Saturday, January 14, 2023

शिक्षा और ज्ञान 394 (भूमंडलीकरण)

 दुर्भाग्य से हमारा सामाजिक संरक्षणबोध बहुत बुरा है। अनादिकाल से लोग आजीविका तथा अन्यान्य कारणों से लोग एक जगह से दूसरी जगह आते-जाते, बसते रहे हैं। वैसे तो इस ऐतिहासिक अर्थ में देश-दुनिया सदा भूमंडलीय (अंतर्राष्ट्रीय)) रही है लेकिन पूंजीवाद ने विशुद्ध रूप से भूमंडलीय बना दिया। यूरोप में पूंजीवाद का उदय और विकास तथा औपनिवेशिक विस्तार साथ-साथ शुरू हुए और पूंजी के तथाकथित आदिम संचय में किसान-कारीगरों के सर्वहाराकरण के साथ औपनिवेशिक लूट की प्रमुख भूमिका रही है। हर जगह जाना ओऔर नीड़ बनाना पूंजी का ऐतिहासिक चरित्र रहा है लेकिन भूमंडलीकरण के बाद पूंजी का चरित्र स्पष्टतः भूमंडलीय हो गया है क्योंकि अब यह न तो स्त्रोत के मामले में न निवेश के मामलों में स्थानीय-केंद्रिक (Geo-centric) रह गयी है, प्रधान मंत्री ने स्टेटबैंक को अडानी को हजारों करोड़ कर्ज देने का निर्देश आस्ट्रेलिया में कोयला-खनन में निवेश के लिए दिया था।जिस तरह पूंजी का कोई देश नहीं होता उसी तरह मजदूर का भी कोई देश नहीं होता लेकिन भूमंडलीय मजदूर एकता के मंसूबों के विरुद्ध उसे राष्ट्रीयता के माऴनात्मक चक्र में फंसाए रखा जाता है। उन्नीसवी-बीसवीं सदी में दो देशों के मजदूरों में दो विपरीत परिभाषा के राष्ट्रवाद विकसित हो रहे थे। इंगलैंड के मजदूर औपनिवेशिक लूट को राष्ट्रवादी गौरव मान रहे थे और कभी सूर्यास्त न होने वाले साम्राज्य का हिस्सा होने में गर्व महसूस कर रहे थे, यह अलग बात है कि औपनिवेशिक लूट से उनके अपने शोषण-उत्पीड़न में कोई कमी नहीं आती थी। और भारत के मजदूर औपनिवेशिक लूट के विरुद्ध उपनिवेशविरोधी भारतीय राष्ट्रवाद के लिए लड़ रहे थे जिसे तोड़ने के लिए औपनिवेशिक शासकों ने बांटो-राज करो की नीतिको तहत मजदूरों (आमजन) को धर्म के आधार पर परिभाषित करना शुरू किया और उन्हें दोनों प्रमुख समुदायों से कारिंदे भी मिल गए। अनैतिहासिक धर्मोंमादी राष्टवाद (सांप्रदायिकता) के युद्धेोंमाद ने भारतीय राष्ट्रवाद और राष्ट्र के टुकड़े कर दिेए और देश का बंटवारा हमारे इतिहास और राजनीति का स्थाई नासूर बन गया। भाषा-संस्कृति के मुद्दे पर पाकिस्तान के टुकड़े होना धर्म आधारित राष्ट्रवाद की अवधारणा के फरेब का भंडाफोड़ करता है। भारत में आज के सत्तासीन और उनके भक्त धर्मोंमादी राष्ट्रवाद (सांप्रदायिकता) से मानवता को खंडित करने के अपने वैचारिक पूर्वजों की राह पर चलते हुए इतिहास को पीछे ढकेलने पर तुले हैं।

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