कविता भी शेयर कीजिए। मर्दवाद (पुरुषवाद) जीववैज्ञानिक प्रवृत्ति नहीं, विचारधारा है, विचारधारा उत्पीड़क और पीड़ित दोनों को प्रभावित करती है। कई लोग कहते हैं स्त्रियों पर स्त्रियां ही अत्याचार करती हैं, वे ऐसा विचारधारा के वशीभूत करती हैं। विचारधारा सांस्कृतिक वर्चस्व निर्मित करती है जो वैचारिक ही नहीं, भौतिक बल का भी काम करती है। विचारधारा (मिथ्या चेतना) हमारे रोजमर्रा के क्रिया-कलापों; विमर्श, रीति-रिवाजों और कर्मकांडों से निर्मित होती है। बेटी को बेटा कहकर शाबाशी देना भी मर्दवाद की विचारधारा को पुष्ट करता है। सिर्फ पुरुष ही नहीं स्त्रियां भी बेटियों को बेटा कहकर साबाशी देती हैं और बेटियां भी उसे शाबाशी के रप में ही लेती हैं। मेरी बेटियों को कोई बेटा कह देता है तो वे अपना विरोध दर्ज करती हैं। आर्थिक रूप से स्वतंत्र स्त्री भी तथाकथित स्वेच्छा से सामाजिक अधीनता की भूमिका अदा करती हैं। यह 'स्वेच्छा, स्वेच्छा से नहीं सांस्कृतिक वर्चस्व के बल के दबाव में निर्मित कृतिम स्वेच्छा है। लेकिन स्त्री प्रज्ञा और दावेदारी का रथ, धीरे-धीरे ही सही, काफी आगे बढ़ चुका है, वह दिन दूर नहीं जब स्वेच्छा का मतलब अधीनता नहीं, समानता होगा। मेरी बेटी की स्त्रीवाद पर एक फिल्म का शीर्षक है, "F for Equality".
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