राजपाल यादव जी, बचपन से संचित दिमागी कूड़े की सफाई कर लीजिए. उनके गंदगीपूर्ण जीवनशैली के बारे में फैसलाकुन वक्तव्य देने के लिए कितने मुसलमानों से मिले हैं या उनके साथ खान-पान साझा किया है? क्या सारे यादव एक जैसी साफ-सफाई से रहते हैं? आप करोड़ों की आबादी पर एक सा होने का फतवा जाहिर कर अपने मानसिक दिवालियेपन का इज़हार कर रहे हैं. सवर्णती की श्रेष्ठता साबित करने में असमर्थ सवर्ण अवर्णों के यहां खान-पान से परहेज का यही तर्क देते थे कि जात-पांत की बात नहीं है बस साफ साफ-की बात है. बाबा आदम के जमाने की बात नहीं है. हमारे बचपन तक वर्णाश्रम दरक रहा था, लेकिन कायम था जब ब्राह्मण यादव के हाथ का भोजन नहीं करता था जो मान्य था. आज जब दलित-पिछड़ा वोटबैंक बन गया तो सब हिंदू बन गये तथा समान. पटेल आरक्षण का हंगमा संघ प्रायोजित साजिश है आरक्षण समाप्त करने की.
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