Friday, August 14, 2015

घास काटती औरत

युवा साथी, शालू 'मिताक्षरा'​ की घास काटती औरत पर एक सुंदर कविता पर तुकबंदी में यह कमेंट लिखा गया. 

पैनी हो रही है तुम्हारे लेखनी की धार
लाती रहो इसमें निखार लगातार 
शब्दो से गढी घास काटती औरत की यह तस्वीर
करती निराला की पत्थर तोड़ती नायिका सी तकरीर
होगी तेज जिस दिन धार खुरपे की 
बुनियाद हिल जायेगी शोषण के किले की
बनेगा उसका पल्लू इंक़िलाबी परचम 
जुमलों की लफ्फाजी हो जायेगी बेदम
होगा तब खुरपा और कलम का  संगम
बनेगा जो  उमड़ती नई धारा का उद्गम
करेगी यह औरत नाइंसाफी पर निर्णायक वार
साथ होगा खुरपे के जब कलम का उद्गार 
बनेगी जब इस भावी संगम की पेंटिंग
कम कर देगी दि'विंची के मोनालिजा की रेटिग 
( तुम्हारी इस रचना ने तुकबंदी से मेरा सन्यास तुडवा दिया, वैसे भी किसी चीज से स्थायी सन्यास नहीं लेना चाहिये)
(ईमिः 15.08.2015)

No comments:

Post a Comment