जातिवाद को समाप्त करने हेतु जातिवादी भेदभाव की वंचना की आंशिक भरपाई के लिए संविधान निर्माताओं ने सामाजिक न्याय के प्रावधान बनाए। आरक्षण के प्रावधान आर्थिक नहीं सामाजिक न्याय के प्रावधान हैं। वैसे भी आर्थिक रूप से संपन्न मझली शूद्र जातियां आरक्षण के दायरे से बाहर हैं और अब तो सवर्णों के लिए भी आरक्षण के प्रावधान बन गए हैं। हम जातिविहीन समाज के पक्षधर हैं इसीलिए जातीय श्रेष्ठताबेध के विरोधी जिसकी आवश्यक परिहार्यता के तौर पर, स्व के स्वार्थबोध जातीय श्रेष्ठतावाद से ऊपर उठकर स्व के परमार्थबोध के तहत बाभन से इंसान बन गया। आप भी स्व के जातिवादी स्वार्थबोध से ऊपर उठकर ठाकुर से इंसान बन जाएं तो समझ पाएंगे कि सामाजिक न्याय के प्रवधान जातिविहान समाज का पथप्रशस्त करने के लिए बने हैं। कुछ असवर्ण जवाबी जातिवाद में उलझकर जातिवादी ताकतों के सहयोगी बन जाते हैं। जवाबी जातिवाद (नवब्राह्मणवाद) जातिवाद (ब्राह्मणवाद) जितना ही खतरनाक है।
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