शोले फिल्म में एके हंगल द्वारा अभिनीत पात्र का एक डायलॉग है कि जीवन का सबसे बड़ा दुख बेटे की लाश को कंधा देना होता है, कल अग्रज-मित्र अनिल मिश्र के बेटे 30-32 साल के, अक्षत की अंत्येष्टि से लौटा तब से दिमाग सुन्न सा है। बहुत जहीन लड़का था, मित्र का बेटा होने के साथ मेरा मित्र भी था। सड़क दर्घटना में उसकी मृत्यु हो गयी। 22 साल पहले उसके बड़े भाई, अंकुर की यमुना में डूबने से मृत्यु हो गयी थी। वह भी मेरा मित्र था। अंकुर होता तो आज वह बड़ा रंगकर्मी और कवि होता। इसी को कहते हैं विपत्ति का पहाड़ टूटना। मेरे पास शांत्वना देने के शब्द ही नहीं हैं।
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