Sunday, January 8, 2023

शिक्षा और ज्ञान 391 (मैक्यावली)

 मंहगाई, बेरोजगारी, अर्ध-रोजगारी (10 हजार में 12 घंटे की दिहाड़ी), असमानता, सैकड़ों साल के अनवरत संघर्षों से हासिल मजदूर अधिकारों की ऐसी-तैसी लेकिन धर्म के ठेकेदारों द्वारा विधर्मियों का संहार, बलात्कार, बहिष्कार का नफरती अभियान चुनावी ध्रुवीकरण का आसान तरीका है। ज्यादातर लोग दिमाग से नहीं दिल से सोचते हैं और एक साझा दुश्मन की कल्पना से लोगों की धार्मिक भावनाओं का शोषण कर उन्हें उल्लू बनाकर अपना उल्लू सीधा करना आसान है। जैसा ऊपर के कमेंट में कहा है कि भक्त पेट पर भी लात प्रसाद समझकर खा लेता है। धर्म सदा ही प्रभावी राजनैतिक औजार रहा है। कौटिल्य तो आपद्धर्म के रूप में राजनैतिक फायदे के लिए लोगों के धार्मिक अंधविश्वास की भावनाओं के दोहन की बात करते हैं, लेकिन मैक्यावली 'समझदार'राजा को सलाह देता है कि धार्मिक कर्मकांड और अनुष्ठान कितने भी बेहूदे क्यों न हों उसे सदा उनका अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए। वह हर तरह का छल-कपट-दुराचार कितना भी करे लेकिन उसे अपनी छवि धर्मात्मा की बनाए रखना चाहिए। धर्म लोगों को लामबंद करने तथा उनकी एकता और वफादारी सुनिश्चित करने का सबसे कारगर औजार है। वैसे भी भगवान का भय राजा के भय में आसानी से तब्दील हो जाता है।

09.01.2019

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