नफरत की बाजार मिली है हमें विरासत में
शुरुआत हुई इसकी औपनिवेशिक शासन में
छेड़ा 1857 में हिंदु्स्तानियों जब आजादी की लड़ाई
कंधे-से-कंधा मिलाकर लड़े हिंदू-मुसलमान दोनों भाई
हो गया होता खात्मा तभी लुटेरा विदेशी शासन
मिलता न उन्हें ग़र देशी रजवाड़ों के अभिवादन
जीत गया होता जंगे आजादी तभी हिंदुस्तानी आवाम
खड़े न होते गुलामी के साथ यदि सिंधिया और निजाम
कुचल तो दिया तिजारती लुटेरों ने तब आजादी की लड़ाई
मगर आवामी एकता का खतरा उन्हे सालता रहा
खोजा आवामी एकता तोड़ने का भरोसेमंद तरीका
शुरू किया उन्होंने बांटो-राज करो की सियासत
पाने को इंकलाबी कौमी एकता के खतरों से राहत
नफरत के चाकू से करने को कौमी एकता हलाल
मिल गए इन्हें दोनों कौमों से भरोसेमंद दलाल
खोल ली उन्होंने मजहबी नफरत की बाजारें
घूमने लगे मुल्क भर में मजहबी नफरत के हरकारे
कामयाब हुआ बांटो-राज करो का लुटेरों का मंसूबा
टूटा हिंदुस्तान बन गया मजहब के नाम पर एक और सूबा
पूंजी की लूट ने अख्तियार किया जब भूमंडलीय स्वरूप
हाई-टेक हो गया नफरत की बाजारों का रूप
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