श्रीवास्तव जी बातें समझने के लिये थोड़ा दिमाग लगाइये, किसी का व्यक्तित्व का मूल्यांकन उसके कर्मों से होता है न कि जन्म के संयोग से. जीवन-शैली तथा नियोजित परिवार की सोच शिक्षा तथा सामाजीकरण से निर्धारित होत है जन्म के संयोग से नहीं. जो पढ़े-लिखे लोग जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घटना की अस्मिता से उभर नहीं पाते यानि हिंदू-मुसलमान से या वाभन-भूमिहार से इंसान नहीं बन पाते वे पढ़े-लिखे जाहिल हैं. दुर्भाग्य से पढ़े-लिखे ऐसे जाहिलों का प्रतिशत अपने अपढ़ सहधर्मियों से अधिक है.
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