेमुला की सांस्थानिक हत्या कर दी, देशद्रोह का आरोप लगाकर. रोहित का अपराध यह ही
नहीं था कि वह दलित था बल्कि वह एक चिंतनशील नागरिक था जिसका तथा जिसके संगठन
अंबेडकर स्टूडेंट असोसिएसन के सरोकारों का संसार दलित मुद्दों तक नहीं सीमित था,
व्यापक था. एबीवीपी की धमकियों की परवाह न कर वह अभिव्यक्ति की आज़ादी की हिमायत
में मुज़फ्फरनगर बाकी है की स्क्रीनिंग करवाता है. गौरतलब है कि दिल्ली तथा
कई जगहों पर एबीवीपी के हुड़दंग के चलते ये फिल्म नहीं दिखाई जा सकी थी. वह दुनिया
के तमाम और लोगों की तरह फांसी की बर्बर सजा का विरोधी था, चाहे वह याकूब मेमन की
हो या बाबू बजरंगी की. वह साम्राज्यवादी, भूमंडलीय पूंजी की दलाली का विरोधी
था. कहने का मतलब कि वह अन्याय के विरुद्ध
सभी संघर्षों से सरोकार रखता था.
प्रतिष्ठानात्मक ब्राह्मणवाद अंबेडकरी रामों(राम
अठावले, राम विलास, उदिक(राम राज) जैसे भक्त दलित बर्दाश्त कर सकता है, रोहित जैसा
संघर्षशील, चिंतक दलित नहीं. स्मृति इरानी ने राष्ट्रवादी झूठ बोला कि रोहित दलित
नहीं ओबीसी था. जैसे कि किसी ओबीसी की सांस्थानिक हत्या कम आपराधिक हो? कुछ संगठिदलित मानव संसाधन मंत्रालय का ब्रह्मांड ऐसे
हिलने लगा जैसे संबूक की तपस्या से, राम के दरबार का ब्रह्मांड हिल गया था तथा
भरत, हनुमान जैसे सेवकों को भेजने की बजाय स्वयं जाना पड़ा था उनका बध करने. इन
एकलव्यों का अंगूठा काटने के निर्देश के कई पत्र हैदराबाद केंद्रीय विवि के द्रोणाचार्यों
को लिखा. रोहित नामक इस एकलव्य अंगूठा तो नहीं दिया लेकिन द्रोणाचार्यों की
ब्राह्मणवादी हिमाक़त के विरोध में जान देती. शहादत ने उंनीदे शेरों को जगा दिया. देश-विदेश
के परिसरों में छात्र-शिक्षक रोहित की शहादत के सम्मान में उद्वेलित हो गये. एक ही
मंच पर लाल तथा नीले झंडे लहराने लगे तथा जयभीम और लाल सलाम के नारे साथ साथ लगने
लगे. दक्षिणपंथी उग्रवाद बौखला गया. जेयनयू ऑक्युपाई यूजीसी आंदोलन के सा इस विरोध
प्रदर्शन का भी का केंद्र बन गया. यहां की विचार-विमर्श तथा वाद-संवाद की संस्कृति
भक्तिभाव तथा अधदेशभक्ति के विकास के प्रतिकूल है. इस लिये यह हर किस्म के
दक्षिणपंथियों की आंख किरकिरी रहा है. मौका पाकर हमला कर दिया. लेकिन वहां की माटी
में तर्क, विवेक, विद्रोह के इतने बीज पड़े हैं कि यह हमला संघी फासीवाद के अंत की
शुरुआत साबित होगा.
दक्षिणपंथी, उग्रवादी अपवादों को छोड़कर दुनिया का
समूचा बौद्धिक वर्ग जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेयनयू) के साथ खड़ा है. उस
जेयनयू के साथ जो शाखाप्रशिक्षित गृहमंत्री को देशद्रोह का अड्डा नज़र आता है और
जिसे सास-बहू सीरियल से राजनैतिक प्रशिक्षण पाने वाली मानव संसाधन मंत्री
देशद्रोहियों से मुक्त करने का ऐलान कर देती हैं. जेयनयू में एबीवीपी के प्रचारप्रमुख
रह चुके, विकास पाठक ने सरकारी दमन का निंदा करते हुये जेयनयू को विचार-विमर्श का
केंद्र बताने साथ खुद को सजग नागरिक बनाने का श्रेय जेयनयू को दिया है. एबीवीपी
जेयनयू के दो नेताओं ने संगठन से इस्तीफा दे दिया. कहने का मतलब कि जेयनयू के
जनतांत्रिक शैक्षणिक संस्कृति में कुछ खास बात है जो दक्षिणपंथी उग्रवादियों के
भक्तिभाव में भी सेंध लगा देती है, उनमें भी सवाल का साहस तथा सोचने की शक्ति भर देती
है. यह खास बात भगवान, भूत या देशभक्ति की तरह कोई अदृश्य, अमूर्त, दार्शनिक
अवधारणा नहीं बल्कि विचार-विमर्श तथा संघर्षों से ऐतिहासिक रूप से निर्मित विरासत
है. इस विरासत से घबराकर संघ संचालित मोदी
सरकार ने जेयनयू पर युद्ध थोपकर दुनिया दो खेमों में बांट दिया --- तर्क तथा विवेक का खेमा और कुतर्क तथा धर्मोनमादी
अंध-देशभक्ति का. नॉम चॉम्स्की समेत विश्व 96 जाने-माने विद्वान इस युद्ध की कड़ी
भर्त्सना करते हुए पत्र लिख कर ज्ञान के इस केंद्र को नष्ट होने से बचाने का भारत
के राष्ट्रपति से आग्रह किया है. ऐसा ही पत्र जेयनयू की जनतांत्रिक विरासत के
निर्माण के सहभागी रहे, ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज जैसे नामी गिरामी विश्विद्यालयों में
पढ़ा रहे 556 शिक्षाविदों ने विश्वविद्यालय के कुलपति को लिखा. 15 अक्टूबर को युवा
उमंगों की 3 किमी लंबी कतार जयभीम लाल सलाम के नारों के साथ, दमन से बेपरवाह जंगे-आज़ादी
के नग़में गा रही थी. सबके सब देशद्रोही? 18
अक्टूबर को तो देशद्रोहिओं के समर्थन में लगा पूरा शहर ही उमड़ पडा. पिछले 30
सालों का सबसे बड़ा मार्च. सब देशद्रोही हैं. सरकार देशद्रोह का हौव्वा खड़ाकर,
सवाल की संस्कृति के इन साहसी सिपाहियों को गिरफ्तार कर परिसरों में भय का माहौल
खड़ा करना चाहती है लेकिन इतिहास बताता है कि किसी भी तानाशाही का शिक्षा संस्थान
पर हमला आत्मघाती साबित होता है.
गोर्की का मदर दूसरी बार पढ़ा. महान रचनाओं की
खासियत है कि जितनी बार पढ़िये तो पहली बार जैसी लगती है, उसी तरह जैसे महान
फिल्में जितनी बार देखिये पहली बार सा ही सुख मिलता है. लगभग 40 साल पहले जब आपात
काल के दौरान पहली बार पढ़ा तो बिल्कुल समकालिक लगा था. इस बार भी. मौजूदा
घटनाक्रम से उपन्यास के दृश्य-पात्र आंखों के सामने सजीव हो उठे – कारिंदे, पुलिस,
पहचान में आ जाने वाले सर्वव्यापी गुप्तचर, दमन-उत्पीड़न, मां, पावेल, निकोलाई,
शाशा, येगोर इवानोविच, वह क्रांतिकारी डॉक्टर, मां का जेल में बंद बेटे पर असीम
नाज़. सभी रचनाएं समकालिक होती हैं महाऩ रचनाएं सर्वकालिक हो जाती हैं. जेयनयू की
घेरेबंदी तथा कुप्रचार से, बार बार दुहरा कर झूठ को सच बनाने वाले हिटलर के प्रचार
मंत्री गोयबल्स की याद तो आती ही है, लगभग 100 साल पहले की इस रचना की प्रासंगिकता
भी साबित होती है. फर्क इतना है कि मदर का परिवेश क्रांति के पहले ज़ारशाही
का था, आज जमाना मोदीशाही का है.
संविधान में निष्ठा को दर किनार करने वाले देशद्रोहियों
के शासन में संविधान मे निष्ठा रखने वाले निर्दोष देशभक्तों की प्रताड़ना नई बात
नहीं है, लेकिन ऐसे देशद्रोही अत्याचारी शासकों का दयनीय अंत होता है चाहे वह
मुसोलिनी हो हिटलर या हलाकू. जेयनयू पर अपने वफादार कुलपति के जरिये पुलिस छावनी
में तब्दील करने की असंवैधानिक, यानि देशद्रोही कार्रवाई के तुरंत बाद जांच की
संवैधानिक औपचारिकताओं को धता बताकर पुलिस कार्रवाई के देशद्रोह के तुरंत बाद
गृहमंत्री तथा मानवसंसाधन मंत्री के बैखलाहट के वबयानों तथा इनके उबाल की बेचैनी
से साफ ज़ाहिर है कि योजना सत्ता के शिखर पर बनी.
जेयनयू मुक्त विचार-विमर्श के जरिये चिंतनशीलता को
प्रोत्साहित करता है, जो भक्ति-भाव के प्रतिकूल रहा है. जेयनयू के प्रति
दक्षिणपंथी उग्रवादियों की नफरत पुरानी है, मोदी के सत्तासीन होते ही वह नफरत मुखर
आक्रामकता में बदल गयी. कोई मानसिक रोगी जेयनयू की बहादुर वीरांगनाओं को वेश्या से
बदतर कहकर अपनी दक्षिणपंथी जहालत का परिचय देता है कोई भाजपा विधायक जेयनयू में
इस्तेमाल कंडोमों की गिनती करके महान भारतीय संस्कृति की सेवा करता है तो कोई
संविधानद्रोही यानि देशद्रोही केंद्रीय मंत्री मुसलमानों को मताधिकार से वंचित
करने की माग करता है. जिन देशद्रोहियों को जेल में होना चाहिए वे देशभक्ति की सनद
बांटते हुए, संविधान का सम्मान करने वाले देशभक्तों को देशद्रोही कहकर उन्हैं जेल
भेज रहे हैं तथा यदि स्टिंग ऑपरेसन सही है तो ये देशद्रोही कानून हाथ में लेकर, इन
क्रांतिकारी छात्रों की हत्या के फिराक़ में थे. जिन गुंडों ने संविधान की
धज्जियां उड़ाते हुए कायर कुत्तों की तरह पुलिस प्रश्रय 15 फरवरी को मीडिया और
बुद्धिजीवियों पर तथा 17 फरवरी को कन्हैया पर जानलिवा हमला किया था, उनका सरगना
गृहमंत्री का खास कृपा पात्र है. पुलिस प्रशासन तो संविधान का अपमान करने वाले इन
देश द्रोही दक्षिणपंथी उग्रवादियों के नियंत्रण में है. लेकिन दरबार-ए-वतन में ये
अपनी सजा से नहीं बच पायेंगे.
पुलिस ने 9
अक्टूबर को जी न्यूज तथा टाइम नाऊ पर दिखाए गये जेयनयू में पाकिस्तान ज़िंदाबाद जैसे
“देशद्रोह” की
नारेबाजी के एक वीडियो का स्वतः संज्ञान लेकर, “देशद्रोहियों” की तलाश में परिसर को छावनी में तब्दील कर दिया.
छात्रवासों पर छापे मारे गये. छात्रसंघ अध्यक्ष, कन्हैयाकुमार को देशद्रोह तथा
अपराधिक साजिश की धाराओं के तहत गिरफ्तार कर लिया. आरोप साबित हुआ तो आजीवन
कारावास तक की सजा का प्रावधान है.
इनकी बातों से
आपको नाजी जर्मनी गोयेबेल्स तथा नाजी तूफानी दस्ते (यसय़स) की याद नहीं आती
जिन्होने विश्वविद्यालयों तथा पुस्तकालयों को तहस-नहस किया? हिटलर की शह पर जिन्होने राइस्टाग (संसद) में आग लगाकर
आरोप कम्युनिस्टों पर ललगा दिया तथा हिटलर कम्य़ुनिस्टों के संहार में जुट गया? 1933 में हिटलर
अल्पमत की सरकार का नेता था कम्युनिस्टों के निष्कासन से संसद में नाज़ियों का
बहुमत हो गया था. 2002 में गुजरात की सरकार की जनविरोधी नीतियों के के चलते भाजपा
की लोतप्रियता रसातल को जा रही थी. उस समय भाजपा के कुछ सूत्रों के अनुसार,
अडवाणी, प्रमोद महाजन तथा अरुण जेटली की पहल पर मोदी को मुख्यमंत्री बनाया गया.
मोदी ने गोधरा के प्रायोजन के माध्यम से प्रदेश में क्रिया प्रतिक्रिया का माहौल
बनाकर गुजरात में नरसंहार, लूट, आगजनी तथा फर्जी मुठभेड़ों के जरिये नफरत का माहौल
खड़ा किया. धर्मोंमादी ध्रुवीकरण से सत्ता हासिल किया. 2014 के चुनाव के पहले
शामली- मुज़फ्फर में इन्होने गुजरात दुहराने की कोशिस की तथा धर्मोंमादी ध्रुवीकरण
में सफल रहे. कुतबा गांव में 8 हत्यायें हुईं. कुतबा में जनसंहार का नायक संजीव
बालियान मोदी सरकार में मंत्री है. बिहार में दंगे करवाने में असफल इन्होंने दादरी
रचा. दादरी में गोमांस की अफवाह से अखलाक की
पूर्वनियोजित हत्या से बिहार चुनाव पर असर न देख इन्होने दलितों तथा जेयनयू को
निशाना बनाकर युद्धोंमादी ध्रुवीकरण से आसाम तथा अन्य राज्यों में चुनावी फसल
काटना चाहते हैं. लेकिन कुछ लोगों को कुछ समय तक मूर्ख बनाया जा सकता है, सबको
हमेशा के लिए नहीं.
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