Monday, February 29, 2016

ज़ुल्म बढ़ता है तो मिट जाता है

बेमुखालिफ़ ज़ुल्म बढ़ता ही जाता है
ज़ालिम खुद को क़ौम का खुदा बताता है
मनुस्मृति को ज्ञान का सागर कहता है
अफवाहों से करता वह संसद को गुमराह
हो मुदित भक्तगण करते वाह वाह
मगर जब भी ज़ुल्म बढ़ता है तो मिट जाता है
हिटलर को मांद में छिपकर मरना पड़ता है
लेकिन न्यूटन का नियम हर बात पर लागू होता है
हालात बदलने को जोर लगाना पड़ता है
ज़ुल्म भी खुद-ब-खुद नहीं मिटता मिटाना पड़ता है
कन्हैया-उमर-अनिर्बन बनना पड़ता है
जेयनयू के क्रांतिकारी साथियों को लाल सलाम
(ईमि-28.02.2016)

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