इसीलिए मनुष्य का व्यक्तित्व क्षुधा आधारित उसके अंतःकरण और विवेक के द्वंद्वात्मक योग से निर्मित होता है, संतुलन बिगड़ते ही मनुष्य पशुकुल में वापसी कर लेता है क्योंकि हमारे आदिम पूर्वजों ने खुद को अपनी प्रजाति विशिष्ट प्रवृत्ति, विवेक के इस्तेमाल से अपनी आजीविका के उत्पादन-पुरुत्पादन करके पशुकुल से अलग किया था।
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