सावित्री बाई फुले को स्त्रियों और दलितों को शिक्षित करने के अपने अबियान में ब्राह्मणों का ही नहीं अब्राह्मण पुरुषों का भी कोप झेलना पड़ा था, क्योंकि वे शिक्षा पर ब्राह्मणों के ही नहीं पुरुषों के वर्चस्व को भी चुनौती दे रही थीं, लेकिन सारी बिघ्न-बाधाओं और प्रताड़नाओं के बावजूद वे अपने कर्म-पथ पर बढ़ती रहीं। उनका अभियान दोहरी वर्जना तोड़ रहा था। शिक्षा की सार्वजनिक सुलभता औपनिवेशिक शिक्षा नीति का एक सकारात्मक उपपरिणाम था। सावित्री बाई के जज्बे को सलाम।
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