समाज बहुत लोगों
का ही नहीं
भांति-भांति
के लोगों का समुच्चय है
दो
या चार सगे भाई भी एक से नहीं अलग अलग होते हैं
यही
विविधता खूबसूरती है समाज और प्रकृति की।
विविधता
के विरुद्ध समरस-एकसरता की सोच
लोगों
को धर्म, जाति या जगह की
एकरसता
के खांचे में कैद करने का विचार
सोची-समझी
फासीवादी साजिश है
प्रकृति
की विविधता की खूबसूरती के खिलाफ
समाज
की सामासिकता के खिलाफ
तथा
विविधता में एकता की मनुष्यता के खिलाफ
ऐसे
ही नहीं वैसे भी होते हैं इलाहाबाद के लड़के
कुछ
भक्त होते हैं
तो
कुछ विद्रोह करते हैं भक्तिभाव के विरुद्ध
कुछ
पक्के आस्थावान होते हैं
तो
कुछ प्रामाणिक नास्तिक
लेकिन
कुल मिलाकर चिंतनशील होते हैं इलाहाबाद के लड़के
जो
कि साझी कड़ी है विविधता में एकता की
भांति-भांति
के होते हैं इलाबाद के लड़के
और
हां लड़के ही नहीं लड़किया में होती हैं इलाहााद में
ऐसी
भी और वैसी भी
(ईमि: 23.01.2023)
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