समानता एक गुणात्मक अवधारणा है, माात्रात्मक इकाई नहीं. विभिन्नता असमानता नहीं है। लेकिन असमानता के पैरोकार शातिराना तरीके से विभिन्नता को असमानता के रूप में परिभाषित करते हैं और फिर गोलमटोल कुतर्क का इस्तेमाल करते हुए उसी परिभाषा से असमानता प्रमाणित करते हैं। अब जब मौका मिला है तो स्त्रियां हर क्षेत्र में पुरुषों से आगे निकल रही हैं, जो मर्दवादी मानसिकता वालों की तिलमिलाहट का कारण बन गयी है। हम पुरुषों को चाहिए कि स्व के स्वार्थबोध पर स्व के परमार्थबोध को तरजीह दें और स्त्रियों के समानता/स्वायत्तता के संघर्ष का सम्मान करें। जीववैज्ञानिक भिन्नता प्राकृतिक है और स्त्री-पुरुष भेदभाव मनुष्य निर्मित कृतिम। (Sex is natural, gender is socially constructed, artificial. )
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