मेरे एक लिंक (समाजवाद 3)[समयांतर, मई में छपे लेख की] पर एक फेसबुक मित्र ने संघ के किसी बौद्धिक अधिकारी के बौद्धिक के हवाले से बताया कि रूस में क्रांति नहीं तख्ता-पलट हुआ था, जिसे क्रांति कहना अनुचित है। उस पर मेरा कमेंट:
शाखा की बौद्धिकों में अफवाहजन्य इतिहास सिखाया जाता है और कुप्रचार किया जाता है। बौद्धिक देने वाला खुद मूर्ख होता है (शाखामृग के रूप में अनुभवजन्य ज्ञान), रूसी क्रांति तक यह लेखमाला नौंवे भाग (नवंबर 2017) में पहुंचती है। मैं 13 साल का कर्मकांडी परिवेश में पला गांव का ब्राह्मण लड़का था लेकिन धार्मिक फरेबों पर संदेह होने लगा था। जौनपुर का जिला प्रचारक दुकच्छी धोती वाला, बाल स्वयं सेवको का ज्यादा ध्यान देने वाला वीरेश्वर जी (वीरेश्वर द्विवेदी, विहिप का मौजूदा राष्ट्रीय सचिव) था, उसने एक बौद्धिक में बताया कि हेडगेवार युधिष्ठिर का अवतार था। गोलवल्कर ने आजादी की लड़ाई के दौरान 'वि ऑर आवर नेसन डिफान्ड' में लिखा (1939) कि हिंदुओं को अंग्रजों से लड़ने में ऊर्जा व्यर्थ नहीं करना चाहिए, बाद में कम्युनिस्टों और मुसलमानों से लड़ने के लिए संरक्षित करनी चाहिए। उसी पुस्तक में लिखता है कि प्रचीन काल में उत्तरी ध्रुव उस जगह था जहां आज उड़ीसा और बिहार है, लेकिन शाखा में पढ़ने को हतोत्साहित किया जाता है, शाखामृग बिना पढ़े किसी को महान पवित्र ग्रंथ मान लेता है। उसी पुस्तक में यह भी लिखा है कि हिटलर ने जिस तरह सेमेटिक नस्ल का सफाया कर अपनी नस्ल की शुद्धा कायम की है वह हिंदुओं के लिए अनुकरणीय मिशाल है। हिटलर का मुख्य औजार अफवाहो को सच की तरह प्रचारित करने का प्रोपगंडा था। उसने बताया नहीं कि कैसे वह तख्ता पलट था? तख्ता पलट तो था ही लेकिन जनता द्वारा। इस लेख को पढ़े, लिंक पर बाकी भी हैं। यह भाग फ्रांस में 1848 की क्रांति पर है। 1917 की क्रांति की चर्चा अंतिम (भाग 9, नवंबर 2017) में है। लेकिन संघी तो बिना पढ़े कमेंट करता है।
06.01.2018
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