31 जुलाई को प्रेमचंद का जन्मदिन है, इस अवसर पर हिंदी साहित्य के जाने-माने आलोचक,Virendra Yadav ने स्त्री लेखा पत्रिका के लिए प्रेमचंद की स्त्री-दृष्टि पर अपना लेख शेयर किया है जिसमें प्रेमचंद को स्त्री विरोधी या दलित विरोधी बताने वालों का तथ्यपरक खंडन किया है। उस पर टिप्पणी:
बहुत सुंदर विवरण एवं विश्लेषण। किसी भी परिघटना को उसके ऐतिहासिक संदर्भ में बेहतर समझा जा सकता है। विकास के हर चरण के अनुरूप सामाजिक चेतना का स्वरूप और स्तर होता है।1923 या 1932 में, सामाजिक चेतना के विकास के उस चरण में सांप्रदायिकता; स्त्रियों या जाति पर प्रेमचंद के विचार समय से आगे एवं क्रांतिकारी हैं। जन्म के आधार पर व्यक्तित्व-कृतित्व का मल्यांकन ब्राह्मणवाद का मूलमंत्र है, ऐसा करने वाले जन्मना असवर्ण, नव ब्राह्मणवादी सामाजिक चेतना के जनवादीकरण के रास्ते के ब्राह्मणवादियों जितने ही खतरनाक गतिरोधक हैं। प्रेमचंद को दलितविरोधी या स्त्री विरोधी बताने वाले नवब्राह्मणवादी इसी कोटि के प्रतिक्रांतिकारी हैं। अंबेडकर जाति का विनाश चाहते थे जवाबी जातिवाद नहीं।सभी रचनाएं समकालिक होती हैं, महान रचनाएं सर्वकालिक हो जाती हैं। प्रेमचंद की सभी रचनाएं सर्वकालिक हैं। उनकी जयंती पर कालजयी रचनाकार को सलाम।
No comments:
Post a Comment