Sunday, July 2, 2023

मार्क्सवाद 288 (निजीकरण)

 एक पोस्ट पर कमेंट:


1. आज की फासीवादी हिंदुत्व सांप्रदायिकता साम्राज्यवादी भूमंडलीय पूंजी का औजार है, हिंदुत्व के खुले एजेडा के पीछे सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के निजीकरण-उदारीकरण, शिक्षा-स्वास्थ्य-खेती के कॉरपोरेटीकरण, सामाजिक सुरक्षा के कल्याणकारी संस्थानों को विघटित कर क्रोनी (कृपापात्र) पूंजीपतियों के हवाले करने का हिडेन साम्राज्यवादी एजेंडा है। देश का बंटवारा बांटो-राजकरो की नीति के अंग के रूप मेंऔपनिवेशिक परियोजना थी जिसमें औपनिवेशिक शासन के हिंदू-मुसलमान सांप्रदायिक सहयोगियों (हिंदू महासभा-आरएसएस तथा मुस्लिम लीग-जमाते इस्लामी) ने मुल्क में फिरकापरस्त नफरत का जहर फैलाकर समान रूप से शासन की वफादारी किया। हिंदू और मुसलमान सांप्रदायिकताएं औपनिवेशिक पूंजी के गर्भ से पैदा जुड़वा औलादें हैं, जो पूरी निष्ठा से साम्राज्यवादी भूमंडलीय पूंजी की सेवा कर रही हैं। देश के बंटवारे (दो राष्ट्र सिद्धांत) का प्रस्ताव पहले (1937)सारकर की अध्यक्षता में हिंदू महासभा ने पारित किया फिर (1940) मुस्लिम लीग ने।

2. आपकी दूसरी बात से सहमत हूं कि आज की सांप्रदायिक सत्ता विरोधी शक्तियां यदि पहले सक्रिय होतीं तो यह नौबत न आती। 1947 में नेहरू जैसी वैज्ञानिक तथा मानवीय सोच का नेतृत्व न होता तो 1947 में ही भारत हिंदू पाकिस्तान बन गया होता। 1984 से कांग्रेस बहुसंख्यक तुष्टीकरण की नीति को तहत भाजपा के साथ प्रतिस्पर्धी सांप्रदायिक खेल खेलने लगी तथा दुश्मन के मैदान में उसी के हथियार से लड़ाई में हार निश्चित होती है। 1991 के बाद वह भाजपा के साथ साम्राज्यवादी भूमंडलीय पूंजी के प्रतिस्पर्धी खेल खेलने लगी उसमें भी उसकी पराजय निश्चत थी। लेकिन आज की हालात की ज्यादा जिम्मेदारी कम्युनिस्ट पार्टियों की कमनिगाही और अकर्मों की है। राजनैतिक शिक्षा के जरिए सामाजिक चेतना के जनवादीकरण करने के अपने कर्तव्य में वे बुरी तरह असफल रहे, इस पर विस्तार से फिर कभी।

02.07.2022

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