मेरी एक पोस्ट पर एक कमेंट का जवाब:
जी नहीं वर्णव्यवस्थावाद (ब्रह्मणवाद) और शिक्षा पर एकाधिकार के चलते वर्णाश्रमवाद यहां पहले से मौजूद थे, वे अंग्रेजों के चलते नही के नहीं उपजे.। शिक्षा की सार्वभौमिक सुलभता औपनिवेशिक शिक्षा नीति का एक सकारात्मक उपपरिणाम है। इसी के चलते ब्राह्मणवादी वर्चस्व पर आए खतरे को टालने के लिए ब्राह्मणवाद को हिंदुत्व का चोला पहनाकर पेश किया गया। हिंदुत्व ब्राह्मणवाद की राजनैतिक अभिव्यक्ति है , जिससे कुछ के हित को सबकी शक्ति से बढ़ाया/बचाया जा सके। मार्क्स जब हिंदुस्तान पर पढ़ना-लिखना शुरू किए तो पाए कि वर्णाश्रमी सामंतवाद समेत यहां की तमाम विशिष्टताएं, यूरोपीय इतिहास पर आधारित ऐतिहासिक भौतिकवाद के सिद्धांत में नहीं फिट बैठते तो उन्होंने इसके लिए एसियाटिक मोड ऑफ प्रोडक्सन का सिद्धांत प्रतिपादित किया। उन्हें लगा था कि औपनिवेशिक शासन भारत के पूंजीवादीकरण के लिए एशियाटिक मोड को तोड़ेंगे। लेकिन अंग्रेजों भारत का पूंजीवादीकरण की बजाय एशियाटिक मोड का इस्तेमाल इसके संसाधनों को लूटने में किया। लेकिन बांटो-राज करो की नीति के तहत सांप्रदायिकता का उदय औपनिवेशिक रणनीति के उपपरिणाम के रूप में हुआ। ज्ञान पांडेय इसे तथ्यों के साथ अपनी किताब, Construction of communalism in colonial North India में विधिवत दर्शाया है। सादर।
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