Eastern -western front categorization is an illusion with false consciousness like the ideologies of race, nationalism and communalism, created by ruling classes, presently the corporate oligarchy to foil the mission of the unity of the workers of the world. Many people make prophetic statements about communism and its end without knowing what it really is. For be communism makes exploitation of humans by human impossible. That is justice- the end of compulsion of alienated labor. Joseph Florino
Monday, August 31, 2015
Sunday, August 30, 2015
फुटनोट 48
तानाशाही प्रवृत्ति वाले लोग कायर तथा डरपोक होते हैं. वे दो बातों से सबसे ज्यदा डरते हैं -- इतिहास से तथा विचार से. वे इतिहास विकृत करने का प्रयास करते हैं तथा विचारक की हत्या के माध्यम से विचारों की हत्या. गोविंद पनसरे, नरेंद्र दाभोलकर तथा अब कन्नड़ लेखक कलमुर्गी. ये कायर हत्यारे ये नहीं जानते कि विचार मरते नहीं, बीज बनते हैं. सुकरात को मर डाला था, एथेंस के धर्मोंमादियों ने लेकिन वे ढाई हजार साल बाद भी जिंदा हैं अपने विचारों में.इंद्राणी प्रकरण में मस्त मीडिया के लिये एक लेखक या मजदूर की मौत खबर नहीं बनती. अपराध को पनाह देनी वाली यह कॉरपोरेटी व्यवस्था इन हत्यारो को क्या सजा देगी, सजा जनता देगी इस व्यवस्था का अंत कर.
Saturday, August 29, 2015
शिक्षा और ज्ञान 62
यह बुतपरस्त-मुरदापरस्तों का मुल्क है जो भक्तिभाव पैदा करता है तथा चमत्कार पर भरोसा जिसके परिणाम स्वरूप मानसिक गुलामी की प्रवृत्ति पैदा होती है. सामाजिक चेतना के जनवादीकरण का काम विकट है, लेकिन प्रयास जारी रहना चाहिए -- पीढ़ी-दर-पीढ़ी. कभी तो वह सुबह आएगी, जब गुलनार तराने गायेगा. जातीय वर्चस्व के विरुद्ध चेतना को वर्गचेतना की तरफ अग्रसरित करना पड़ेगा. जातिवाद विरोधी संघर्ष ब्राह्मणवादी पैराडाइम में फंसा है. जन्म के आधार पर अपना तथा दूसरों का मूल्यांकन ब्राह्मणवाद का मूल सूत्र है. भारत में शासक जातियां ही शासक वर्ग रहे है तथा दलित जातियां दलित वर्ग.
शिक्षा और ज्ञान 61
द्रोणाचार्यों की परम्परा जारी है, मगर एकलव्यों ने बिना अंगूठे के तीर चलाा सीख लिया है. जो गिरोह द्रोण तथा मनु को पूजनीय मानता हो, वह कौसे उनके नाम से जारी पुरस्कार बंद कर सकते हैं या उसके नाम के स्टेसन का नाम बदल सकते हैं? इनके तो परम पूजनीय गुूरु जी ने हिटलर कोअनुकरणीय बताने के साथ मनु को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ विधिवेत्ता बताया जिसे दीनदयाल ने भी दोहराया. इन प्रतीकों का महज प्रतीकात्मक महत्व नहीं है. इन प्रतीकों को खत्म करना सांस्कृतिक क्रांति है. इसकेलिए एकलव्यों को जनवादी चेतना की शक्ति अर्जित करनी होगी, बुद्धि पर होने वाले कॉरपोरेटी हमले से सतर्क रहते हुए सामाजिक चेतना के उत्थान का लंबा संघर्ष करना होगा.
Friday, August 28, 2015
शिक्षा और ज्ञान 60
श्रीवास्तव जी बातें समझने के लिये थोड़ा दिमाग लगाइये, किसी का व्यक्तित्व का मूल्यांकन उसके कर्मों से होता है न कि जन्म के संयोग से. जीवन-शैली तथा नियोजित परिवार की सोच शिक्षा तथा सामाजीकरण से निर्धारित होत है जन्म के संयोग से नहीं. जो पढ़े-लिखे लोग जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घटना की अस्मिता से उभर नहीं पाते यानि हिंदू-मुसलमान से या वाभन-भूमिहार से इंसान नहीं बन पाते वे पढ़े-लिखे जाहिल हैं. दुर्भाग्य से पढ़े-लिखे ऐसे जाहिलों का प्रतिशत अपने अपढ़ सहधर्मियों से अधिक है.
शिक्षा और ज्ञान 59
राजपाल यादव जी, बचपन से संचित दिमागी कूड़े की सफाई कर लीजिए. उनके गंदगीपूर्ण जीवनशैली के बारे में फैसलाकुन वक्तव्य देने के लिए कितने मुसलमानों से मिले हैं या उनके साथ खान-पान साझा किया है? क्या सारे यादव एक जैसी साफ-सफाई से रहते हैं? आप करोड़ों की आबादी पर एक सा होने का फतवा जाहिर कर अपने मानसिक दिवालियेपन का इज़हार कर रहे हैं. सवर्णती की श्रेष्ठता साबित करने में असमर्थ सवर्ण अवर्णों के यहां खान-पान से परहेज का यही तर्क देते थे कि जात-पांत की बात नहीं है बस साफ साफ-की बात है. बाबा आदम के जमाने की बात नहीं है. हमारे बचपन तक वर्णाश्रम दरक रहा था, लेकिन कायम था जब ब्राह्मण यादव के हाथ का भोजन नहीं करता था जो मान्य था. आज जब दलित-पिछड़ा वोटबैंक बन गया तो सब हिंदू बन गये तथा समान. पटेल आरक्षण का हंगमा संघ प्रायोजित साजिश है आरक्षण समाप्त करने की.
फुटनोट 44
भक्तिभाव एक ऐसा दिमागी रोग है जो रोगी के आत्मचक्षु को निष्क्रिय कर देते है और वे अफवाहजन्य संघी इतिहासबोध को प्रामाणिक मान लेते हैं, बिना जांच-परख के. मुगलकालीन इतिहास की कोई किताब पढ़ लें तो पता चलेगा कि और राजाओं की तुलना में औरंगजेब ज्यादा या कम क्रूर था. एक मुलमान नाम वाले,"शरीफ " अराजनैतिक इंजीनियर को राष्ट्रपति बनाना उसी तरह संघी रणनीति थी जैसी कि औरंगजेब की जगह कलाम को स्थापित करना. निहितार्थ है कि कुछ अच्छे, देशभक्त मुसलमान भी हैं -- अकबर, नक्वी, शाहनवाज जैसे. या कुछ दलित भी काबिल अठावले, पासवान, उदितराज जैसे.
Tuesday, August 25, 2015
मार्क्सवाद 8 (नवब्राह्मणवाद)
जन्म के आधार पर व्यक्तित्व का मूल्यांकन ब्राह्मणवाद का मूलभूत सिद्धांत है जो भी ऐसा करता है वह ब्राह्मणवाद के फंदे में फंस कर वर्ग-द्रोही की भूमिका निभाता है. इतिहास के अंधों को नहीं दिखाई देता कि शासक जातियां ही शासक वर्ग रही हैं. वर्ण-व्यवस्था के शुरुआत से ही इसका विरोध भी होता रहा है. विरोध की लहर भी सदा मुख्यधारा तोड़ते हुए उससे ही निकलती है.जिन्हें साज के बौद्धिक संसाधनों की सुलभता होती है वही इतिहास की जटिलता को समझ कर वैकल्पिक दर्शन देते रहे हैं, कबीर-रूसो सरीके् अपवादों को छोड़कर. रामायण-महाभारत-मनुस्मृति में जिन भौतिकवादियों -- लोकायत-चारवाक परंपरारा -- को गालियां दी गयी हैं उन्हें नास्तिक ब्राह्मण भी कहा गया है. अब जब शासित वर्गों को बौद्धिक संसाधन सुलभ हैं तो उसका उपयोग मिथ्याचेतना के तहत वर्गीय लामबंदी विकडत करने में कर रहा है. @शालू मिताक्षरा -- अापकी पार्टी के सारे शीर्ष नेता सवर्ण रहे हैं, क्या सीयम-वीयम-डीबी सभी छद्म कम्युनिस्ट रहे हैं तथा कॉरपोरेटी दलाली वाले माया-मुलायम क्रांतिकारी?. कितनी प्रसन्नता होती यदि सारे बाभन बाभन से इंसान बन दो कदम अागे जाकर कम्युनिस्ट बन जाते. लेकिन ज्यादातर दुर्भाग्य से बाभन से इंसान नहीं बन पाते तथा सत्ता के दोने चाटने के लिए कभी मोदी भक्त बन जाते हैं या फिर मुलायम-माया के. मुलायम के लंबरदार राजा भैया-हरिशंकर तिवारी हैं तो माया के शशांकशेखर-सतीश मिश्र तथा भदोही का लंपट रंगनाथ मिश्र. जो जीववैज्ञानिक दुर्घटना से ब्राह्मण हो गया है उसे भी इतिहास समझने-बदलने का हक़ है. शासकवर्ग अपनी एकता बनाये रखने तथा शासितों को खानों में विभाजित करने की नीति अपननाता है. पूंजीवाद ने हिंदू जातिव्यवस्था की तर्ज पर मेहनतकश (जो भी श्रम बेचकर रोजी कमाता है) को इतने खानों में बाँट दिया है कि लगभग हर किसी क अपना नीचे देखने को कोई मिल जातता है. प्रति वर्चस्व वर्चस्व की सस्या का विकल्प नहीं है, विकल्प वर्चस्व का विनाश है.
Sunday, August 23, 2015
मार्क्सवाद 7 (प्राचीन भौतिकवाद)
शालू 'मिताक्षरा' इस भूखंड मेँ भौतिकवाद की परंपराएं उतनी ही पुरानी हैं, जितनी आध्यात्मिक. यहां तक कि वैदिक धर्म यानि ब्राह्मण धर्म का पैरोकार कौटिल्य भी भौतिकवादी था, अर्थशास्त्र धर्शास्त्रीय विवेचनाओं से मुक्त है. धर्म तथा धार्मिक अंधविश्वासों का इस्तेमाल राजनैतिक उद्देश्यों के लिए करने की सलाह दी गयी है. सारा भौतिकवादी साहित्य ब्राह्मणों ने नष्ट कर दिया तथा अपने साहित्य में इनकी निंदा किया तथा माखौल उडाया. इनकी निंदा-भर्त्सनाओं ने ही वैज्ञानिक तेवर के हमारे इन पूर्वजों के विचारों से अवगत कराया. रामायण में अयोध्या कांड तथा अन्यत्र बार बार लोकायत अनुयायियों (नास्तिक ब्राह्मण), तथागतों तथा बौद्धों की संगति के खतरों के बारे में चेताया गया है. तुमने जो श्लोक उद्धृत किया है वह तो मनुस्मृति के कुतर्क का छोटा सा, नगण्य नमूना है. पूरा ग्रंथ ही किंवदंतियों. अंधविश्वासों तथा कुतर्कों का संकलन है. महाभारत में भी चारवाक (नास्तिक ब्राह्मण) के चरित्र के जरिए भौतिकवादी दर्शन का मजाक बनाया गया है, फिर भी विचार हैं कि मरते ही नहीं. चिंता की बात यह कि यही ग्रंथ तथा इनपर ब्राह्मणों का एकाधिकार हजारों साल वर्गीय तथा जेंडर वर्चस्व के प्रमुख स्रोत बने रहे तथा बात अभी खत्म नहीं हुई. "स्वेच्छा" से निम्नवर्ग तथा महिलायें मनुवादी मान्यताओं को मानते रहे. मेरे बचपन तक यह हकीकत थी, तेजी से बदल रही है . तुम उसका एक ज्वलंत उदाहरण हो. ऐसे मे ऐंतोनियो ग्राम्सी की बहुत याद आती है. उनका वर्चस्व का सिद्धांत, सभ्यता के इतिहास का साश्वत, सार्वभौमिक सिद्धांत सा लगता है. ऐसा तब तक लगता रहेगा जब तक शोषण पर टिका वर्ग समाज रहेगा. मनुवाद के प्रतिरोध का विमर्श उसी तरह मनुवादी पैराडाइम में हो रहा है जिस तरह राष्ट्रवादी विमर्श औपनिवेशिक पैराडाइम की परिधि में ही चला. जन्म के आधार पर मूल्यांकन मनुवाद (ब्राह्मणवाद) का मूलभूत सिद्धांत है. मनुवादी मानसिकता (जातिवाद) का एक ही समाधन है वर्गचेतना का प्रसार तथा वर्गीय लामबंदी. मनुवाद का एक जवाब -- इंकलाब ज़िंदाबाद.
एक अधूरी कविता
एक अधूरी कविता
देवराज इंद्र नहीं पढ़ते इतिहास
नहीं है उनको नारी प्रज्ञा के प्रवाह की गति का अहसास
कि नहीं है नारी अब नारद के व्याख्यानों की अहिल्या
आखेट कर ले जिसका इंद्र सा कोई बहुरूपिया बहेलिया
बनती नहीं वह किसी मर्दवादी शाप से पत्थर
गौतमों की जमात को तर्क से करती है निरुत्तर
विवेक से करती है छल-फरेब तार तार
ज़ुल्फ के जलवे नहीं कलम होता है हथियार
नहीं चलाती वंकिम नयनों से छायावादी तीर
शब्दों से बनाती है धारदार दानिशी शमसीर
ललकारती है वह आज के देव-देवराजों को
मर्दवाद के सारे मानिंद सरताजों को
नारी चेतना का निकला है ये जो कारवाने जुनून
नष्ट करे देगा पति-परमेश्वरता के दंभ का शुकून
देगी समाज को समता के सुख की शिक्षा
अधिकार है आजादी न कि कोई भिक्षा
निकला है जो नारी चेतना का रथ
रुकेगा नहीं कठिन कितना भी पथ
सर्जक है सृष्टि की करेगी हिफाज़त
नहीं होगी अब खुराफात की इज़ाज़त
जुटाती ये शक्ति अमन चैन के लिए
शोषण-दमन को दफ्न करने के लिए
नहीं है ये किंवदंतियों की बेचारी नारी
बल-बुद्धि-साहस की है जीवंत पिटारी
वैसे तो शांति-सौहार्द से इसका स्वभाव लबरेज
मगर ईंट का जवाब पत्थर से देने में नहीं परहेज
नहीं है रीतकालीन कवियों की छुई-मुई कोई कल्पना
है ये अफलातून के गणराज्य की घुड़सवार वीरांगना
नहीं सुनती मनुवादी पति-परायणी बकवास
उल्टे देती मर्दवाद को निरंतर सांस्कृतिक संत्रास
(ईमिः 23.08.2015)
Saturday, August 15, 2015
आज़ादी
मिली थी जो आज़ादी बांटकर इतिहास
भूमंडलीकरण में खो गया उसका भी आभास
थोड़ा अलग हैै पुराने से नया साम्राज्यवाद
लॉर्ड क्लाइव है इसका कॉरपोरेटी राष्ट्रवाद
वैसे भी जरूरत नहीं अब किसी क्लाइव की
मीर जाफर बन गये राष्ट्रवाद के सिपाही
करेगा इंसाफ की बात ग़र भूतपूर्व सैनिक
लाठी-गोली से तोड़ी जाती उनकी सनक
मांगेगा भड़ाना का दलित अगर पुनर्वास
करेगा नहीं राष्ट्रवाद बर्दाश्त ये बकवास
सिखाया था अंग्रेजों ने बांटो राज करो का मंत्र
चारचांद लगा रहा उस पर राष्ट्रवाद का तंत्र
करेगा कश्मीरी या नागा ग़र आज़ादी की बात
होगा घायल मुल्क का राष्ट्रवादी जज्बात
देता है राष्ट्र तब सेना को विशेष अधिकार
मारने को आज़ादीवादी नहीं वारंट की दरकार
कर सकते हैं सैनिक किसी का बलात्कार
होता नहीं विद्रोही का कोई मानवाधिकार
है कोई आतंकवादी यदि असीमानंद
दिलायेगी सरकार उसको जमानत
करेगी तीस्ता ग़र हत्या-बलात्कार की मुख़ालफ़त
झेलनी ही पड़ेगी उसको सीबीआई की आफ़त
फाड़ता है बजरंगी जब गर्भवती का अंताशय
सलाम करते हैं उसे राष्ट्रवाद के पर्याय महाशय
करती है कत्ल औरत-बच्चे माया कोदनानी
बन जाती है महिला-बाल कल्याण की रानी
महिमा है राष्ट्रवाद की असीम और अपरंपार
महानता की है जिसके नहीं कोई आर-पार
हे जनमनगण अधिनायक भारत भाग्यविधाता
हो गये 68 साल मगर तेरा जादू पकड़ न आता
(ईमिः 15.08.2015)
Friday, August 14, 2015
घास काटती औरत
युवा साथी, शालू 'मिताक्षरा' की घास काटती औरत पर एक सुंदर कविता पर तुकबंदी में यह कमेंट लिखा गया.
पैनी हो रही है तुम्हारे लेखनी की धार
लाती रहो इसमें निखार लगातार
शब्दो से गढी घास काटती औरत की यह तस्वीर
करती निराला की पत्थर तोड़ती नायिका सी तकरीर
होगी तेज जिस दिन धार खुरपे की
बुनियाद हिल जायेगी शोषण के किले की
बनेगा उसका पल्लू इंक़िलाबी परचम
जुमलों की लफ्फाजी हो जायेगी बेदम
होगा तब खुरपा और कलम का संगम
बनेगा जो उमड़ती नई धारा का उद्गम
करेगी यह औरत नाइंसाफी पर निर्णायक वार
साथ होगा खुरपे के जब कलम का उद्गार
बनेगी जब इस भावी संगम की पेंटिंग
कम कर देगी दि'विंची के मोनालिजा की रेटिग
( तुम्हारी इस रचना ने तुकबंदी से मेरा सन्यास तुडवा दिया, वैसे भी किसी चीज से स्थायी सन्यास नहीं लेना चाहिये)
(ईमिः 15.08.2015)
Saturday, August 8, 2015
MN Roy
This is half baked information about MN Roy via Osho, the God-man, who is right in saying that in this country Babas can easily exploit the blind belief. In 1920 he had founded Communist Party of India in Tashkent with Indian Mujahirs. Its first convention in India was held in India in 1925 at Kanpur. All those who attended the convention were warranted under what is known as Kanpur conspiracy case. Many were arrested and many went underground. Roy was living in Germany that time but was warranted in absence. He was arrested immediately after landing in India in 1930. By the end of the 19th century militant nationalism under the leadership of the educated youth was gaining ground and became quite pronounced by the time. MN Roy whose birth name was Narenranath Bhattacharya, after getting rusticated from the school for organizing a meeting against the partition of the Bengal in 1905. He moved to Calcutta and formed a freethinker group and subsequently joined Anushilan, an underground group committed to liberate the country by armed means. Bhattacharya was entrusted to procure arms and money from kaiser Wilhem's Germany at odds with Britain. He set out for it could not procure the arms but through a circuitous route - Andaman-Indonesia-Japan-korea -- reached San Francisco and then to New York city. In US he met Evelyn Trent, a Marxist fell in love with her and they subsequently married. He along with Evelyn participated in the foundation of Mexican Communist Party and represented it in the 2nd Congress of the Comintern (Communist International). He was entrusted by Lenin to pepare a thesis on national and colonial question and came up with an unrealistic draft, though an alternative to Lenin's more realistic assessment of colonial state and nationalistic movements, yet it was accepted as supplementary thesis. Roy's line was adopted by the 6th congress of the Comintern but in the same congress Roy was expelled from it. Indian communists became divided between followers of Comintern and the Royists. Roy subsequently became a radical humanist.
Wednesday, August 5, 2015
DU 67 (Education & Knowledge 35)
Inder Mohan Kapahy Despite your seniority and experience of teaching you too resort to same, cheap Sanghi tactic of sabotaging any serious debate by diverting the issue being haunted by the specter of communism, must consult a Ojha. Discuss that on a separate thread. The post is about ABVP lumpenism in disturbing the programs of opposing groups as the recent case of vandalism in KM College by a gang of hoodlums claiming allegiance to ABVP went to stop the screening of a film on Muzaffarnagar and threatened to slap a senior colleague, and theater activist, Keval Verma, on the pattern of Nazi storm troopers- the Nazi paramilitary force-- that did the same things apart from terrorizing the minorities like RSS and its fronts are doing in terrorizing the Muslim and Christian minorities., your seniority does not suit the rumor based sense of history. Or should we take that the senior Sanghis are no different from their junior counterparts?
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