द्रोणाचार्यों की परम्परा जारी है, मगर एकलव्यों ने बिना अंगूठे के तीर चलाा सीख लिया है. जो गिरोह द्रोण तथा मनु को पूजनीय मानता हो, वह कौसे उनके नाम से जारी पुरस्कार बंद कर सकते हैं या उसके नाम के स्टेसन का नाम बदल सकते हैं? इनके तो परम पूजनीय गुूरु जी ने हिटलर कोअनुकरणीय बताने के साथ मनु को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ विधिवेत्ता बताया जिसे दीनदयाल ने भी दोहराया. इन प्रतीकों का महज प्रतीकात्मक महत्व नहीं है. इन प्रतीकों को खत्म करना सांस्कृतिक क्रांति है. इसकेलिए एकलव्यों को जनवादी चेतना की शक्ति अर्जित करनी होगी, बुद्धि पर होने वाले कॉरपोरेटी हमले से सतर्क रहते हुए सामाजिक चेतना के उत्थान का लंबा संघर्ष करना होगा.
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